2023 में, इस मामले को कथित तौर पर हिंदुत्व समूहों ने बढ़ावा दिया, जिसकी आड़ में उत्तरकाशी के पहाड़ी इलाके से छोटी सी मुस्लिम आबादी को भगा दिया गया था।
देहरादून: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला में ‘लव जिहाद’ मामला, जिसका इस्तेमाल 2023 की गर्मियों में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा/आरएसएस (भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) गठबंधन ने ‘इस्लामोफोबिया’ फैलाने के लिए किया था, हिंदू समूहों की धमकियों के बाद शहर से छोटी मुस्लिम आबादी को भगा दिया गया था, वह मामला अदालत में फ्लॉप हो गया है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरने वाली इस घटना के एक साल बाद उत्तरकाशी की एक स्थानीय सत्र अदालत ने नाबालिग हिंदू लड़की के अपहरण के दो आरोपी लोगों, एक हिंदू और एक मुस्लिम को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। वे दो लोग - उवैद खान, उम्र 22, और उनके दोस्त जितेंद्र सैनी उम्र 24 हैं, जिन पर एक नाबालिग हिंदू लड़की को "लव जिहाद" की साजिश के तहत इस्लाम क़बूल कराने के इरादे से अपहरण करने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। दोनों पर लड़की को भगाने के इरादे से उससे बात करने का आरोप था। उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत नाबालिग का कथित अपहरण और खरीद-फरोख्त और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।
"लव जिहाद" शब्द भाजपा/आरएसएस द्वारा गढ़ा गया है, जिसमें मुस्लिम पुरुषों पर हिंदू महिलाओं को प्रेम संबंधों में फंसाने और अंततः उन्हें इस्लाम क़बूल कराने का आरोप लगाया जाता है।
उत्तरकाशी स्थित बचाव पक्ष के वकील हलीम बेग ने कहा कि, "दोनों आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया है, क्योंकि आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकी और लड़की ने भी इनकार कर दिया है।"
इस घटना के बाद पुरोला में दक्षिणपंथी संगठनों ने पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ एक सुनियोजित अभियान चलाया। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा समर्थित स्थानीय व्यापारियों के संगठनों के आह्वान पर आयोजित विशाल जुलूसों के दौरान उनकी दुकानों और घरों पर हमला किया गया था।
विश्व हिंदू परिषद और देवभूमि रक्षा अभियान जैसे दक्षिणपंथी संगठनों ने मुसलमानों पर ‘लव जिहाद’ में लिप्त होने का आरोप लगाते हुए उन्हें 15 जून 2023 तक पुरोला छोड़ने की धमकी और चेतावनी दी थी।
पुरोला के 40 मुस्लिम परिवारों में से 14 ने तब शहर छोड़ दिया था जब उनकी दुकानों पर पोस्टर चिपका दिए गए और उनमें से कुछ पर काले रंग का क्रॉस का निशान लगा दिया गया था, जो नाजी युग के जर्मनी की याद दिलाता है।
दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों ने 15 जून को एक महापंचायत भी बुलाई थी जिसमें सभी पहाड़ी इलाकों से मुसलमानों को बाहर निकालने का आह्वान किया गया था। नैनीताल हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद महापंचायत तो रद्द कर दी गई लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ बदनामी का अभियान बदस्तूर जारी रहा।
अदालत ने पाया कि आरोप झूठे हैं
घटना के एक साल से भी कम समय बाद, 10 मई, 2024 को उत्तरकाशी सत्र न्यायालय ने फैसला सुनाया कि दोनों युवकों के खिलाफ आरोप झूठे थे। दिलचस्प बात यह है कि मुकदमे के दौरान, कथित तौर पर अपहृत की गई 14 वर्षीय लड़की ने अदालत को बताया कि पुलिस ने उसे खान और सैनी पर आरोप लगाने के लिए उकसाया था।
अदालत ने मामले के एकमात्र चश्मदीद गवाह - आरएसएस के सदस्य आशीष चुनार के बयान में भी विसंगतियां पाईं। जून 2023 से जेल में बंद दोनों आरोपियों को मामले में जुलाई 2023 में जमानत दे दी गई थी।
उत्तरकाशी सत्र न्यायाधीश गुरुबख्श सिंह ने अगस्त 2023 से मई 2024 तक मामले की 19 बार सुनवाई के दौरान पाया कि दोनों के खिलाफ अपहरण, नाबालिग की खरीद और यौन उत्पीड़न के आरोप झूठे थे।
घटना के मुख्य चश्मदीद, पुरोला में कंप्यूटर की दुकान चलाने वाले आरएसएस सदस्य चुनार ने नाबालिग लड़की के चाचा को फोन करके बताया था कि कस्बे के पेट्रोल पंप के पास दो लोग उसकी भतीजी को टेंपो पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। पुरोला थाने में लड़की के चाचा द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार, वे लोग उसे 18 किलोमीटर दूर नौगांव ले जाने की कोशिश कर रहे थे। शिकायत के अनुसार, चुनार के हस्तक्षेप के बाद वे दोनों भाग गए। इसके बाद आरएसएस कार्यकर्ता लड़की को अपनी दुकान पर ले आया।
शिकायत में चाचा ने बताया कि उनकी भतीजी ने उन्हें क्या बताया था, कि खान और सैनी उसे धोखे से पेट्रोल पंप पर ले आए थे। खान ने खुद का नाम अंकित बताया था। शिकायत में कहा गया है कि पेट्रोल पंप पर उन्होंने एक टेम्पो ड्राइवर को बुलाया और उसे शादी का झांसा देकर अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन चुनार और एक अन्य व्यक्ति ने उसे देख लिया और लड़की को बचा लिया।
मुकदमे के दौरान, जब नाबालिग के चाचा से बचाव पक्ष के वकीलों ने जिरह की, तो उन्होंने अदालत को बताया कि उनकी भतीजी ने “उन्हें घटना के बारे में कुछ नहीं बताया” और उन्होंने “आशीष चुनार के निर्देश पर” शिकायत लिखवाई थी। अदालत के फैसले में उनके हवाले से कहा गया है कि, “मैंने वही लिखा जो आशीष चुनार ने मुझे बताया था।”
जिरह के दौरान लड़की की चाची ने अदालत को यह भी बताया कि उसकी भतीजी ने उसे घटना के बारे में नहीं बताया और आरोपी का नाम भी नहीं बताया था। फैसले में कहा गया कि, "उसने सिर्फ इतना कहा कि वह कपड़े सिलवाने के लिए घर से निकली थी और आशीष चुनार उसे अपनी दुकान पर ले गया था।"
खान और सैनी को ट्रायल के दौरान चुनार के सामने पेश किया गया। चुनार ने अदालत को बताया कि 26 मई को उसने दो लोगों को नाबालिग से बात करते देखा था। लेकिन उसने कहा कि खान और सैनी वे दो लोग नहीं थे। चुनार ने इस आरोप से इनकार किया कि नाबालिग के चाचा ने उसके कहने पर पुलिस शिकायत लिखवाई थी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि नाबालिग लड़की ने अदालत में जो बयान दिया, वह 27 मई, 2023 को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत सिविल जज के समक्ष दिए गए उसके बयान से मेल नहीं खाता है। अपने बयान में, उसने कहा था कि जब उसने उनसे दर्जी की दुकान का रास्ता पूछा, तो खान और सैनी उसे पेट्रोल स्टेशन ले गए और एक टेम्पो बुलाया। उसने कहा, "उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे टेम्पो के अंदर बैठाने की कोशिश की।" "मैंने कहा कि मेरा हाथ छोड़ दो। फिर मेरा रिश्तेदार आशीष चुनार आया। उसे देखते ही दोनों आदमी भाग गए। उसने [चुनार] मुझे अपनी दुकान पर बैठाया और मेरे परिवार को बुलाया।"
जिरह के दौरान नाबालिग ने अदालत को बताया कि पुलिस ने उसे खान और सैनी को फंसाने वाला बयान देने के लिए उकसाया था। उसने कहा कि, "बयान देने से पहले पुलिस ने मुझे समझाया था कि मुझे क्या-क्या कहना है और यही मैंने मैडम [सिविल जज] को बताया।" "मैंने बयान नहीं पढ़ा, बस उस पर हस्ताक्षर किए थे।
सत्र न्यायालय में नाबालिग लड़की ने बताया कि उस दिन क्या हुआ था। फैसले में कहा गया कि, "उसने ज्यादातर यही कहा कि उसने आरोपी से दर्जी की दुकान के बारे में पूछा था।" "वह आरोपी के साथ दर्जी की दुकान पर गई थी। उसने यह भी कहा कि आरोपी उसे कहीं नहीं ले जा रहे थे। जिरह के दौरान उसने कहा कि आरोपी ने उसका पीछा नहीं किया था।"
जज सिंह ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने के लिए कोई बयान या सबूत पेश नहीं किया कि खान और सैनी ने नाबालिग को दुराचार के इरादे से छुआ था। उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि, "रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर विचार करते हुए, यह विशेष अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों से, आरोपी उवैद खान और जितेंद्र सैनी के खिलाफ आरोप/अभियोजन उचित संदेह से परे साबित नहीं होता है।" इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने खान और सैनी को बरी कर दिया।
लेखक, उत्तराखंड के देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
अनुवाद- महेश कुमार
साभार- न्यूजक्लिक
देहरादून: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला में ‘लव जिहाद’ मामला, जिसका इस्तेमाल 2023 की गर्मियों में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा/आरएसएस (भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) गठबंधन ने ‘इस्लामोफोबिया’ फैलाने के लिए किया था, हिंदू समूहों की धमकियों के बाद शहर से छोटी मुस्लिम आबादी को भगा दिया गया था, वह मामला अदालत में फ्लॉप हो गया है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरने वाली इस घटना के एक साल बाद उत्तरकाशी की एक स्थानीय सत्र अदालत ने नाबालिग हिंदू लड़की के अपहरण के दो आरोपी लोगों, एक हिंदू और एक मुस्लिम को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। वे दो लोग - उवैद खान, उम्र 22, और उनके दोस्त जितेंद्र सैनी उम्र 24 हैं, जिन पर एक नाबालिग हिंदू लड़की को "लव जिहाद" की साजिश के तहत इस्लाम क़बूल कराने के इरादे से अपहरण करने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। दोनों पर लड़की को भगाने के इरादे से उससे बात करने का आरोप था। उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत नाबालिग का कथित अपहरण और खरीद-फरोख्त और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।
"लव जिहाद" शब्द भाजपा/आरएसएस द्वारा गढ़ा गया है, जिसमें मुस्लिम पुरुषों पर हिंदू महिलाओं को प्रेम संबंधों में फंसाने और अंततः उन्हें इस्लाम क़बूल कराने का आरोप लगाया जाता है।
उत्तरकाशी स्थित बचाव पक्ष के वकील हलीम बेग ने कहा कि, "दोनों आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया है, क्योंकि आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकी और लड़की ने भी इनकार कर दिया है।"
इस घटना के बाद पुरोला में दक्षिणपंथी संगठनों ने पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ एक सुनियोजित अभियान चलाया। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा समर्थित स्थानीय व्यापारियों के संगठनों के आह्वान पर आयोजित विशाल जुलूसों के दौरान उनकी दुकानों और घरों पर हमला किया गया था।
विश्व हिंदू परिषद और देवभूमि रक्षा अभियान जैसे दक्षिणपंथी संगठनों ने मुसलमानों पर ‘लव जिहाद’ में लिप्त होने का आरोप लगाते हुए उन्हें 15 जून 2023 तक पुरोला छोड़ने की धमकी और चेतावनी दी थी।
पुरोला के 40 मुस्लिम परिवारों में से 14 ने तब शहर छोड़ दिया था जब उनकी दुकानों पर पोस्टर चिपका दिए गए और उनमें से कुछ पर काले रंग का क्रॉस का निशान लगा दिया गया था, जो नाजी युग के जर्मनी की याद दिलाता है।
दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों ने 15 जून को एक महापंचायत भी बुलाई थी जिसमें सभी पहाड़ी इलाकों से मुसलमानों को बाहर निकालने का आह्वान किया गया था। नैनीताल हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद महापंचायत तो रद्द कर दी गई लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ बदनामी का अभियान बदस्तूर जारी रहा।
अदालत ने पाया कि आरोप झूठे हैं
घटना के एक साल से भी कम समय बाद, 10 मई, 2024 को उत्तरकाशी सत्र न्यायालय ने फैसला सुनाया कि दोनों युवकों के खिलाफ आरोप झूठे थे। दिलचस्प बात यह है कि मुकदमे के दौरान, कथित तौर पर अपहृत की गई 14 वर्षीय लड़की ने अदालत को बताया कि पुलिस ने उसे खान और सैनी पर आरोप लगाने के लिए उकसाया था।
अदालत ने मामले के एकमात्र चश्मदीद गवाह - आरएसएस के सदस्य आशीष चुनार के बयान में भी विसंगतियां पाईं। जून 2023 से जेल में बंद दोनों आरोपियों को मामले में जुलाई 2023 में जमानत दे दी गई थी।
उत्तरकाशी सत्र न्यायाधीश गुरुबख्श सिंह ने अगस्त 2023 से मई 2024 तक मामले की 19 बार सुनवाई के दौरान पाया कि दोनों के खिलाफ अपहरण, नाबालिग की खरीद और यौन उत्पीड़न के आरोप झूठे थे।
घटना के मुख्य चश्मदीद, पुरोला में कंप्यूटर की दुकान चलाने वाले आरएसएस सदस्य चुनार ने नाबालिग लड़की के चाचा को फोन करके बताया था कि कस्बे के पेट्रोल पंप के पास दो लोग उसकी भतीजी को टेंपो पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। पुरोला थाने में लड़की के चाचा द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार, वे लोग उसे 18 किलोमीटर दूर नौगांव ले जाने की कोशिश कर रहे थे। शिकायत के अनुसार, चुनार के हस्तक्षेप के बाद वे दोनों भाग गए। इसके बाद आरएसएस कार्यकर्ता लड़की को अपनी दुकान पर ले आया।
शिकायत में चाचा ने बताया कि उनकी भतीजी ने उन्हें क्या बताया था, कि खान और सैनी उसे धोखे से पेट्रोल पंप पर ले आए थे। खान ने खुद का नाम अंकित बताया था। शिकायत में कहा गया है कि पेट्रोल पंप पर उन्होंने एक टेम्पो ड्राइवर को बुलाया और उसे शादी का झांसा देकर अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन चुनार और एक अन्य व्यक्ति ने उसे देख लिया और लड़की को बचा लिया।
मुकदमे के दौरान, जब नाबालिग के चाचा से बचाव पक्ष के वकीलों ने जिरह की, तो उन्होंने अदालत को बताया कि उनकी भतीजी ने “उन्हें घटना के बारे में कुछ नहीं बताया” और उन्होंने “आशीष चुनार के निर्देश पर” शिकायत लिखवाई थी। अदालत के फैसले में उनके हवाले से कहा गया है कि, “मैंने वही लिखा जो आशीष चुनार ने मुझे बताया था।”
जिरह के दौरान लड़की की चाची ने अदालत को यह भी बताया कि उसकी भतीजी ने उसे घटना के बारे में नहीं बताया और आरोपी का नाम भी नहीं बताया था। फैसले में कहा गया कि, "उसने सिर्फ इतना कहा कि वह कपड़े सिलवाने के लिए घर से निकली थी और आशीष चुनार उसे अपनी दुकान पर ले गया था।"
खान और सैनी को ट्रायल के दौरान चुनार के सामने पेश किया गया। चुनार ने अदालत को बताया कि 26 मई को उसने दो लोगों को नाबालिग से बात करते देखा था। लेकिन उसने कहा कि खान और सैनी वे दो लोग नहीं थे। चुनार ने इस आरोप से इनकार किया कि नाबालिग के चाचा ने उसके कहने पर पुलिस शिकायत लिखवाई थी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि नाबालिग लड़की ने अदालत में जो बयान दिया, वह 27 मई, 2023 को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत सिविल जज के समक्ष दिए गए उसके बयान से मेल नहीं खाता है। अपने बयान में, उसने कहा था कि जब उसने उनसे दर्जी की दुकान का रास्ता पूछा, तो खान और सैनी उसे पेट्रोल स्टेशन ले गए और एक टेम्पो बुलाया। उसने कहा, "उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे टेम्पो के अंदर बैठाने की कोशिश की।" "मैंने कहा कि मेरा हाथ छोड़ दो। फिर मेरा रिश्तेदार आशीष चुनार आया। उसे देखते ही दोनों आदमी भाग गए। उसने [चुनार] मुझे अपनी दुकान पर बैठाया और मेरे परिवार को बुलाया।"
जिरह के दौरान नाबालिग ने अदालत को बताया कि पुलिस ने उसे खान और सैनी को फंसाने वाला बयान देने के लिए उकसाया था। उसने कहा कि, "बयान देने से पहले पुलिस ने मुझे समझाया था कि मुझे क्या-क्या कहना है और यही मैंने मैडम [सिविल जज] को बताया।" "मैंने बयान नहीं पढ़ा, बस उस पर हस्ताक्षर किए थे।
सत्र न्यायालय में नाबालिग लड़की ने बताया कि उस दिन क्या हुआ था। फैसले में कहा गया कि, "उसने ज्यादातर यही कहा कि उसने आरोपी से दर्जी की दुकान के बारे में पूछा था।" "वह आरोपी के साथ दर्जी की दुकान पर गई थी। उसने यह भी कहा कि आरोपी उसे कहीं नहीं ले जा रहे थे। जिरह के दौरान उसने कहा कि आरोपी ने उसका पीछा नहीं किया था।"
जज सिंह ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने के लिए कोई बयान या सबूत पेश नहीं किया कि खान और सैनी ने नाबालिग को दुराचार के इरादे से छुआ था। उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि, "रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर विचार करते हुए, यह विशेष अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों से, आरोपी उवैद खान और जितेंद्र सैनी के खिलाफ आरोप/अभियोजन उचित संदेह से परे साबित नहीं होता है।" इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने खान और सैनी को बरी कर दिया।
लेखक, उत्तराखंड के देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
अनुवाद- महेश कुमार
साभार- न्यूजक्लिक