पुस्तकें
‘मुझे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से क्यों निकाला गया’ और ‘सत्ता की सूली’ पुस्तक का विमोचन
Published Date:
Thursday 25th April 2019 Asia/Kolkata
Summary:
लखनऊ। गांधी भवन लखनऊ में मशहूर गांधीवादी कार्यकर्ता और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डा. संदीप पांडेय की किताब ’मुझे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से क्यों निकाला गया’ और वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र मिश्रा, प्रदीप सिंह और उपेन्द्र चौधरी की किताब ’सत्ता की सूली’ का विमोचन कार्यक्रम हुआ।
इस अवसर पर सभा को सम्बोधित करते हुए संदीप पांडेय ने कहा कि बीएचयू में आईआईटी के छात्रों को पढ़ाने के लिए उनका साल भर का अनुबंध था। लेकिन बीएचयू प्रशासन ने उन पर देशद्रोही होने का आरोप लगाते हुए अनुबंध की समय सीमा समाप्त होने पहले ही निकाल दिया। आरोप लगाया गया कि वो नक्सल समर्थक और कश्मीर के अलगाववादियों के समर्थक हैं। वे बताते हैं कि कश्मीर समस्या पर उन्होंने कहा था कि यह कश्मीरियों का हक है कि वह अपने बारे में निर्णय लें। किसी दूसरे पक्ष को यह अधिकार नहीं कि वो उनका भविष्य तय करें। उन्होंने एक आईआईटियन प्रशांत राही का लेक्चर करवाया था जिसकी वजह से उनको नक्सली कहा जाने लगा।
हालांकि उसी बीएचयू में आतंक के संदिग्ध के रूप में नाम कमाने वाले इंद्रेश कुमार और भाजपा के फायर ब्रांड नेता सुब्राणियम स्वामी का कार्यक्रम भी हो चुका था। तीसरा आरोप उन पर साइबर क्राइम के तहत उस समय लगाया गया जब उन्होंने अपने छात्रों को बीबीसी की फिल्म ’इंडिआज़ डॉटर’ दिखाने का कार्यक्रम बनाया था लेकिन प्रॉक्टर और थानाध्यक्ष लंका पुलिस स्टेषन ने उन्हें ऐसा करने से रोका तो उन्होंने उसका लिंक जारी कर दिया और उसकी जगह दूसरी फिल्म दिखाई लेकिन चर्चा में उस फिल्म पर भी चर्चा हुई।
उन्होंने कहा कि यह आरोप वैचारिक मतभेद के कारण एक साज़िश के तहत लगाए गए थे। इस मामले में शिकायतकर्ता आरएसएस से जुड़े कौशल कुमार मिश्रा का शिष्य और राजनीतिक शास्त्र का छात्र है। उसी की शिकायत पर उन्हें बीएचयू से निकाला गया था। लेकिन हाईकोर्ट ने तमाम आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें अरोपमुक्त कर दिया हालांकि तब तक उनके अनुबंध की अवधि समाप्त हो चुकी थी। किताब बीएचयू में छात्रों में वैज्ञानिक चेतना पैदा करने के उनके प्रयासों के विस्तृत विवरण के साथ आरएसएस की विचारधारा से संचालित विष्वविद्यालय प्रशासन ने जिस तरह से उन्हें वहां से निकालने की साज़िशें की उनका खुलासा करती हैं।
जनचौक डॉट कॉम के सम्पादक और वरिष्ठ प्रत्रकार महेंद्र मिश्रा ने कहा कि गुजरात में हरेन पंडया, सोहराबुद्दीन, कौसर बी, तुलसी राम प्रजापति की हत्या से लेकर जस्टिस लोया, श्रीकांत खण्डालकर और प्रकाश थोम्ब्रे की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत को हत्या के रूप में देखा जाता है। आम तौर पर इन हत्याओं को अलग-अलग घटनाओं के तौर पर देखा जाता है। लेकिन यह सभी घटनाएं एक दूसरे से इस कदर जुड़ी हुई हैं कि हर दूसरी घटना पहली घटना के बाद मजबूरी बन गई दिखती हैं। इनका आपस में गहरा संबन्ध है। किताब ’सत्ता की सूली’ दस्तावेज़ों के आधार पर लिखी गई है और निष्कर्ष पाठकों पर छोड़ दिया गया है।
उन्होंने कहा कि जस्टिस लोया का मामला सुप्रीम कोर्ट में लाया ही इसीलिए गया था कि उससे सम्बंधित सभी दस्तावेज़ इकट्ठा करके मामला वहीं खत्म कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि एडवोकेट सतीश उइके इस मामले के एक महत्वपूर्ण गवाह हैं। उन्होंने घटना से सम्बंधित कुछ अहम सबूत बचा लिए थे। इस मामले का एक महत्वपूर्ण बयान आज़म खां का है जिसने अपने बयान में कहा है कि सोहराबुद्दीन ने जेल में उसे बताया था कि हरेन पंडया की हत्या उसके कहने पर तुलसी राम प्रजापति ने की थी और इसके लिए सुपारी पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा ने दी थी।
महेंद्र मिश्रा ने कहा कि जिस तरह रफायल मामले में नए तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट एक बार निर्णय देने के बाद भी दोबारा सुनवाई कर रहा है उसी तरह नए तथ्यों के आने के बाद लोया मामले की सुनवाई भी होनी चाहिए। पुस्तक में 2002 के दंगों और उसके बाद पुलिस अधिकारियों की मीटिंग में मोदी के हिंदुओं को गुस्सा निकालने के लिए दो दिन छूट देने का निर्देश देने का मामला भी शामिल है। जिसमें हरेन पंडया ने अपने साक्षात्कार के बाद किसी भी हालत में लिखित या मौखिक रूप से अपना नाम न लेने का आग्रह किया था। उन्हें आशंका थी कि यदि ऐसा होता है तो उनकी हत्या भी करवाई जा सकती है।
कार्यक्रम को बीएचयू छात्रा प्रविता आनंद, गिरीषचंद्र पांडेय, रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब एडवोकेट, एसके पंजम, गौरव सिंह, राम कृष्ण, शिवाजी राय, के0के0 वत्स आदि ने सम्बोधित किया। संचालन राजीव यादव और धन्यवाद ज्ञापन हफीज किदवई ने किया। इस अवसर पर मसीहुद्दीन संजरी, सृजनयोगी आदियोग, अब्दुल अजीम आजमी, रॉबिन वर्मा, शरद पटेल, सरफराज, अनुराग शुक्ला, वीरेन्द्र गुप्ता, शहला गानिम, अजय शर्मा, ज्योती राय, अजाद शेखर, डा. एमडी खान, अजीजुल हसन, रवीन्द्र आदि मौजूद रहे।
इस अवसर पर सभा को सम्बोधित करते हुए संदीप पांडेय ने कहा कि बीएचयू में आईआईटी के छात्रों को पढ़ाने के लिए उनका साल भर का अनुबंध था। लेकिन बीएचयू प्रशासन ने उन पर देशद्रोही होने का आरोप लगाते हुए अनुबंध की समय सीमा समाप्त होने पहले ही निकाल दिया। आरोप लगाया गया कि वो नक्सल समर्थक और कश्मीर के अलगाववादियों के समर्थक हैं। वे बताते हैं कि कश्मीर समस्या पर उन्होंने कहा था कि यह कश्मीरियों का हक है कि वह अपने बारे में निर्णय लें। किसी दूसरे पक्ष को यह अधिकार नहीं कि वो उनका भविष्य तय करें। उन्होंने एक आईआईटियन प्रशांत राही का लेक्चर करवाया था जिसकी वजह से उनको नक्सली कहा जाने लगा।
हालांकि उसी बीएचयू में आतंक के संदिग्ध के रूप में नाम कमाने वाले इंद्रेश कुमार और भाजपा के फायर ब्रांड नेता सुब्राणियम स्वामी का कार्यक्रम भी हो चुका था। तीसरा आरोप उन पर साइबर क्राइम के तहत उस समय लगाया गया जब उन्होंने अपने छात्रों को बीबीसी की फिल्म ’इंडिआज़ डॉटर’ दिखाने का कार्यक्रम बनाया था लेकिन प्रॉक्टर और थानाध्यक्ष लंका पुलिस स्टेषन ने उन्हें ऐसा करने से रोका तो उन्होंने उसका लिंक जारी कर दिया और उसकी जगह दूसरी फिल्म दिखाई लेकिन चर्चा में उस फिल्म पर भी चर्चा हुई।
उन्होंने कहा कि यह आरोप वैचारिक मतभेद के कारण एक साज़िश के तहत लगाए गए थे। इस मामले में शिकायतकर्ता आरएसएस से जुड़े कौशल कुमार मिश्रा का शिष्य और राजनीतिक शास्त्र का छात्र है। उसी की शिकायत पर उन्हें बीएचयू से निकाला गया था। लेकिन हाईकोर्ट ने तमाम आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें अरोपमुक्त कर दिया हालांकि तब तक उनके अनुबंध की अवधि समाप्त हो चुकी थी। किताब बीएचयू में छात्रों में वैज्ञानिक चेतना पैदा करने के उनके प्रयासों के विस्तृत विवरण के साथ आरएसएस की विचारधारा से संचालित विष्वविद्यालय प्रशासन ने जिस तरह से उन्हें वहां से निकालने की साज़िशें की उनका खुलासा करती हैं।
जनचौक डॉट कॉम के सम्पादक और वरिष्ठ प्रत्रकार महेंद्र मिश्रा ने कहा कि गुजरात में हरेन पंडया, सोहराबुद्दीन, कौसर बी, तुलसी राम प्रजापति की हत्या से लेकर जस्टिस लोया, श्रीकांत खण्डालकर और प्रकाश थोम्ब्रे की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत को हत्या के रूप में देखा जाता है। आम तौर पर इन हत्याओं को अलग-अलग घटनाओं के तौर पर देखा जाता है। लेकिन यह सभी घटनाएं एक दूसरे से इस कदर जुड़ी हुई हैं कि हर दूसरी घटना पहली घटना के बाद मजबूरी बन गई दिखती हैं। इनका आपस में गहरा संबन्ध है। किताब ’सत्ता की सूली’ दस्तावेज़ों के आधार पर लिखी गई है और निष्कर्ष पाठकों पर छोड़ दिया गया है।
उन्होंने कहा कि जस्टिस लोया का मामला सुप्रीम कोर्ट में लाया ही इसीलिए गया था कि उससे सम्बंधित सभी दस्तावेज़ इकट्ठा करके मामला वहीं खत्म कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि एडवोकेट सतीश उइके इस मामले के एक महत्वपूर्ण गवाह हैं। उन्होंने घटना से सम्बंधित कुछ अहम सबूत बचा लिए थे। इस मामले का एक महत्वपूर्ण बयान आज़म खां का है जिसने अपने बयान में कहा है कि सोहराबुद्दीन ने जेल में उसे बताया था कि हरेन पंडया की हत्या उसके कहने पर तुलसी राम प्रजापति ने की थी और इसके लिए सुपारी पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा ने दी थी।
महेंद्र मिश्रा ने कहा कि जिस तरह रफायल मामले में नए तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट एक बार निर्णय देने के बाद भी दोबारा सुनवाई कर रहा है उसी तरह नए तथ्यों के आने के बाद लोया मामले की सुनवाई भी होनी चाहिए। पुस्तक में 2002 के दंगों और उसके बाद पुलिस अधिकारियों की मीटिंग में मोदी के हिंदुओं को गुस्सा निकालने के लिए दो दिन छूट देने का निर्देश देने का मामला भी शामिल है। जिसमें हरेन पंडया ने अपने साक्षात्कार के बाद किसी भी हालत में लिखित या मौखिक रूप से अपना नाम न लेने का आग्रह किया था। उन्हें आशंका थी कि यदि ऐसा होता है तो उनकी हत्या भी करवाई जा सकती है।
कार्यक्रम को बीएचयू छात्रा प्रविता आनंद, गिरीषचंद्र पांडेय, रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब एडवोकेट, एसके पंजम, गौरव सिंह, राम कृष्ण, शिवाजी राय, के0के0 वत्स आदि ने सम्बोधित किया। संचालन राजीव यादव और धन्यवाद ज्ञापन हफीज किदवई ने किया। इस अवसर पर मसीहुद्दीन संजरी, सृजनयोगी आदियोग, अब्दुल अजीम आजमी, रॉबिन वर्मा, शरद पटेल, सरफराज, अनुराग शुक्ला, वीरेन्द्र गुप्ता, शहला गानिम, अजय शर्मा, ज्योती राय, अजाद शेखर, डा. एमडी खान, अजीजुल हसन, रवीन्द्र आदि मौजूद रहे।