देश में मजदूरों की आत्महत्या में ऐतिहासिक बढ़ोत्तरी, तीन साल में 1.12 लाख मजदूरों ने खुदकुशी की

Written by Navnish Kumar | Published on: February 14, 2023
"केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि साल 2019 से 2021 के बीच 1.12 लाख दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार, 2019 और 2021 के बीच देश भर में आत्महत्या से मरने वाले लोगों की सबसे बड़ी श्रेणी दैनिक वेतन भोगी (दिहाड़ी मजदूरों) की है। आत्महत्या के मामले में दूसरी सबसे बड़ी श्रेणी गृहिणियों की है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डेटा के मुताबिक, स्व-नियोजित व्यक्तियों, बेरोजगारों और छात्रों की श्रेणियां अगली तीन सबसे बड़ी श्रेणियां हैं, जिनमें लोगों ने अपना जीवन स्वयं ही समाप्त कर लिया। यही नहीं, भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार है कि आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या एक चौथाई को पार कर गई।"



सोमवार को कांग्रेस सांसद के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा को बताया कि साल 2019 में 32,563, 2020 में 37,666 और 2021 में 42,004 दिहाड़ी मजदूरों की मौत आत्महत्या के कारण हुई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के हवाले से उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान 66,912 गृहिणी, 53,661 स्वरोजगार करने वाले व्यक्ति, 43,420 वेतनभोगी व्यक्ति और 43,385 बेरोजगार व्यक्ति भी आत्महत्या कर चुके हैं।

खास है कि 2020 से 2021 के बीच भारत कोरोना वायरस महामारी की पहली दो लहरों के दौरान सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक था। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने को सरकार ने मार्च 2020 में लॉकडाउन लगाया था, जिस कारण शहरों से प्रवासी श्रमिकों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था। सार्वजनिक परिवहन के अधिकांश साधन बंद हो जाने के कारण हजारों प्रवासी श्रमिकों के पास निजी वाहनों पर सवारी करने का विकल्प बचा था। उन्होंने किसी तरह से अपने गांव और कस्बों तक पहुंचने को सैकड़ों किमी. का लंबा सफर तय किया। कई ऐसे भी थे जो पैदल ही अपने गांव की ओर लौट रहे थे। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लॉकडाउन में मजदूर बड़े शहरों से पलायन कर गए थे। सफर के दौरान कई प्रवासी श्रमिकों की सड़क हादसों के दौरान मौत भी हुई थी। सरकार ने कहा था कि 8,700 से अधिक लोग जिनमें से अधिकांश प्रवासी थे, वह यात्री ट्रेन सेवाओं के ठप्प होने के बावजूद 2020 में रेलवे पटरियों पर मारे गए थे। 

तमिलनाडु के कांग्रेस सांसद सु. थिरूनवुक्‍करास के सवाल के जवाब में श्रम और रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने एनसीआरबी के तीन साल के ये आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। दरअसल कांग्रेस सांसद ने पूछा था कि क्या यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान आत्महत्या से मरने वालों में दिहाड़ी मजदूर सबसे बड़ा समूह है। सांसद के एक अन्य प्रश्न पर कि क्या सरकार द्वारा दैनिक वेतन भोगियों की सुरक्षा और उनकी आजीविका में सुधार के लिए कोई कदम उठाए जा रहे हैं, मंत्री ने जवाब दिया कि ‘असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 के अनुसार, सरकार को असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना अनिवार्य है। उन्होंने कई कल्याणकारी और पेंशन योजनाओं का हवाला दिया जो 18-70 वर्ष की श्रेणी में लोगों के लिए शुरू की गई हैं। आंकड़े तीन साल की अवधि में वृद्धि का खुलासा करते हैं। 

एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चला है कि 3 साल में आत्महत्याओं की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। 2019 में 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की थी, 2020 में यह संख्या 1,53,052 हो गई और 2021 में बढ़कर 1,64,033 हो गई। पिछले साल की एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में आत्महत्या से मरने वाले कुल 1,18,970 पुरुषों में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 37,751 थी, जो खुदकुशी करने वाले लोगों में सबसे अधिक है। इसके बाद 18,803 स्वरोजगार से जुड़े लोग और 11,724 बेरोजगार खुदकुशी करने वालों में थे। रिपोर्ट में कहा गया '2021 के दौरान देश में कुल 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की। रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या के मामलों में साल 2021 में 2020 की तुलना में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या एक चौथाई को पार कर गई। कोविड महामारी से पहले 2019 में भारत में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की थी। इनमें दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 32,563 थी। 

आंकड़ों में इन मौतों को 9 व्यापक श्रेणियो में रखा गया है। गृहिणी, पेशेवर/वेतनभोगी, सरकारी कर्मचारी, छात्र, बेरोजगार, स्व-नियोजित व्यक्ति, कृषि क्षेत्र में लगे लोग, दैनिक वेतन भोगी, सेवानिवृत्त व्यक्ति और अन्य। 'द वायर' की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसमें खुलासा हुआ कि दैनिक वेतनभोगियों के बीच आत्महत्या हर साल होने वाली ऐसी ऐसी सभी मौतों का लगभग 25 फीसदी है। सरकार ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2019 से 2021 तक तीन वर्ष की अवधि में कुल 1.12 लाख दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। मरने वाले इन दिहाड़ी मजदूरों की संख्या भी 2019 में 32,563 थी, जो 2020 में बढ़कर 37,666 हो गई और 2021 में यह बढ़कर 42,004 हो गई। 

खास है कि 2020 कोविड महामारी का पहला वर्ष था, जिसमें देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था। लॉकडाउन में लाखों प्रवासी दिहाड़ी मजदूर रातों-रात बेरोजगार हो गए थे और उन्हें पैदल ही अपने गांव वापस जाना पड़ा था। विभिन्न आधिकारिक गैर-आधिकारिक रिपोर्टों के मुताबिक भी, कोविड आदि के चलते पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में अधिकांश परिवारों की आय में काफी कमी आई है और वे गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

आत्महत्या में दूसरे नंबर पर गृहिणियां

श्रम मंत्री ने बताया कि दिहाड़ी मजदूरों के अलावा इन तीन सालों में 66,912 गृहणियों, स्वरोजगार वाले 53,661 व्यक्तियों, 43,420 वेतनभोगी लोगों व 43,385 बेरोजगार लोगों ने खुदकुशी की। उनके अनुसार, वर्ष 2019 से 2021 के दौरान 35,950 छात्रों और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले 31,839 लोगों ने भी आत्महत्या की। आंकड़ों से यह भी पता चला कि गृहिणियों के बीच भी इन तीन वर्षों में आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है। 2019 में 21,359 गृहिणियों ने अपना जीवन स्वयं समाप्त किया था, 2020 और 2021 में यह संख्य बढ़कर क्रमश: 22,374 और 23,179 हो गई।

अन्य श्रेणियों में भी तेज वृद्धि

आत्महत्या से मरने वालों की तीसरी सबसे बड़ी श्रेणी स्व-नियोजित व्यक्तियों की थी। 2019 में ऐसे 16,098 लोगों ने अपनी जान ली। 2020 में यह संख्या 17,332 और 2021 में 20,231 हो गई। इस श्रेणी ने 2020 और 2021 के बीच सबसे तेज वृद्धि दिखी, जिसका कारण भी संभवत: कोरोना संक्रमण रहा। इस अवधि के दौरान आत्महत्या से मरने वाले लोगों की चौथी सबसे बड़ी श्रेणी बेरोजगारों की थी। आत्महत्या करने की संख्या 2019 में 14,019 से बढ़कर 2020 में 15,652 हो गई, लेकिन फिर 2021 में मामूली रूप से घटकर 13,714 हो गई। छात्रों की श्रेणी पांचवें स्थान पर रही और छात्रों के बीच ऐसी दर्ज मौतें 2019 में 10,335 से लगभग 20 फीसदी बढ़कर 2020 में 12,526 हो गईं। 2021 में इसने 13,089 के उच्च स्तर को छू लिया।

किसानों की मौतें घटीं, खेतिहर मजदूरों की बढ़ीं

जहां तक कृषि क्षेत्र में लगे लोगों की बात है, एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान जहां किसानों की आत्महत्या में कमी आई है, वहीं खेतिहर मजदूरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। किसान आत्महत्या से दर्ज मौतों की संख्या 2019 में 5,957 से घटकर 2020 में 5,579 और 2021 में 5,318 हो गई। हालांकि, खेतिहर मजदूरों के मामले में (श्रमिकों की अन्य श्रेणियों के साथ) आत्महत्या से मौतों की संख्या 2019 की 4,324 से बढ़कर 2020 में 5,098 और फिर 2021 में 5,563 हो गई।

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