जमीनी, व्यावहारिक और अराजनैतिक कहे जाने वाले मुंबई ने अक्सर ऐसे समय में दूसरे भारतीय महानगरों की तुलना में अधिक राजनीतिक परिपक्वता दिखाई है जब देश संकट में होता है और सरकार द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है।
सबरंग का विश्लेषण
यदि महाराष्ट्र ने मई-जून 2024 में चौंकाने वाला प्रदर्शन किया है और राज्य में (48 में से) 31 (32) संसदीय सीटें विपक्ष को दिया है। वहीं मुंबई में छह में से चार सेक्युलर महा विकास अघाड़ी के पास गईं और एक सीट मामूली अंतर यानी केवल 48 वोटों से हारी! ये शहर जो भारत का बहुत प्रिय और प्रतिष्ठित महानगर है और आबादी के बोझ और दोषपूर्ण निर्माण लॉबी के बावजूद लोगों के सपनों और आकांक्षाओं पर हावी रहता है वह 20 नवंबर को फिर से देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य के लिए बदलाव लाएगा। महा युति (एमवाई) या महा विकास अघाड़ी (एमवीए)? राज्य की राजधानी की 36 विधानसभा सीटों पर ये चुनाव बड़ी चुनौतियां पेश करेंगे।
मतदान से 27 दिन पहले हालात कैसे दिख रहे हैं?
आज बढ़त हासिल करने वाली विपक्षी महा विकास अघाड़ी सीट बंटवारे पर टाल-मटोल करके खुद के लिए स्थिति बेहतर नहीं कर पा रही है, एक ऐसी बीमारी जो महायुति को भी परेशान कर रही है जो बेहतर ‘मीडिया प्रबंधन’ के साथ नैरेटिव को नियंत्रित करना जारी रखे हुए है! 23 अक्टूबर को, चुनाव के पंडित और एमवीए कार्यकर्ता उत्सुकता से आखिरी सीट के बंटवारे का इंतजार करते रहे हैं। 29 अक्टूबर नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख है और 4 नवंबर को नाम वापस लेने की आखिरी दिन है। नामांकन की जांच 30 अक्टूबर को होगी।
महाराष्ट्र में साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखा गया है। सरकार बनाने के मुद्दे पर महायुति को तब झटका लगा जब महा विकास अघाड़ी सरकार ने उद्धव बालासाहेब ठाकरे को बतौर मुख्यमंत्री शपथ दिलाई। कोविड-19 महामारी संकट के दौरान राज्य में उनके नेतृत्व की आलोचकों और समर्थकों दोनों ने सराहना की है और इसके साथ ही एकनाथ शिंदे द्वारा बाद में किए गए विश्वासघात की भावना से प्राप्त समर्थन कुछ ऐसा है जिस पर (शिवसेना-यूबीटी) भरोसा कर रही है। हालांकि, एकनाथ शिंदे नाम के अलग हुए कपटी गुट की बढ़ती स्वीकार्यता से चुनौती का सामना कर रहे उद्धव ठाकरे का गिरता स्वास्थ्य और कार्यकर्ताओं और क्षत्रपों से मिलने जुलने में कमी बाप-बेटे उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे की पार्टी के लिए एक बड़ी कमी है। उनके और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) दोनों के लिए यह विधानसभा चुनाव स्थायी राजनीतिक प्रासंगिकता और अस्तित्व का सवाल है। इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं कि पवार परिवार के मुखिया के बारामती से सांसद सुप्रिया सुले को राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनाने के सपने के बारे में मीडिया में अटकलें भी तेज हो गई हैं। दूसरी ओर, लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने और 13 सीटें जीतने के बाद उत्साहित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने अपने हमेशा की तरह अक्खड़पन का परिचय देते हुए गठबंधन सहयोगियों को नाराज़ किया है। उसने अपने संगठनात्मक ढांचे को बेहतर नहीं बनाया है और यहां तक कि महायुति/बीजेपी के साथ व्यक्तिगत उम्मीदवारों के जरिए आंतरिक रूप से ‘सौदेबाजी’ की है जिससे उनके अपने उम्मीदवारों की जीत पर भारी असर पड़ेगा। आखिर में, वामपंथियों, सीपीआई-एम, सीपीआई, पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) और नवगठित प्रोग्रेसिव रिपब्लिकन अलायंस (वंचित बहुजन अघाड़ी-वीबीए का मुकाबला करने के लिए गठित दलित संगठनों और कार्यकर्ताओं का एक मोर्चा) के साथ सहयोगपूर्ण चर्चा करने में एमवीए की दूरी और अनिच्छा ने एमवीए के स्वाभाविक समर्थकों के बीच और भी मतभेद पैदा कर दिए हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि महायुति खेमे में सब कुछ ठीक है, चाहे वह समीकरणों की बात हो या सीट बंटवारे की बात हो। शिंदे की लोकप्रियता आरएसएस-फड़नवीस लॉबी के लिए एक बड़ी बाधा है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अभी भी अंतिम आंकड़ों में 70 या 60 सीटों से नीचे कम होने का अनुमान है। जैसा कि हाल ही में बताया गया है कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना पिछले सोमवार को पार्टी द्वारा जारी 99 उम्मीदवारों की सूची में भाजपा की चार उम्मीदवारों की पसंद का विरोध कर रही है। ये सीटें कल्याण ईस्ट, ठाणे, नवी मुंबई और मुरबाड हैं। एक नैरेटिव जिसने महाराष्ट्र के लोगों की सोच पर कब्जा कर लिया है वह है परियोजनाओं और संसाधनों का स्वार्थी गुजराती पकड़ जैसा कि प्रधानमंत्री-गृहमंत्री (नरेंद्र मोदी-अमित शाह) द्वारा दर्शाया गया है। हरियाणा की तरह एमवीए के वोट काटने के लिए ‘स्वतंत्र’ सुशिक्षित उम्मीदवारों को मैदान में उतारने, रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) पर वोट डालने और गिनती करने में नियम पुस्तिका का पालन न करने का दबाव बनाने के प्रयास आक्रामक तरीके से चल रहे हैं जिसमें केंद्र सीधे तौर पर शामिल है।
इन सबके बावजूद आंकड़े क्या कहते हैं?
महाराष्ट्र के 36 विधानसभा क्षेत्रों में से 2019 में एमवीए (यानी कांग्रेस और एनसीपी शरद पवार) ने 12 सीटें जीती थीं। 2024 में उन्हीं 36 विधानसभा क्षेत्रों में, अप्रैल-मई 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, एमवीए 20 विधानसभा क्षेत्रों में आगे चल रहा था जो यह दर्शाता है कि एसएस और एनसीपी (जून 2022) में विभाजन के बाद एमवीए ने आठ और क्षेत्रों में व्यापक समर्थन आधार हासिल कर लिया है। एमवीए में यूबीटी सेना की उपस्थिति एक स्पष्ट कारण है, हालांकि इस पार्टी और पवार की एनसीपी दोनों को अपनी पार्टियों के विभाजन में नुकसान उठाना पड़ा है।
एमवीए जिन 20 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही है, वे हैं अणुशक्तिनगर, चेंबूर, धारावी, सायन कोलीवाड़ा, वर्ली, शिवरी, भायखला, मुंबादेवी, चंदिवली, कुर्ला, कलिना, बांद्रा पूर्व, वर्सोवा, डिंडोशी, जोगेश्वरी (ईस्ट), घाटकोपर (वेस्ट), विक्रोली, भांडुप पश्चिम, मानखुर्द और मलाड। इनमें से आठ सीटें महायुति गठबंधन से जुड़े गुटों और पार्टियों ने जीती हैं। ये सीटें हैं अणुशक्तिनगर (वर्तमान विधायक नवाब मलिक, एनसीपी-एपी), सायन कोलीवाड़ा (वर्तमान विधायक आर तमिल सेलवन, भाजपा), बायकुला (वर्तमान विधायक यामिनी जाधव, शिंदे सेना), दिलीप लांडे- शिंदे सेना (शिंदे), कुर्ला (वर्तमान विधायक मंगेश कुडालकर, शिंदे सेना), वर्सोवा (वर्तमान विधायक भारती लाव्हेकर, भाजपा), जोगेश्वरी पूर्व (वर्तमान विधायक रवींद्र वायकर), घाटकोपर (वर्तमान विधायक राम कदम, भाजपा)।
बाकी 16 सीटों में से छह सीटें ऐसी हैं जिन्हें पार्टियों ने मामूली अंतर से जीता है। इनमें महायुति गठबंधन द्वारा जीती गई तीन सीटें और महा विकास अघाड़ी द्वारा जीती गई तीन सीटें शामिल हैं। इन छह में से, चेंबूर विधानसभा सीट एमवीए के लिए आसान हो सकती है क्योंकि दोनों मौजूदा विधायक, यूबीटी सेना के प्रकाश फाटरफेरकर और कांग्रेस के चंद्रकांत हंडोरे (जो 19,018 वोटों के अंतर से हार गए) एक ही गठबंधन से हैं; इसी तरह, कलिना में, मौजूदा विधायक, यूबीटी सेना के संजय पोतनीस ने कांग्रेस के जॉर्ज अब्राहम को मात्र 4,931 वोटों से हराया और दोनों पार्टियां अब एक ही गठबंधन में हैं।
इस बार वोट काटने वाली वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) हो सकती है, जिसने घोषणा की है कि वह चेंबूर के अलावा जोगेश्वरी (ईस्ट), डिंडोशी, मलाड, अंधेरी ईस्ट, अंधेरी वेस्ट, घाटकोपर ईस्ट और घाटकोपर वेस्ट से चुनाव लड़ेगी। राज ठाकरे की महानवनिर्माण सेना (MNS) ने भी कथित तौर पर अपने बेटे अमित ठाकरे को ठाकरे परिवार के आदित्य ठाकरे के खिलाफ वर्ली में खड़ा करने का फैसला किया है। 2019 के चुनावों में, राज ठाकरे की एमएनएस कई विधानसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। इसमें माहिम (संदीप देशपांडे जो 18,647 वोटों से हारे), शिवाड़ी (संतोष नलवाडे 39337 वोटों से हारे), मुलुंड (हर्शाला राजेश चव्हाण 57,348 वोटों से हारे), भांडुप वेस्ट (संदीप प्रभाकर जलगांवकर जो 29,173 वोटों के अंतर से हारे), घाटकोपर ईस्ट (सतीश पवार 53,319 वोटों से हारे), मगथाने (नयन कदम जो 46,547 वोटों से हारे) शामिल हैं। इस बार 2024 में एमएनएस ने कुल 288 विधानसभा सीटों में से कुल 250 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है।
आखिरकार, मतदान में संगठनात्मक ताकत ही जीत पाएगा। जोड़-तोड़ और धनबल - जिसे एक लचीले ईसीआई द्वारा समर्थन दिया जाता है - सत्तारूढ़ गठबंधन की मदद करेगा। क्या महा विकास अघाड़ी में इस मौके पर खड़े होने की ताकत है?
सबरंग का विश्लेषण
यदि महाराष्ट्र ने मई-जून 2024 में चौंकाने वाला प्रदर्शन किया है और राज्य में (48 में से) 31 (32) संसदीय सीटें विपक्ष को दिया है। वहीं मुंबई में छह में से चार सेक्युलर महा विकास अघाड़ी के पास गईं और एक सीट मामूली अंतर यानी केवल 48 वोटों से हारी! ये शहर जो भारत का बहुत प्रिय और प्रतिष्ठित महानगर है और आबादी के बोझ और दोषपूर्ण निर्माण लॉबी के बावजूद लोगों के सपनों और आकांक्षाओं पर हावी रहता है वह 20 नवंबर को फिर से देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य के लिए बदलाव लाएगा। महा युति (एमवाई) या महा विकास अघाड़ी (एमवीए)? राज्य की राजधानी की 36 विधानसभा सीटों पर ये चुनाव बड़ी चुनौतियां पेश करेंगे।
मतदान से 27 दिन पहले हालात कैसे दिख रहे हैं?
आज बढ़त हासिल करने वाली विपक्षी महा विकास अघाड़ी सीट बंटवारे पर टाल-मटोल करके खुद के लिए स्थिति बेहतर नहीं कर पा रही है, एक ऐसी बीमारी जो महायुति को भी परेशान कर रही है जो बेहतर ‘मीडिया प्रबंधन’ के साथ नैरेटिव को नियंत्रित करना जारी रखे हुए है! 23 अक्टूबर को, चुनाव के पंडित और एमवीए कार्यकर्ता उत्सुकता से आखिरी सीट के बंटवारे का इंतजार करते रहे हैं। 29 अक्टूबर नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख है और 4 नवंबर को नाम वापस लेने की आखिरी दिन है। नामांकन की जांच 30 अक्टूबर को होगी।
महाराष्ट्र में साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखा गया है। सरकार बनाने के मुद्दे पर महायुति को तब झटका लगा जब महा विकास अघाड़ी सरकार ने उद्धव बालासाहेब ठाकरे को बतौर मुख्यमंत्री शपथ दिलाई। कोविड-19 महामारी संकट के दौरान राज्य में उनके नेतृत्व की आलोचकों और समर्थकों दोनों ने सराहना की है और इसके साथ ही एकनाथ शिंदे द्वारा बाद में किए गए विश्वासघात की भावना से प्राप्त समर्थन कुछ ऐसा है जिस पर (शिवसेना-यूबीटी) भरोसा कर रही है। हालांकि, एकनाथ शिंदे नाम के अलग हुए कपटी गुट की बढ़ती स्वीकार्यता से चुनौती का सामना कर रहे उद्धव ठाकरे का गिरता स्वास्थ्य और कार्यकर्ताओं और क्षत्रपों से मिलने जुलने में कमी बाप-बेटे उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे की पार्टी के लिए एक बड़ी कमी है। उनके और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) दोनों के लिए यह विधानसभा चुनाव स्थायी राजनीतिक प्रासंगिकता और अस्तित्व का सवाल है। इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं कि पवार परिवार के मुखिया के बारामती से सांसद सुप्रिया सुले को राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनाने के सपने के बारे में मीडिया में अटकलें भी तेज हो गई हैं। दूसरी ओर, लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने और 13 सीटें जीतने के बाद उत्साहित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने अपने हमेशा की तरह अक्खड़पन का परिचय देते हुए गठबंधन सहयोगियों को नाराज़ किया है। उसने अपने संगठनात्मक ढांचे को बेहतर नहीं बनाया है और यहां तक कि महायुति/बीजेपी के साथ व्यक्तिगत उम्मीदवारों के जरिए आंतरिक रूप से ‘सौदेबाजी’ की है जिससे उनके अपने उम्मीदवारों की जीत पर भारी असर पड़ेगा। आखिर में, वामपंथियों, सीपीआई-एम, सीपीआई, पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) और नवगठित प्रोग्रेसिव रिपब्लिकन अलायंस (वंचित बहुजन अघाड़ी-वीबीए का मुकाबला करने के लिए गठित दलित संगठनों और कार्यकर्ताओं का एक मोर्चा) के साथ सहयोगपूर्ण चर्चा करने में एमवीए की दूरी और अनिच्छा ने एमवीए के स्वाभाविक समर्थकों के बीच और भी मतभेद पैदा कर दिए हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि महायुति खेमे में सब कुछ ठीक है, चाहे वह समीकरणों की बात हो या सीट बंटवारे की बात हो। शिंदे की लोकप्रियता आरएसएस-फड़नवीस लॉबी के लिए एक बड़ी बाधा है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अभी भी अंतिम आंकड़ों में 70 या 60 सीटों से नीचे कम होने का अनुमान है। जैसा कि हाल ही में बताया गया है कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना पिछले सोमवार को पार्टी द्वारा जारी 99 उम्मीदवारों की सूची में भाजपा की चार उम्मीदवारों की पसंद का विरोध कर रही है। ये सीटें कल्याण ईस्ट, ठाणे, नवी मुंबई और मुरबाड हैं। एक नैरेटिव जिसने महाराष्ट्र के लोगों की सोच पर कब्जा कर लिया है वह है परियोजनाओं और संसाधनों का स्वार्थी गुजराती पकड़ जैसा कि प्रधानमंत्री-गृहमंत्री (नरेंद्र मोदी-अमित शाह) द्वारा दर्शाया गया है। हरियाणा की तरह एमवीए के वोट काटने के लिए ‘स्वतंत्र’ सुशिक्षित उम्मीदवारों को मैदान में उतारने, रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) पर वोट डालने और गिनती करने में नियम पुस्तिका का पालन न करने का दबाव बनाने के प्रयास आक्रामक तरीके से चल रहे हैं जिसमें केंद्र सीधे तौर पर शामिल है।
इन सबके बावजूद आंकड़े क्या कहते हैं?
महाराष्ट्र के 36 विधानसभा क्षेत्रों में से 2019 में एमवीए (यानी कांग्रेस और एनसीपी शरद पवार) ने 12 सीटें जीती थीं। 2024 में उन्हीं 36 विधानसभा क्षेत्रों में, अप्रैल-मई 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, एमवीए 20 विधानसभा क्षेत्रों में आगे चल रहा था जो यह दर्शाता है कि एसएस और एनसीपी (जून 2022) में विभाजन के बाद एमवीए ने आठ और क्षेत्रों में व्यापक समर्थन आधार हासिल कर लिया है। एमवीए में यूबीटी सेना की उपस्थिति एक स्पष्ट कारण है, हालांकि इस पार्टी और पवार की एनसीपी दोनों को अपनी पार्टियों के विभाजन में नुकसान उठाना पड़ा है।
एमवीए जिन 20 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही है, वे हैं अणुशक्तिनगर, चेंबूर, धारावी, सायन कोलीवाड़ा, वर्ली, शिवरी, भायखला, मुंबादेवी, चंदिवली, कुर्ला, कलिना, बांद्रा पूर्व, वर्सोवा, डिंडोशी, जोगेश्वरी (ईस्ट), घाटकोपर (वेस्ट), विक्रोली, भांडुप पश्चिम, मानखुर्द और मलाड। इनमें से आठ सीटें महायुति गठबंधन से जुड़े गुटों और पार्टियों ने जीती हैं। ये सीटें हैं अणुशक्तिनगर (वर्तमान विधायक नवाब मलिक, एनसीपी-एपी), सायन कोलीवाड़ा (वर्तमान विधायक आर तमिल सेलवन, भाजपा), बायकुला (वर्तमान विधायक यामिनी जाधव, शिंदे सेना), दिलीप लांडे- शिंदे सेना (शिंदे), कुर्ला (वर्तमान विधायक मंगेश कुडालकर, शिंदे सेना), वर्सोवा (वर्तमान विधायक भारती लाव्हेकर, भाजपा), जोगेश्वरी पूर्व (वर्तमान विधायक रवींद्र वायकर), घाटकोपर (वर्तमान विधायक राम कदम, भाजपा)।
बाकी 16 सीटों में से छह सीटें ऐसी हैं जिन्हें पार्टियों ने मामूली अंतर से जीता है। इनमें महायुति गठबंधन द्वारा जीती गई तीन सीटें और महा विकास अघाड़ी द्वारा जीती गई तीन सीटें शामिल हैं। इन छह में से, चेंबूर विधानसभा सीट एमवीए के लिए आसान हो सकती है क्योंकि दोनों मौजूदा विधायक, यूबीटी सेना के प्रकाश फाटरफेरकर और कांग्रेस के चंद्रकांत हंडोरे (जो 19,018 वोटों के अंतर से हार गए) एक ही गठबंधन से हैं; इसी तरह, कलिना में, मौजूदा विधायक, यूबीटी सेना के संजय पोतनीस ने कांग्रेस के जॉर्ज अब्राहम को मात्र 4,931 वोटों से हराया और दोनों पार्टियां अब एक ही गठबंधन में हैं।
इस बार वोट काटने वाली वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) हो सकती है, जिसने घोषणा की है कि वह चेंबूर के अलावा जोगेश्वरी (ईस्ट), डिंडोशी, मलाड, अंधेरी ईस्ट, अंधेरी वेस्ट, घाटकोपर ईस्ट और घाटकोपर वेस्ट से चुनाव लड़ेगी। राज ठाकरे की महानवनिर्माण सेना (MNS) ने भी कथित तौर पर अपने बेटे अमित ठाकरे को ठाकरे परिवार के आदित्य ठाकरे के खिलाफ वर्ली में खड़ा करने का फैसला किया है। 2019 के चुनावों में, राज ठाकरे की एमएनएस कई विधानसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। इसमें माहिम (संदीप देशपांडे जो 18,647 वोटों से हारे), शिवाड़ी (संतोष नलवाडे 39337 वोटों से हारे), मुलुंड (हर्शाला राजेश चव्हाण 57,348 वोटों से हारे), भांडुप वेस्ट (संदीप प्रभाकर जलगांवकर जो 29,173 वोटों के अंतर से हारे), घाटकोपर ईस्ट (सतीश पवार 53,319 वोटों से हारे), मगथाने (नयन कदम जो 46,547 वोटों से हारे) शामिल हैं। इस बार 2024 में एमएनएस ने कुल 288 विधानसभा सीटों में से कुल 250 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है।
आखिरकार, मतदान में संगठनात्मक ताकत ही जीत पाएगा। जोड़-तोड़ और धनबल - जिसे एक लचीले ईसीआई द्वारा समर्थन दिया जाता है - सत्तारूढ़ गठबंधन की मदद करेगा। क्या महा विकास अघाड़ी में इस मौके पर खड़े होने की ताकत है?