कई सियासी दलों के नेता इनके समर्थन में भी उतरे हैं, तो वहीं राज्य सरकार फिलहाल कोर्ट के भरोसे पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए है।
उत्तर प्रदेश इन दिनों भव्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर काफी सुर्खियों में है। अयोध्या के राम मंदिर का ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है। इसी बीच लंबे समय से यूपी शिक्षक भर्ती के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों ने भी अयोध्या जाने का फैसला किया है। उनका कहना है कि अगर सरकार 22 जनवरी तक उनकी गुहार पर कुछ नहीं करती है तो वे सभी सरयू नदी के तट पर जाकर सामूहिक रूप से अपने प्राण त्याग देंगे।
बता दें कि प्रदर्शन कर रहे कई अभ्यार्थी पिछले कुछ दिनों से भूख हड़ताल भी कर रहे हैं। राजधानी लखनऊ के ईको गार्डन में धरने पर बैठे इन उम्मीदवारों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं, जो भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण लागू करने में अनियमितताओं के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवा रही हैं। ये सभी इस हाड़ कपा देने वाली ठंड में सड़क किनारे बैठने को मजबूर हैं। कई उम्मीदवारों के परिवार और बच्चे भी उनका साथ देने के लिए यहां मौजूद हैं।
क्या है पूरा मामला?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक प्रदेश का बहुचर्चित 69 हजार शिक्षक भर्ती मामला आरक्षण को लेकर फिलहाल कोर्ट में लंबित है। इस भर्ती में कई उम्मीदवार आरक्षण विसंगति का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि 29 अप्रैल 2021 को आई राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग की रिपोर्ट में भी 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण घोटाले की पुष्टि हुई है। ऐसे में राज्य सरकार इसे कई सालों से अनदेखा कर रही है। ये अभ्यर्थी अधिकारियों पर मनमानी और परेशान करने का आरोप भी लगा रहे हैं। इनके मुताबिक कुछ अधिकारी ऐसे हैं जो खुलकर कहते हैं कि तुम्हें जो करना है कर लो हम कुछ नहीं करेंगे।
ध्यान रहे कि इस पूरे मामले की शुरुआत 25 जुलाई 2017 से हुई थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में यूपी के 1.37 लाख शिक्षामित्रों की सहायक शिक्षकों के तौर पर नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया था और इन पदों पर भर्ती के निर्देश दिए थे। सरकार ने दो चरणों में इन पदों पर भर्ती करवाने का फैसला किया। पहले चरण में 68,500 पदों पर भर्ती प्रक्रिया आयोजित की गई।
इस संबंध में दिसंबर, 2018 में दूसरे चरण के 69 हजार पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया। पहले चरण के मुकाबले दूसरे चरण में किए गए कुछ बदलाव और फैसलों ने ऐसी असहज स्थिति पैदा की कि भर्ती के हर चरण को आरोपों और अदालतों के कटघरे से गुजरना पड़ा। 67,000 से अधिक पद भरे जाने के बाद भी गलत सवाल और आरक्षण का विवाद अब भी विभाग की गले की हड्डी बना हुआ है।
कट ऑफ का विवाद
इस मामले को विस्तार से समझाते हुए एक महिला अभ्यर्थी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस विवाद का एक बड़ा पेंच कट ऑफ रहा है और यही कारण था कि विज्ञापन जारी करने के बाद जिस भर्ती को छह महीने में पूरा करने की तैयारी थी, वह पहले डेढ़ साल तक कट ऑफ के विवाद में अटकी रही। इन अभ्यार्थियों की मानें तो, पहले चरण में अनारक्षित वर्ग के लिए 45% और आरक्षित वर्ग के लिए 40% अंक का न्यूनतम कट ऑफ तय किया गया था। दूसरे चरण में कट ऑफ बढ़ाकर क्रमश: 65% और 60% कर दिया गया। लेकिन, यह आदेश 6 जनवरी, 2020 को हुई भर्ती परीक्षा के अगले दिन जारी किया गया। इसका असर यह रहा कि हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमेबाजी के चलते नतीजे परीक्षा के 16 महीने बाद घोषित हो सके।
प्रदर्शन से इतर इस भर्ती के कई अन्य अभ्यार्थी बताते हैं कि मामले में आरक्षण की 'विसंगति' पर अब भी कई सवाल हैं। केस कोर्ट में जारी है और उम्मीदवारों का संघर्ष सड़क पर। एक ओर अभ्यर्थी आरक्षण में 19,000 पदों के घोटाले का आरोप लगा रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे डबल आरक्षण की लड़ाई करार दे रहे हैं। भर्ती सही ठहराने के विभाग के अपने तर्क हैं।
आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे अभ्यर्थियों का आरोप है कि 1 जून 2020 को भर्ती की जो प्रस्तावित सूची जारी की गई थी उसमें अभ्यर्थियों के वेटेज, कैटेगरी व सब कैटेगरी का उल्लेख नहीं किया गया था। OBC को 27% की जगह 3.86% ही आरक्षण मिला। आरक्षित वर्ग के जो अभ्यर्थी अधिक मेरिट के चलते अनारक्षित वर्ग के पदों के हकदार थे उन्हें भी कोटे के तहत गिना गया। इसे लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग व विभाग के बीच लंबे समय तक लिखा-पढ़ी भी चली।
प्रदर्शन में शामिल उम्मीदवारों के मुताबिक इसे आसान भाषा में समझें तो जिन आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों का चयन अनारक्षित पदों पर होना चाहिए था। उनको जबरन आरक्षित कोटे में डाल दिया गया। जिससे वो अभ्यर्थी जो अपने कोटे में चयन पाते, प्रक्रिया से बाहर हो गए। 69,000 का 27% - 18,598 सीटें आरक्षित वर्ग की बनती थी। लेकिन इसके 6,800 सीटों पर उनकी भर्ती हुई, जिनका चयन अनारक्षित पदों में होना था। इसे लेकर आंदोलन हुए। 23 दिसंबर 2021 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन अभ्यर्थियों से मुलाकात भी की। जिसके बाद इनके अनुसार अधिकारियों ने 5 जनवरी 2022 को लिस्ट निकाली। लेकिन 8 जनवरी 2022 को इन्हें आचार संहिता का हवाला देकर नियुक्ति नहीं दी गई।
अदालत ने भर्ती पर उठाया सवाल, नए सिरे से समीक्षा की बात
ध्यान रहे कि 5 जनवरी 2022 को निकली मेरिट सूची ने समाधान के बजाय आरक्षण में गड़बड़ियों के आरोपों को और पुख्ता कर दिया था। विपक्ष सरकार पर हावी होने लगा और मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां वो चयन सूची भी रद कर दी गई। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि भर्ती सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अधीन है और बिना विज्ञापन पद नहीं भरे जा सकते। कोर्ट ने जहां 50% से अधिक आरक्षण न होने का हवाला दिया, तो वहीं दोहरे आरक्षण का भी सवाल उठाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि अफसरों की जिम्मेदारी थी कि वे आरक्षण अधिनियमों का ढंग से पालन करते, लेकिन वे ऐसा करने में असफल रहे। अभ्यर्थियों व उनके आरक्षण का विवरण और स्कोर तक नहीं पेश किया गया। इसलिए, पूरी चयन सूची की ही नए सिरे से समीक्षा की जाए।
दोहरे आरक्षण की सिंगल बेंच की व्याख्या के खिलाफ आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी फिलहाल डबल बेंच में लड़ रहे हैं। दूसरी ओर धरना-प्रदर्शन व सियासी मंचों पर सवाल के जरिए भी विभाग पर समायोजन का दबाव बना रहे हैं। तो वहीं अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी दोहरे आरक्षण का आरोप लगाकर कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं। कुल मिलाकर 2019 से जारी ये लड़ाई साल 2024 आने के बाद भी सुलझ नहीं पाई है।
गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर भी #ShikshakBharti और कई अन्य कैंपेन के जरिए अभ्यार्थी अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। कई सियासी दलों के नेता इनके समर्थन में भी उतरे हैं, तो वहीं राज्य सरकार फिलहाल कोर्ट के भरोसे पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए है। ऐसे में इन उम्मीदवारों को भी अब 'भगवान राम' का ही भरोसा है, जिसे लेकर ये लोग अयोध्या पहुंचने की तैयारी में हैं।
Courtesy: Newsclick
उत्तर प्रदेश इन दिनों भव्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर काफी सुर्खियों में है। अयोध्या के राम मंदिर का ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है। इसी बीच लंबे समय से यूपी शिक्षक भर्ती के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों ने भी अयोध्या जाने का फैसला किया है। उनका कहना है कि अगर सरकार 22 जनवरी तक उनकी गुहार पर कुछ नहीं करती है तो वे सभी सरयू नदी के तट पर जाकर सामूहिक रूप से अपने प्राण त्याग देंगे।
बता दें कि प्रदर्शन कर रहे कई अभ्यार्थी पिछले कुछ दिनों से भूख हड़ताल भी कर रहे हैं। राजधानी लखनऊ के ईको गार्डन में धरने पर बैठे इन उम्मीदवारों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं, जो भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण लागू करने में अनियमितताओं के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवा रही हैं। ये सभी इस हाड़ कपा देने वाली ठंड में सड़क किनारे बैठने को मजबूर हैं। कई उम्मीदवारों के परिवार और बच्चे भी उनका साथ देने के लिए यहां मौजूद हैं।
क्या है पूरा मामला?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक प्रदेश का बहुचर्चित 69 हजार शिक्षक भर्ती मामला आरक्षण को लेकर फिलहाल कोर्ट में लंबित है। इस भर्ती में कई उम्मीदवार आरक्षण विसंगति का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि 29 अप्रैल 2021 को आई राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग की रिपोर्ट में भी 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण घोटाले की पुष्टि हुई है। ऐसे में राज्य सरकार इसे कई सालों से अनदेखा कर रही है। ये अभ्यर्थी अधिकारियों पर मनमानी और परेशान करने का आरोप भी लगा रहे हैं। इनके मुताबिक कुछ अधिकारी ऐसे हैं जो खुलकर कहते हैं कि तुम्हें जो करना है कर लो हम कुछ नहीं करेंगे।
ध्यान रहे कि इस पूरे मामले की शुरुआत 25 जुलाई 2017 से हुई थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में यूपी के 1.37 लाख शिक्षामित्रों की सहायक शिक्षकों के तौर पर नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया था और इन पदों पर भर्ती के निर्देश दिए थे। सरकार ने दो चरणों में इन पदों पर भर्ती करवाने का फैसला किया। पहले चरण में 68,500 पदों पर भर्ती प्रक्रिया आयोजित की गई।
इस संबंध में दिसंबर, 2018 में दूसरे चरण के 69 हजार पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया। पहले चरण के मुकाबले दूसरे चरण में किए गए कुछ बदलाव और फैसलों ने ऐसी असहज स्थिति पैदा की कि भर्ती के हर चरण को आरोपों और अदालतों के कटघरे से गुजरना पड़ा। 67,000 से अधिक पद भरे जाने के बाद भी गलत सवाल और आरक्षण का विवाद अब भी विभाग की गले की हड्डी बना हुआ है।
कट ऑफ का विवाद
इस मामले को विस्तार से समझाते हुए एक महिला अभ्यर्थी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस विवाद का एक बड़ा पेंच कट ऑफ रहा है और यही कारण था कि विज्ञापन जारी करने के बाद जिस भर्ती को छह महीने में पूरा करने की तैयारी थी, वह पहले डेढ़ साल तक कट ऑफ के विवाद में अटकी रही। इन अभ्यार्थियों की मानें तो, पहले चरण में अनारक्षित वर्ग के लिए 45% और आरक्षित वर्ग के लिए 40% अंक का न्यूनतम कट ऑफ तय किया गया था। दूसरे चरण में कट ऑफ बढ़ाकर क्रमश: 65% और 60% कर दिया गया। लेकिन, यह आदेश 6 जनवरी, 2020 को हुई भर्ती परीक्षा के अगले दिन जारी किया गया। इसका असर यह रहा कि हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमेबाजी के चलते नतीजे परीक्षा के 16 महीने बाद घोषित हो सके।
प्रदर्शन से इतर इस भर्ती के कई अन्य अभ्यार्थी बताते हैं कि मामले में आरक्षण की 'विसंगति' पर अब भी कई सवाल हैं। केस कोर्ट में जारी है और उम्मीदवारों का संघर्ष सड़क पर। एक ओर अभ्यर्थी आरक्षण में 19,000 पदों के घोटाले का आरोप लगा रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे डबल आरक्षण की लड़ाई करार दे रहे हैं। भर्ती सही ठहराने के विभाग के अपने तर्क हैं।
आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे अभ्यर्थियों का आरोप है कि 1 जून 2020 को भर्ती की जो प्रस्तावित सूची जारी की गई थी उसमें अभ्यर्थियों के वेटेज, कैटेगरी व सब कैटेगरी का उल्लेख नहीं किया गया था। OBC को 27% की जगह 3.86% ही आरक्षण मिला। आरक्षित वर्ग के जो अभ्यर्थी अधिक मेरिट के चलते अनारक्षित वर्ग के पदों के हकदार थे उन्हें भी कोटे के तहत गिना गया। इसे लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग व विभाग के बीच लंबे समय तक लिखा-पढ़ी भी चली।
प्रदर्शन में शामिल उम्मीदवारों के मुताबिक इसे आसान भाषा में समझें तो जिन आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों का चयन अनारक्षित पदों पर होना चाहिए था। उनको जबरन आरक्षित कोटे में डाल दिया गया। जिससे वो अभ्यर्थी जो अपने कोटे में चयन पाते, प्रक्रिया से बाहर हो गए। 69,000 का 27% - 18,598 सीटें आरक्षित वर्ग की बनती थी। लेकिन इसके 6,800 सीटों पर उनकी भर्ती हुई, जिनका चयन अनारक्षित पदों में होना था। इसे लेकर आंदोलन हुए। 23 दिसंबर 2021 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन अभ्यर्थियों से मुलाकात भी की। जिसके बाद इनके अनुसार अधिकारियों ने 5 जनवरी 2022 को लिस्ट निकाली। लेकिन 8 जनवरी 2022 को इन्हें आचार संहिता का हवाला देकर नियुक्ति नहीं दी गई।
अदालत ने भर्ती पर उठाया सवाल, नए सिरे से समीक्षा की बात
ध्यान रहे कि 5 जनवरी 2022 को निकली मेरिट सूची ने समाधान के बजाय आरक्षण में गड़बड़ियों के आरोपों को और पुख्ता कर दिया था। विपक्ष सरकार पर हावी होने लगा और मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां वो चयन सूची भी रद कर दी गई। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि भर्ती सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अधीन है और बिना विज्ञापन पद नहीं भरे जा सकते। कोर्ट ने जहां 50% से अधिक आरक्षण न होने का हवाला दिया, तो वहीं दोहरे आरक्षण का भी सवाल उठाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि अफसरों की जिम्मेदारी थी कि वे आरक्षण अधिनियमों का ढंग से पालन करते, लेकिन वे ऐसा करने में असफल रहे। अभ्यर्थियों व उनके आरक्षण का विवरण और स्कोर तक नहीं पेश किया गया। इसलिए, पूरी चयन सूची की ही नए सिरे से समीक्षा की जाए।
दोहरे आरक्षण की सिंगल बेंच की व्याख्या के खिलाफ आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी फिलहाल डबल बेंच में लड़ रहे हैं। दूसरी ओर धरना-प्रदर्शन व सियासी मंचों पर सवाल के जरिए भी विभाग पर समायोजन का दबाव बना रहे हैं। तो वहीं अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी दोहरे आरक्षण का आरोप लगाकर कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं। कुल मिलाकर 2019 से जारी ये लड़ाई साल 2024 आने के बाद भी सुलझ नहीं पाई है।
गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर भी #ShikshakBharti और कई अन्य कैंपेन के जरिए अभ्यार्थी अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। कई सियासी दलों के नेता इनके समर्थन में भी उतरे हैं, तो वहीं राज्य सरकार फिलहाल कोर्ट के भरोसे पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए है। ऐसे में इन उम्मीदवारों को भी अब 'भगवान राम' का ही भरोसा है, जिसे लेकर ये लोग अयोध्या पहुंचने की तैयारी में हैं।
Courtesy: Newsclick