हिंसा की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने जफर अली को पूछताछ के लिए थाने बुलाया। पूछताछ के बाद, घटना से संबंधित बयान दर्ज करने के लिए उन्हें हिरासत में ले लिया गया।

फोटो साभार : एचटी
संभल में शाही जामा मस्जिद के अध्यक्ष जफर अली को स्थानीय पुलिस ने 24 नवंबर, 2024 को हुई हिंसा के सिलसिले में 23 मार्च, 2025 को गिरफ्तार किया गया। यह हिंसा मस्जिद के एक अदालती आदेश के सर्वेक्षण को लेकर विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़की थी, जो इस दावे को लेकर विवाद का केंद्र रही है कि यह मूल रूप से एक प्राचीन हिंदू मंदिर था।
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने जफर अली को पूछताछ के लिए थाने बुलाया। पूछताछ के बाद, घटना से संबंधित बयान दर्ज करने के लिए उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
संभल कोतवाली प्रभारी अनुज कुमार तोमर ने मीडिया को बताया कि 24 नवंबर की हिंसा के संबंध में पूछताछ के लिए अली को हिरासत में लिया गया। इस घटना में चार लोगों की मौत हो गई और पुलिस अधिकारियों सहित कई अन्य घायल हो गए, जिससे इलाके में तनाव फैल गया है।
हिंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, अली प्रैक्टिसिंग एडवोकेट और मस्जिद की समिति के प्रमुख हैं, उन्हें चार महीने की जांच के बाद गिरफ्तार किया गया। इस दौरान अधिकारियों ने उन पर सोशल मीडिया और भड़काऊ बयानों के माध्यम से हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। उन्हें मस्जिद से 100 मीटर दूर स्थित उनके आवास से सुबह करीब 11:00 बजे हिरासत में लिया गया।
एक इंस्पेक्टर और एसआईटी के जांच अधिकारी के नेतृत्व में स्थानीय पुलिस ने उनके परिवार को सूचित किया कि सर्किल ऑफिसर (सीओ) कुलदीप सिंह उनसे बात करना चाहते हैं। करीब चार घंटे की पूछताछ के बाद अली को औपचारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में जेल भेज दिया गया।
संभल के पुलिस अधीक्षक (एसपी) कृष्ण कुमार बिश्नोई ने कहा, "इकट्ठा किए गए साक्ष्यों के आधार पर, जफर अली को हिंसा भड़काने में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि एक टीम ने अदालत के आदेशों के बाद शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया था।"
अली पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 191 (2) (दंगा) और धारा 196 (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास और भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाले कार्य) के तहत मामला दर्ज किया गया है। एफआईआर में उन पर भीड़ को उकसाने और दंगे भड़काने का भी आरोप लगाया गया है।
अधिकारियों ने अली पर "संभल हिंसा" मामले के बहाने चंदा मांगने का भी आरोप लगाया है। हालांकि, चंदौसी में एडीजे कोर्ट-II के समक्ष पेश होने पर उन्होंने आरोपों से इनकार करते हुए कहा, "मैंने कोई हिंसा नहीं भड़काई।"
ज्ञात हो कि हिंसा एक याचिका से शुरू हुई जिसमें दावा किया गया था कि यह स्थल मूल रूप से एक प्राचीन हिंदू मंदिर था। झड़पों के एक दिन बाद, 25 नवंबर को, अली ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि "सभी पीड़ित पुलिस की गोलीबारी में मारे गए।" अधिकारियों ने बाद में इस बयान को अशांति को बढ़ावा देने के प्रयास के रूप में बताया।
अली के बड़े भाई, ताहिर अली भी वकील हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि गिरफ्तारी सोमवार (24 मार्च) को तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग के समक्ष उनकी निर्धारित गवाही से पहले उन्हें चुप कराने के लिए एक जानबूझकर की गई चाल थी।
रविवार को ताहिर ने संवाददाताओं से कहा, "ज़फ़र को कल आयोग के समक्ष गवाही देनी थी और इसीलिए वे जानबूझकर उसे जेल भेज रहे हैं।" उन्होंने कहा कि प्रशासन तनाव बढ़ा रहा है।
उन्होंने हिरासत में लिए जाने से पहले अपने भाई की बातों की जिक्र किया, "कोई बात नहीं, मैं जेल जाने के लिए तैयार हूं। मैं सच्चाई से पीछे नहीं हटूंगा।"
अली की गिरफ्तारी के बाद इलाके में सुरक्षा बढ़ा दी गई। मस्जिद के आसपास पांच पुलिस थानों की पुलिस समेत 200 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए। एक रैपिड रिएक्शन फ़ोर्स (RRF) यूनिट अली को लेकर पुलिस स्टेशन पहुंची, जहां साथी अधिवक्ता और समर्थक विरोध में जमा हो गए।
SIT ने 24 नवंबर की हिंसा के सिलसिले में अब तक तीन महिलाओं समेत 79 लोगों को जेल भेजा है। अदालतों ने 130 जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
सहायक पुलिस अधीक्षक (ASP) श्रीश चंद्र के अनुसार, "24 नवंबर की हिंसा के बाद से ही ज़फ़र अली पुलिस की निगरानी में थे। हमने पिछले साल पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में लिया था, लेकिन अपर्याप्त सबूतों के कारण उन्हें रिहा करना पड़ा।
हमने महीनों तक और सबूत जुटाए, जिसके बाद आज उन्हें गिरफ्तार किया गया।"
SIT ने पहले हिंसा से जुड़े 12 मामलों में से छह में 4,000 पन्नों से ज्यादा की चार्जशीट दाखिल की थी।

फोटो साभार : एचटी
संभल में शाही जामा मस्जिद के अध्यक्ष जफर अली को स्थानीय पुलिस ने 24 नवंबर, 2024 को हुई हिंसा के सिलसिले में 23 मार्च, 2025 को गिरफ्तार किया गया। यह हिंसा मस्जिद के एक अदालती आदेश के सर्वेक्षण को लेकर विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़की थी, जो इस दावे को लेकर विवाद का केंद्र रही है कि यह मूल रूप से एक प्राचीन हिंदू मंदिर था।
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने जफर अली को पूछताछ के लिए थाने बुलाया। पूछताछ के बाद, घटना से संबंधित बयान दर्ज करने के लिए उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
संभल कोतवाली प्रभारी अनुज कुमार तोमर ने मीडिया को बताया कि 24 नवंबर की हिंसा के संबंध में पूछताछ के लिए अली को हिरासत में लिया गया। इस घटना में चार लोगों की मौत हो गई और पुलिस अधिकारियों सहित कई अन्य घायल हो गए, जिससे इलाके में तनाव फैल गया है।
हिंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, अली प्रैक्टिसिंग एडवोकेट और मस्जिद की समिति के प्रमुख हैं, उन्हें चार महीने की जांच के बाद गिरफ्तार किया गया। इस दौरान अधिकारियों ने उन पर सोशल मीडिया और भड़काऊ बयानों के माध्यम से हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। उन्हें मस्जिद से 100 मीटर दूर स्थित उनके आवास से सुबह करीब 11:00 बजे हिरासत में लिया गया।
एक इंस्पेक्टर और एसआईटी के जांच अधिकारी के नेतृत्व में स्थानीय पुलिस ने उनके परिवार को सूचित किया कि सर्किल ऑफिसर (सीओ) कुलदीप सिंह उनसे बात करना चाहते हैं। करीब चार घंटे की पूछताछ के बाद अली को औपचारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में जेल भेज दिया गया।
संभल के पुलिस अधीक्षक (एसपी) कृष्ण कुमार बिश्नोई ने कहा, "इकट्ठा किए गए साक्ष्यों के आधार पर, जफर अली को हिंसा भड़काने में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि एक टीम ने अदालत के आदेशों के बाद शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया था।"
अली पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 191 (2) (दंगा) और धारा 196 (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास और भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाले कार्य) के तहत मामला दर्ज किया गया है। एफआईआर में उन पर भीड़ को उकसाने और दंगे भड़काने का भी आरोप लगाया गया है।
अधिकारियों ने अली पर "संभल हिंसा" मामले के बहाने चंदा मांगने का भी आरोप लगाया है। हालांकि, चंदौसी में एडीजे कोर्ट-II के समक्ष पेश होने पर उन्होंने आरोपों से इनकार करते हुए कहा, "मैंने कोई हिंसा नहीं भड़काई।"
ज्ञात हो कि हिंसा एक याचिका से शुरू हुई जिसमें दावा किया गया था कि यह स्थल मूल रूप से एक प्राचीन हिंदू मंदिर था। झड़पों के एक दिन बाद, 25 नवंबर को, अली ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि "सभी पीड़ित पुलिस की गोलीबारी में मारे गए।" अधिकारियों ने बाद में इस बयान को अशांति को बढ़ावा देने के प्रयास के रूप में बताया।
अली के बड़े भाई, ताहिर अली भी वकील हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि गिरफ्तारी सोमवार (24 मार्च) को तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग के समक्ष उनकी निर्धारित गवाही से पहले उन्हें चुप कराने के लिए एक जानबूझकर की गई चाल थी।
रविवार को ताहिर ने संवाददाताओं से कहा, "ज़फ़र को कल आयोग के समक्ष गवाही देनी थी और इसीलिए वे जानबूझकर उसे जेल भेज रहे हैं।" उन्होंने कहा कि प्रशासन तनाव बढ़ा रहा है।
उन्होंने हिरासत में लिए जाने से पहले अपने भाई की बातों की जिक्र किया, "कोई बात नहीं, मैं जेल जाने के लिए तैयार हूं। मैं सच्चाई से पीछे नहीं हटूंगा।"
अली की गिरफ्तारी के बाद इलाके में सुरक्षा बढ़ा दी गई। मस्जिद के आसपास पांच पुलिस थानों की पुलिस समेत 200 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए। एक रैपिड रिएक्शन फ़ोर्स (RRF) यूनिट अली को लेकर पुलिस स्टेशन पहुंची, जहां साथी अधिवक्ता और समर्थक विरोध में जमा हो गए।
SIT ने 24 नवंबर की हिंसा के सिलसिले में अब तक तीन महिलाओं समेत 79 लोगों को जेल भेजा है। अदालतों ने 130 जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
सहायक पुलिस अधीक्षक (ASP) श्रीश चंद्र के अनुसार, "24 नवंबर की हिंसा के बाद से ही ज़फ़र अली पुलिस की निगरानी में थे। हमने पिछले साल पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में लिया था, लेकिन अपर्याप्त सबूतों के कारण उन्हें रिहा करना पड़ा।
हमने महीनों तक और सबूत जुटाए, जिसके बाद आज उन्हें गिरफ्तार किया गया।"
SIT ने पहले हिंसा से जुड़े 12 मामलों में से छह में 4,000 पन्नों से ज्यादा की चार्जशीट दाखिल की थी।