कोविड की दूसरी लहर में पूर्वी यूपी में मौत का तांडव नजर आया: स्वतंत्र जाँच

Written by CJP and The Wire | Published on: February 15, 2022
सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस तथा वायर के सौजन्य से



आँकड़े बताते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों और खासतौर से प्रधान मंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में, 2019 के मुकाबले इस महामारी के कारण मौत के आँकड़ों में 60% की बढ़ोत्तरी हुई।

द वायर, इस रिपोर्ट को तैयार करने में मदद के लिए मुराद बानाजी का शुक्रिया अदा करता है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र, जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी भी शामिल है, यहाँ पर सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस और स्वतंत्र विशेषज्ञों के द्वारा मृतकों के आँकड़े इकट्ठा किये गये, और उनका विश्लेषण करते हुए भयावह और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। राज्य में कोविड-19 महामारी से मरने वाले लोगों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से काफी अधिक है।

जिन क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया गया था, उन क्षेत्रों में जनवरी 2020 से अगस्त 2021 के दौरान मृत्यु दर में लगभग 60% का इजाफा देखा गया। यह बढ़ोतरी 2019 की अपेक्षित दर और यहाँ तक कि महामारी से पहले राज्य में मृत्यु दर के सरकारी आँकड़ों से कहीं बहुत अधिक थी।

यदि इन क्षेत्रों की तरह ही पूरे उत्तर प्रदेश में मृत्यु दर में इसी तेज़ी के साथ वृद्धि हुई है तो सम्पूर्ण राज्य के अंदर महामारी के दौरान 14 लाख के आसपास लोगों की मौत संभव है, जोकि संभवतः राज्य तंत्र द्वारा बताये गए कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 23,000 से लगभग 60 गुना अधिक है।

ऐसे में यह आँकड़ा बताता है कि महामारी के दौरान उत्तर प्रदेश, देश में सबसे ज़्यादा प्रभावित और महामारी ग्रसित राज्य के रूप में रहा है। इतना ही नहीं बल्कि यह आँकड़ा राज्य में मौतों को दर्ज करने में सबसे कमजोर राज्य के रूप में भी इसे चिह्नित करता है।

इसी राज्य में, 10 फरवरी को राज्य विधानसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू हो चुका है।

विवरण
कोविड-19 महामारी ने पूरे भारत में भारी तबाही मचाई है। हालाँकि अधिकारिक आँकड़े इस दुःख और पीड़ा के बहुत छोटे अंश को ही प्रदर्शित करते हैं। अब हमें अलग-अलग स्वतंत्र रिपोर्ट और अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या को या तो बहुत ही कम बताया गया है, या उसे दर्ज ही नहीं किया गया है। नागरिक पंजीकरण सांख्यिकी (Civil Registration Statistics) और आँकड़े का इस्तेमाल करके अकादमिक अध्ययन के माध्यम से किये गए विभिन्न सर्वेक्षण बताते हैं कि भारत में महामारी से होने वाली मौतों की संख्या संभावित रूप से 30 लाख से अधिक है।

हालाँकि, भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में मौत से जुड़े आँकड़ों की संख्या बहुत ही कम कर के दिखाई गई है। उत्तर प्रदेश में अधिकारिक रूप से कोविड-19 से मारे गए लोगों की संख्या लगभग 23,000 बतायी गई है। आई आई टी (IIT) कानपुर से प्रकाशित एक रिपोर्ट, राज्य सरकार का शुक्रिया करते हुए दावा करती है कि राज्य सरकार के द्वारा प्रभावी इंतजाम के चलते कोविड-19 के प्रकोप का राज्य पर बहुत ही सीमित असर पड़ा है।

दूसरी तरफ, खासतौर से कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान, मई 2021 के आसपास हम मीडिया की उन रिपोर्टों को देख सकते हैं जो राज्य में पसरे व्यापक मौतों, गंगा में बहती लाशों और ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ते मरीजों की मौतों की कहानियों से भरी हुई थी।

अधिकारिक दावे और ज़मीनी रिपोर्ट पूरी तरह से अलग-अलग कहानियाँ बयान करती नज़र आती हैं। ऐसे में, सच क्या है?

उत्तर प्रदेश में कोविड-19 से हुई मौतों के दावे को समझने के लिए सार्वजनिक डोमेन में पाए जाने वाले आँकड़े का इस्तेमाल करने की उम्मीद से हमने इसकी तह में जाने का फैसला किया।

नवंबर-दिसंबर 2021 के दौरान, सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (उत्तर प्रदेश) की टीम ने 2017 से अगस्त 2021 के दौरान हुई मृत्यु के आँकड़े को एकत्रित करने का विशालकाय लक्ष्य लिया। यह आँकड़ेपूर्वी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में स्थित गाँवों और शहरी क्षेत्रों के स्थानीय कार्यालयों के द्वारा तैयार किये गए थे। हम लोग 129 क्षेत्रों से मौतों के पूरे रिकॉर्ड हासिल करने में सफल रहे। इन 129 क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वाराणसी का इलाका और गाजीपुर जिले का इलाका रहा है।

हासिल किये गए इन आँकड़ों का बुनियादी विश्लेषण करने और साथ ही उत्तर प्रदेश की मृत्यु दर पर सरकारी आँकड़ों के आधार पर पड़ताल करने से पता चलता है कि पिछले वर्षों की तुलना में 2020-2021 में मरने वाले लोगोंकी संख्या में भारी इजाफा हुआ है।

निश्चित तौर पर सभी मौतों के लिए कोविड-19 को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन यह कहना उचित होगा कि महामारी ने मृत्यु दर में भारी वृद्धि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आइए इसकी खोजबीन और पड़ताल करते हैं।

आँकड़ों को एकत्रित करना
हम जिन क्षेत्रों में गए वहाँ हमारी टीम को मृत्यु रिकॉर्ड एकत्रित या हासिल करने के दौरान बहुत सी चुनौतियों और मुश्किलों का सामना करना पड़ा। हालाँकि हमने चार जिलों क्रमश वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर और चंदौली के बहुत से क्षेत्रों से आँकड़े जुटाने का प्रयास किया था परन्तु अधिकांश आँकड़े हमें वाराणसी और गाजीपुर जिले से ही हासिल हो सके।

आँकड़े जुटाने के दौरान हमारी टीम नगर निगम कार्यालय, ग्राम पंचायत कार्यालय और श्मशानों से लेकर कब्रिस्तानों तक गई और साथ ही गाँव के मुखिया और सेक्रेटरी के अलावा हमने आशा वर्कर्स से भी मदद मांगी। बहुत से क्षेत्रों में हम आँकड़ों को नहीं हासिल कर पाए। क्योंकि या तो मृत्यु रिकॉर्ड रखा ही नहीं गया था या फिर उनके द्वारा हमें नहीं दिया गया।

इन सब मुश्किलों के बावजूद हम अंततः 2017 से लेकर अगस्त 2021 तक के 147 ग्रामीण और शहरी इलाकों के आंशिक या पूर्ण मृत्यु रिकॉर्ड हासिल करने में सक्षम हुए। खासतौर से वाराणसी जिले में ग्रामीण अधिकारी और आशा वर्कर्स के सहयोग से ही हमें यह आँकड़े प्राप्त हो सके।

आँकड़ों में रुझानों की स्थिति का आकलन करने के लिए हमने केवल 2017 में दर्ज हुई मौतों के पूर्ण रिकॉर्ड वाले क्षेत्रों की संख्या का इस्तेमाल किया। हम लोगों ने उन 17 क्षेत्रों का विश्लेषण नहीं किया जिसका कि सभी वर्षों का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था। इसके अलावा ऐसे क्षेत्र जिनकी जनसंख्या के आँकड़ों को हम नहीं पा सके, उनको भी हमने छोड़ दिया। इस तरह से जिन 129 क्षेत्रों का हमने विश्लेषण किया, उनमें से 79 ग्रामीण इलाके थे और 50 शहरी इलाके थे। इन 129 क्षेत्रों में से 104 वाराणसी जिले के अंतर्गत आते हैं, जबकि 23 गाजीपुर जिले का हिस्सा हैं और क्रमशः एक-एक क्षेत्र जिला जौनपुर और चंदौली का है।


सर्वेक्षण किए गए क्षेत्रों का विवरण

जिस 129 क्षेत्रों का हमने विश्लेषण किया उस क्षेत्र में 2021 में तकरीबन 2.8 लाख की जनसंख्या रही है। इस जनसंख्या में से लगभग 43,000 लोग शहरी इलाके के मोहल्लों में रहते थे जबकि अन्य आबादी ग्रामीण इलाके में निवास करती थी। इस तरह से, सर्वेक्षण की गई जनसंख्या का तकरीबन 85% हिस्सा ग्रामीण था। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की कुल स्थिति कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश करती है। मसलन, सरकारी आँकड़ों के मुताबिक यहाँ लगभग 76% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।

परिणाम
2017 से लेकर अगस्त 2021 के दौरान 129 क्षेत्रों में मरने वालों की संख्या नीचे की तालिका में दी गई है।

सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष और दर्ज की गई मौतों की संख्या


हमने पाया कि महामारी से पहले के वर्षों में इन इलाकों में साल-दर-साल दर्ज की गई मौतों की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई थी। यकीनन, 2017 और 2018 के दौरान दर्ज की गई मौतों में 9% की बढ़ोतरी हुई थी और फिर 2018 और 2019 के बीच 23% की बढ़ोतरी के साथ मौतों को दर्ज किया गया। यह इस कारण से भी संभव है कि बाद में बेहतर रिकॉर्ड-कीपिंग या सही तरीके से आँकड़ों को इकट्ठा करने की वजह से इस तरह का परिणाम सामने आया हो।

असल में, कुछ स्थानीय अधिकारियों ने हमारी टीम के समक्ष इस बात को स्वीकार किया कि उन्होंने गाँव में होने वाली सभी मौतों का रिकॉर्ड नहीं रखा है। उन्होंने बताया कि वे उसी मृत्यु का पंजीकरण करते हैं जो उनके पास मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आते हैं। उन्होंने बताया कि मृत्यु का प्रमाण पत्र या मृतक व्यक्ति का नाम मृत्यु रजिस्टर में दर्ज करने की जरूरत आमतौर पर उसी परिवार को होती है जिसको कि पेंशन लाभ मिल रहा हो, जीवन बीमा के लिए दावा पेश करना हो, संपत्ति का हस्तांतरण करना हो या फिर बैंक खातों से जुड़ी हुई जरूरतों को पूरा करना हो। ऐसे में मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत संबंधियों को पड़ती है।

ऐसा लगता है कि समय के साथ अधिक से अधिक परिवार स्थानीय अधिकारियों के समक्ष मृत्यु संबंधी जानकारी देने लगे हैं।

महामारी के दौरान, हमने मृत्यु दर में भारी इजाफा देखा है। इस लिहाज से क्या यह समझा जाए कि और अधिक परिवारों को मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत को ध्यान में रखते हुए इस रिकॉर्ड-कीपिंग में सुधार हुआ होगा? क्या इसके जरिए 2019 और 2020 के दौरान और फिर 2020 और अगस्त 2021 के बीच, मृत्यु दर में हुई वृद्धि की व्याख्या की जा सकती है? बारीकी से देखने पर पता चलता है कि यह बेहद असंभव है। ऐसा क्यों? आइये इसे जानने की कोशिश करते हैं।

हम अपने आँकड़ों के जरिए, प्रत्येक समयावधि के लिए वार्षिक क्रूड डेथ रेट (Crude Death Rate or CDR) की गणना कर सकते हैं, अर्थात सर्वेक्षण की गई आबादी में प्रति वर्ष प्रति 1,000 आबादी पर होने वाली मौतों की संख्या को दर्ज किया जा सकता है।

यह संख्या नीचे की तालिका में दी गई है।

सर्वेक्षण किए गए क्षेत्रों में दर्ज मौतों से गणना की गई वार्षिक क्रूड डेथ रेट (CDR)



हम देखते है कि मृत्यु रिकॉर्ड के अनुसार 2017-2019 में यानि महामारी से पहले के वर्षों के दौरान क्रूड डेथ रेट (CDR) बढ़ रहा था। निसंदेह यह मृत्यु दर में वृद्धि का संकेत नहीं था बल्कि मृत्यु पंजीकरण की बेहतरी को प्रदर्शित करता है।

2019 नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System – SRS) बुलेटिन में सरकारी अनुमानों के अनुसार, समग्र रूप से उत्तर प्रदेश के लिए वास्तविक सीडीआर (CDR) 6.5 (ग्रामीण क्षेत्रों में 6.9 और शहरी क्षेत्रों में 5.3) है। ग्रामीण-शहरी मिश्रित आबादी के सर्वेक्षण के आधार पर, हम उम्मीद करते है कि सर्वेक्षण किये गए क्षेत्रों में क्रूड डेथ रेट (CDR) 6.7 के आसपास रहेगा। हम पाते हैं कि 2019 तक दर्ज जनसंख्या आँकड़ों में क्रूड डेथ रेट (CDR) 6.4 थी जो कि राज्य के आँकड़ों और उम्मीद के मुताबिक़ काफी करीब जान पड़ती है। इस संख्या को बढ़ाने के लिए रिपोर्ट दर्ज में और अधिक सुधार की गुंजाइश नहीं बचती।

यह महत्त्वपूर्ण है कि 2020 में, इन क्षेत्रों में क्रूड डेथ रेट (CDR) तकरीबन 15 से 20% ज़्यादा है। जो कि 2019 के अनुमानित आँकड़ों से या फिर वार्षिक नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) से राज्य-व्यापी अनुमानों की उम्मीदों से अधिक है। हम पाते हैं कि जनवरी-अगस्त 2021 के दौरान यह मृत्यु दर दोगुनी से भी अधिक हो गई थी जो कि आश्चर्यजनक रूप से चकित कर देने वाली थी।

यदि यह मान भी लिया जाए कि उत्तर प्रदेश में महामारी से पहले के वर्षों में नमूना पंजीकरण प्रणाली को कम आँका गया, और यह भी मान लें कि महामारी के दौरान रिकॉर्ड-कीपिंग बहुत बेहतर तरीके से की गई (वास्तव में जो कि संभव नहीं है, खासतौर से लॉकडाउन के दौरान जब मृत्यु पंजीकरण में काफी मुश्किलें आ रही थीं)। इसके बावजूद भी हम महामारी के दौरान होने वाली मौतों को उम्मीद से कहीं अधिक पाते हैं।

दर्ज मौतों में इतनी ज़्यादा बढ़ोतरी समझ से परे है। दरअसल मौतों में हुई यह बढ़ोतरी यकीनी तौर पर दर्शाती है कि मरने वालों की संख्या, बतायी गई संख्या कही अधिक है।

हम लोग मृत्यु दर में इस उछाल को समझने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को अलग-अलग कर के और बेहतर जानकारी पाने की कोशिश कर सकते हैं। ग्रामीण और शहरी आँकड़ों का विश्लेषणऔर पड़ताल करते हुए हमें निम्न वार्षिक क्रूड डेथ रेट (CDR) मूल्य मिलते हैं।

सर्वेक्षण किए गए क्षेत्रों में दर्ज मौतों से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वार्षिक सीडीआर की गणना



सर्वेक्षण किये गए क्षेत्रों में हमने देखा कि 2020 के दौरान क्रूड डेथ रेट (CDR) में उभार मुख्यतः शहरी इलाकों में हुई मौतों के कारण से ज़्यादा आया। लेकिन ऐसा मान लेना या दावा करना कि ग्रामीण इलाकों में मृत्यु दर में वृद्धि नहीं हुई, सही नहीं होगा। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि 2019 से 2020 के बीच मामूली ही सही परन्तु यह स्पष्ट है कि गाँव में भी मौतें होने की ख़बरें है।

जनवरी-अगस्त 2021 के दौरान ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों से अचानक मरने वालों की संख्याओं में बढ़ोतरी हुई। बेशक, ग्रामीण क्षेत्रों में पहले आठ महीनों के दौरान 2019 के आँकड़ों की तुलना दोगुनी थी। और नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS)- अनुमानित ग्रामीण क्रूड डेथ रेट (CDR) के आधार पर अपेक्षा से लगभग 80% अधिक था।

दूसरी लहर के दौरान कोविड से मरने वालों में राजकीय शिक्षक की रिपोर्ट और उत्तर प्रदेश के गाँव में वायरस के द्वारा मौतें और तबाही के मंजर को हिंदी प्रेस लगातार रिपोर्ट के माध्यम से सामने ला रहा था।

सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में महामारी से हुई मृत्यु का जायजा
हम यकीनी तौर पर नहीं कह सकते कि जो स्थिति पूर्वांचल के उन हिस्सों में बनी हुई थी जहाँ कि हम गए थे, वही स्थिति पूरे राज्य में सभी जगहों पर थी। लेकिन हम इतना तो जरूर ही सवाल उठा सकते हैं कि सर्वेक्षण वाले इलाके में मौत का जो तांडव देखा गया तो कोई ऐसा कारण न दिखता है कि ऐसा पूरे राज्य मेंन हुआहो।यदि ऐसा हुआ है तो फिर पूरे उत्तर प्रदेश में महामारी से होने वाली मौत की तादाद क्या होगी?

जनवरी 2020 से अगस्त 2021 तक यानि इन 20 महीनों के दौरानहुई मौतों का जो आँकड़ा हमारी सर्वेक्षण टीम ने इस क्षेत्र में जुटाया वहाँ उम्मीदों से कहीं अधिक 55 से 60% मौतें दर्ज हुईं। जिसका अर्थ यह है कि यदि पूरे उत्तर प्रदेश में, 20 महीनों की अवधि के दौरान 55 से 60% की वृद्धि होती है तो तकरीबन यह संख्या 14 लाख की होगी।

इस आँकड़ें को समझने के लिए, ध्यान रखें कि नमूना पंजीकरण प्रणाली और नागरिक पंजीकरण डाटा के आधार पर किसी एक सामान्य वर्ष में उत्तर प्रदेश में लगभग 15 लाख लोगों की मौतें होने की उम्मीद होती है। ऐसे में राज्य में महामारी से मरने वालों की यह संख्या लगभग पूरे एक साल में होने वाली मौतों के बराबर है।

इस चौंकाने वाली संख्या का एक और नजरिया है, कि 2021 के अनुसार उत्तर प्रदेश की आबादी लगभग 23 करोड़ है। इसका अर्थ है कि यह 14 लाख लोग उत्तर प्रदेश की अनुमानित आबादी का लगभग 0.6% आबादी है। इसका मतलब यह है कि राज्य की 0.6% जनसंख्या महामारी के चलते वक़्त से पहले मौत के आगोश में चली गई।

इसकी तुलना भारत के दूसरे हिस्सों में फैली महामारी से कैसे की जाए?

यहबढ़ोतरी काफ़ी ज़्यादा है। आंध्र प्रदेश राज्य के पास बेहतरीन नागरिक पंजीकरण डेटा मौजूद है और इस प्रदेश ने भारत में सबसे अधिक महामारी से मरने वालों की सूचना दी है। आंध्र प्रदेश में अनुमानित मृत्यु दर राज्य की जनसंख्या की 0.5% से कुछ अधिक रही है। इसलिए हमारा सर्वेक्षण बताता है कि जब भी महामारी से मौत के तांडव की बात आएगी, तो उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश से कहीं अधिक भयावह स्थिति को दर्शाएगा। बल्कि यूँ कहा जाए कि भारत में शायद सबसे ज़्यादाभयावह स्थिति का मंजर पेश करेगा।

परिणाम की समझ
जैसे ही हम नतीजे की तरफ बढ़े, उपलब्ध आँकड़ों ने हमारे भयावह डर को स्पष्ट तौर पर बयान  कर दिया। वास्तव में, कोविड-19 ने पूर्वांचल के हर शहर और गाँव में मौत की भयानक छाप  छोड़ी थी।

आँकड़ों में जो विवरण है उसकी पुष्टि कई तरह के साक्ष्यों द्वारा की गई थी। सामाजिक विज्ञानकी शोधकर्ता, डॉक्टर मुनीज़ा खान जिन्होंनेइनआँकड़ों को संकलित किया है, वे बतातीहैं, “हम इन चार जिलों में इतनीभारी तादाद में हुई मौतों की संख्या से स्तब्ध हैं। आशा वर्कर्स और पंचायत मुखियाओं का कहना है कि उन्होंने ऐसा कोई घर नहीं देखा या पाया जहाँ कोविड-19 के कारण किसी की मौत न हुई हो।”

डॉक्टर मुनीज़ा खान याद करते हुए बताती हैं कि किस तरह पीड़ित परिवारों के सदस्य आदिकेशव घाट पर उमड़े थे जहाँ पर कोविड-19 से मरने वालों के शवों को उनके अंतिम संस्कार के लिए भेजा गया था। डॉक्टर खान बताती हैं कि घाट पूरी तरह मृतकों के परिवारवालों से भरा हुआ था जो अपने प्रियजनों को आख़िरी विदाई या अलविदा कहने के लिए वहाँ अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। जबकि अंतिम संस्कार करने वाले लोगों को दाह संस्कार करने के लिए चिता जलाने वाली लकड़ी हासिल करने के लिए जूझना और संघर्ष करना पड़ रहा था। “अंततः जलने वाली लकड़ियाँ खत्म हो गयीं। फिर क्या था, जो मृत शरीर पूरी तरह से नहीं जल पाया था उसे ऐसे ही गंगा में फेंक दिया गया।” वे बताती हैं, “इसके बाद अभी भी लम्बी कतारें मौजूद थीं।”

अस्पताल और श्मशान ही नहीं, बल्कि कब्रिस्तान में भी मुसलमानोंने लम्बी कतारें लगाये हुए खड़े थे और यहाँ तक कि दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के यहाँ भी कुछ ऐसा ही वीभत्स मंजर देखा जा रहा था।वहाँ काम करने वाले लोग ओवरटाइम कर रहे थे। वे कब्र खोद रहे थे यहाँ तक कि जब जगह खत्म हो गई तो लोग बाहर खड़े होकर इंतज़ार करने लगे। ऐसे ही एक अंतिम संस्कार के लिए काम करने वाले वर्कर जो किबनारस के रामनगर इलाके में, शहर के पास काम कर रहे थे, उन्होंनेसी.जे.पी. कि टीम को बताया, “मैं दिन भर कब्र खोदता रहा परन्तु कब्रिस्तान के बाहर लगी कतारें छोटी ही नहीं हो रही थीं।”

यह भी उल्लेखनीय है कि मुसलमानों,ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए भारत भर में कई कब्रिस्तानहैं,जहाँ वे अपने मृतकों को दफनाते हैं, परन्तु शवों की संख्या इतनी अधिक थी कि उन मृत शरीरों को दफनाने के लिए पुरानी कब्रों को भी खोदकर नए शवों के लिए उनका इस्तेमाल करना पड़ा।

इस त्रासदी को राज्य की बदहाल स्वास्थ्य सेवा और कल्याणकारी बुनियादी ढांचे की गैरमौजूदगी ने और भी भयावह बना दिया। राहत कार्य के दौरान पहले हीसी.जे.पी. टीम ने देखा था कि कैसे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ नदारद रहती हैं। कई परिवार सी.जी.पी टीम के कार्यालय पर दवाइयां और ऑक्सिमीटर लेने के लिए आते थे। शहर और गाँव दोनों ही जगह पर, शिक्षा और तीनों समय मिलने वाला भोजन हर रोज की चुनौती बन चुका था। एक बुज़ुर्ग व्यक्ति ने डॉक्टर मुनीजा खान से कहा, “पिछले दो साल मेरे जीवन के सबसे दर्दनाक साल रहे हैं। मैं इस समय को कभी याद भी नहीं करना चाहता हूँ।”

निष्कर्ष
हमने अपनी शोध और जाँच पड़ताल में पाया कि वाराणसी और उसके आसपास के इलाकों में महामारी के दौरान हुई मौतों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोतरी हुई है। यह जाँच उस व्यवस्थित महामारी की अधिकारिक कहानी से बिल्कुल ही अलग है,जिसे महामारी के प्रभाव को बहुत सीमितकर के दिखाया जाताहै। यहाँ तक कि, कुछ क्षेत्रों के लोगों ने हमें बताया कि प्रत्येक घर ने अपने परिवार से किसी न किसी को वायरस की महामारी के चलते और स्वास्थ्य सेवाओंकी बदहाली के कारण खोया है।

जबकि 2021 में, दूसरी लहर के दौरान मृत्यु दर में भारी तादाद में वृद्धि हुई थी। संभवतः 2020 के दौरान भी काफी संख्या में मौतें हुई थी। हालाँकि 2020 में हुई अतिरिक्त मौतें शहरी क्षेत्रों तक ही ज़्यादा थी लेकिन जिन ग्रामीण क्षेत्रों का हमने सर्वेक्षण किया वहाँ पाया कि 2019 की तुलना में इन क्षेत्रों में भी 20% अधिक मौतें 2020 हुईं।

शायद ही ऐसा कोई पुख्ता सबूत हो जो कि इसस्थिति के लिए रिकॉर्ड-कीपिंग को दर्शाता हो। इसके विपरीत, देश के कई हिस्सों के आँकड़ों से पता चलता है कि 2020 के शुरुआती दौर में  मृत्यु पंजीकरण में गिरावट आई थी। इसका महत्वपूर्ण कारण राष्ट्रव्यापी तालाबंदी का होना था।

हमारे सैंपल से पता चलता है कि जनवरी से अगस्त 2021 तक मरने वालों की संख्या 2019 के आँकड़ों और नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) के अनुमान की तुलना में दोगुनी थी। इस जनसंख्या को आधार मानकरआठ महीने की अवधि में, 2019 के रिकॉर्ड के अनुसार या नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) में अनुमानित राज्य की मृत्यु दर के अनुसार 1200 उम्मीद की जाती है। जबकि हमने उस इलाके में 2,570 मौतों का आँकड़ा दर्ज किया।

हालाँकि हमने जिस आबादी का सर्वेक्षण किया वह अधिकांशतः वाराणसी जिले के इर्द-गिर्द रहती है, परन्तु हमारा आँकड़ा बताता है कि खासतौर से दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुआ था। यह अत्यंत जरूरी है कि राज्य के दूसरे हिस्सों का भी सर्वेक्षण हो ताकि कोविड-19 महामारी के प्रभाव का सही और सटीक आकलन किया जा सके और साथ ही राज्य में सरकार के द्वारा परदे के पीछे से जिस तरह का दुष्प्रचार चलाया जा रहा है उसकी असलियत को सामने लाया जाएताकि लोगों को पता चल सके कि इस राज्य में कितने जीवन समय से पहले ही समाप्त हो गए।

*यह रिपोर्ट सबसे पहले अंग्रेजी भाषा में द वायर पर प्रकाशित हुई थी और इसे यहां पढ़ा जा सकता है।
**विजय पांडे द्वारा फीचर इमेज।

बाकी ख़बरें