कोर्ट ने कहा, मेरा प्रथम दृष्टया विचार है कि सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज बयानों के आधार पर कार्यवाही को रद्द करने का कोई प्रावधान नहीं है।। मुझे एक ऐसा निर्णय दिखाइए, जिसमें धारा 161 और धारा 164 के तहत दिए गए बयानों पर भरोसा करते हुए कार्यवाही को रद्द किया जा सके।
साभार : बिजनस स्टैंडर्ड
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ एक नाबालिग लड़की के कथित यौन शोषण मामले में बुधवार 18 दिसंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने गवाहों के बयान के आधार पर केस की कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया यह विचार व्यक्त किया कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत उनके खिलाफ दर्ज मामले में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के खिलाफ कार्यवाही को केवल उन गवाहों के बयानों के आधार पर रद्द करना संभव नहीं है जो कथित घटना के बारे में पीड़िता के बयान से असहमत हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने कहा, "मेरा प्रथम दृष्टया विचार है कि सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज बयानों के आधार पर कार्यवाही को रद्द करने का कोई प्रावधान नहीं है।। मुझे एक ऐसा निर्णय दिखाइए, जिसमें धारा 161 और धारा 164 के तहत दिए गए बयानों पर भरोसा करते हुए कार्यवाही को रद्द किया जा सके।"
जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा, "यह POCSO के तहत एक मामला है। क्या गवाहों के इस साक्ष्य की जिरह नहीं की जानी चाहिए कि पीड़िता को कमरे के अंदर नहीं ले जाया गया था?? उससे (पीड़िता से) भी जिरह की जानी चाहिए। अगर सुनवाई में नहीं लाया जाता है, तो दोनों में से कोई भी बयान सत्य हो जाता है। (गवाहों के) बयान को सही मानते हुए पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया जाना चाहिए। क्या इसे ट्रायल में नहीं रखा जाना चाहिए। आप कैसे कह सकते हैं कि पीड़िता का बयान झूठा है?”
अदालत ने वकील को सुझाव दिया कि वह अदालत को इस बारे में संतुष्ट करें कि क्या बयान कार्यवाही को रद्द करने का हिस्सा बन सकते हैं।
अदालत ने कहा, “धारा 161 के बयानों पर विश्वास नहीं किया जाता है क्योंकि वे किस परिस्थिति में लिए गए हैं, यह आप नहीं जानते। हालांकि, धारा 164 का बयान उच्च स्थान पर है क्योंकि यह मजिस्ट्रेट के सामने है।”
यह मामला 17 वर्षीय लड़की की मां द्वारा लगाए गए आरोपों से जुड़ा है, जिसने आरोप लगाया था कि पूर्व मुख्यमंत्री ने उनकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया था, जब वो इस साल फरवरी महीने में मदद मांगने के लिए उनके बेंगलुरु आवास पर गई थी। 14 मार्च को सदाशिवनगर पुलिस स्टेशन में येदियुरप्पा के खिलाफ पोक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 ए (यौन उत्पीड़न) के तहत शिकायत भी दर्ज की गई थी।
साभार : बिजनस स्टैंडर्ड
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ एक नाबालिग लड़की के कथित यौन शोषण मामले में बुधवार 18 दिसंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने गवाहों के बयान के आधार पर केस की कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया यह विचार व्यक्त किया कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत उनके खिलाफ दर्ज मामले में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के खिलाफ कार्यवाही को केवल उन गवाहों के बयानों के आधार पर रद्द करना संभव नहीं है जो कथित घटना के बारे में पीड़िता के बयान से असहमत हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने कहा, "मेरा प्रथम दृष्टया विचार है कि सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज बयानों के आधार पर कार्यवाही को रद्द करने का कोई प्रावधान नहीं है।। मुझे एक ऐसा निर्णय दिखाइए, जिसमें धारा 161 और धारा 164 के तहत दिए गए बयानों पर भरोसा करते हुए कार्यवाही को रद्द किया जा सके।"
जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा, "यह POCSO के तहत एक मामला है। क्या गवाहों के इस साक्ष्य की जिरह नहीं की जानी चाहिए कि पीड़िता को कमरे के अंदर नहीं ले जाया गया था?? उससे (पीड़िता से) भी जिरह की जानी चाहिए। अगर सुनवाई में नहीं लाया जाता है, तो दोनों में से कोई भी बयान सत्य हो जाता है। (गवाहों के) बयान को सही मानते हुए पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया जाना चाहिए। क्या इसे ट्रायल में नहीं रखा जाना चाहिए। आप कैसे कह सकते हैं कि पीड़िता का बयान झूठा है?”
अदालत ने वकील को सुझाव दिया कि वह अदालत को इस बारे में संतुष्ट करें कि क्या बयान कार्यवाही को रद्द करने का हिस्सा बन सकते हैं।
अदालत ने कहा, “धारा 161 के बयानों पर विश्वास नहीं किया जाता है क्योंकि वे किस परिस्थिति में लिए गए हैं, यह आप नहीं जानते। हालांकि, धारा 164 का बयान उच्च स्थान पर है क्योंकि यह मजिस्ट्रेट के सामने है।”
यह मामला 17 वर्षीय लड़की की मां द्वारा लगाए गए आरोपों से जुड़ा है, जिसने आरोप लगाया था कि पूर्व मुख्यमंत्री ने उनकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया था, जब वो इस साल फरवरी महीने में मदद मांगने के लिए उनके बेंगलुरु आवास पर गई थी। 14 मार्च को सदाशिवनगर पुलिस स्टेशन में येदियुरप्पा के खिलाफ पोक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 ए (यौन उत्पीड़न) के तहत शिकायत भी दर्ज की गई थी।