महिला कर्मचारियों को पुलिस ने जबरन हिरासत में लिया। एनडीएमसी अधिकारियों ने पुलिस की मदद से धरना हटाया । लेकिन सफाई कर्मचारियों ने अपना आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया।
सफाई कामगार यूनियन (एसकेयू) के बैनर तले नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी), पालिका केंद्र के सफाई कर्मचारियों ने मंगलवार को एनडीएमसी भवन के बाहर एनडीएमसी अधिकारियों द्वारा बिना सूचना के नौकरी से उन्हें निकाले जाने के फैसले के खिलाफ अपना धरना जारी रखा। हालांकि पुलिस ने बलपूर्वक सभी को हिरासत में लेकर धरना को खत्म करा दिया ।
आपको बता दें कि सफाई कर्मचारी सोमवार को एनडीएमसी अधिकारियों के इस आश्वासन के साथ अपने घर वापस चले गए थे कि उन्हें मंगलवार एनडीएमसी बिल्डिंग में प्रवेश दिया जाएगा। मगर मंगलवार सुबह जब मजदूर काम के लिए पहुंचे तो उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया गया। कार्यकर्ता किसी तरह परिसर में घुसे और अपना धरना जारी रखा। लेकिन, एनडीएमसी अधिकारियों ने पुलिस की मदद से उन्हें हिरासत में ले लिया। इस दौरान महिला कर्मियों ने पुलिस पर मारपीट करने का भी आरोप लगाया। इसके साथ ही उनके फ़ोन पुलिस ने ले लिए और सारा डेटा डिलीट कर दिया।
कर्मचारियों ने बताया कि उनके फोन में पुलिस की मारपीट के वीडियो और फोटो थे जिसे पुलिस अधिकारियों ने नष्ट किया और फिर रात में रिहा किया ।
ज्ञात हो कि धरने पर बैठे सफाई कर्मचारी पिछले कई सालों से एनडीएमसी, पालिका केंद्र में कार्यरत हैं। दिनांक 9 दिसम्बर 2022 को कर्मचारियों को यह बताया गया कि ठेका बदल गया है, इस कारण से 10 दिसम्बर से काम पर आने की जरूरत नहीं है। नई ठेका कंपनी (आर. के. जैन) के सुपरवाइज़र ने कर्मचारियों को यह भी बताया कि नौकरी चाहिए तो 10 हज़ार रुपये जमा करने होंगे। ज्ञात हो कि किसी भी कर्मचारी को काम से निकाले जाने से पूर्व 1 महीने की सूचना दिए जाने का कानूनी प्रावधान Contract Labour (Regulation and Abolition) Act 1970 में किया गया है। बिना सूचना काम से निकाला जाना स्पष्ट रूप से श्रम कानूनों का खुलेआम उल्लंघन है।
प्रदर्शन कर रहे कर्मचारीयों के मुताबिक़ नई ठेका कंपनी द्वारा नौकरी देने के लिए घूस की मांग करना गैर-कानूनी है। साथ ही, कंपनी द्वारा मजदूरों को 10 हज़ार के मासिक वेतन देने का प्रावधान बताया गया है, जो कि कानूनी रूप से तय न्यूनतम वेतन से बहुत कम है। ज्ञात हो कि अधिकतर कर्मचारी गरीब, दलित परिवारों से आते हैं और परिवार के गुजर बसर के लिए केवल इस नौकरी पर ही निर्भर हैं। ऐसे में जीवनयापन के एकमात्र सहारा छीना जाना कई कर्मचारियों को सड़कों पर ला खड़ा करेगा। ज्ञात हो कि इन कर्मचारियों ने कोरोना महामारी के दौरान भी अपनी जान का जोखिम उठाते हुए काम किया था।
यूनियन ने अपने बयाना में कहा कि सरकारी संस्थानों को एक आदर्श नियोक्ता का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, लेकिन यहाँ पर खुलेआम सरकारी संस्था द्वारा ही क़ानूनों का उल्लंघन किया जाना, और सफाई कर्मचारियों से उनकी नौकरी छीनना शर्मनाक है। यह दिखाता है कि किस तरह से सभी सरकारें और नेता दलित समुदाय का अपनी वोट की राजनीति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं, और बहुसंख्यक दलितों को शोषणकारी ठेका प्रथा में फंसाए रखने का षड्यंत्र रचते रहते हैं।
सफाई कर्मचारियों की मांग है कि उन्हें नौकरी पर वापस रखा जाए और साथ ही सफाई कर्मचारियों ने कानूनों का उल्लंघन करने वाली नई ठेका कंपनी का ठेका निरस्त कर उसपर सख्त कार्रवाई की जाए। लेकिन, अभी तक एनडीएमसी अधिकारियों का रवैया उदासीन बना हुआ है, और उनपर पुलिस धरना खत्म करने का दबाव बना रही है। सफाई कर्मचारियों ने भी नौकरी पर वापस रखे जाने तक अपना संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया है।
Courtesy: Newsclick
सफाई कामगार यूनियन (एसकेयू) के बैनर तले नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी), पालिका केंद्र के सफाई कर्मचारियों ने मंगलवार को एनडीएमसी भवन के बाहर एनडीएमसी अधिकारियों द्वारा बिना सूचना के नौकरी से उन्हें निकाले जाने के फैसले के खिलाफ अपना धरना जारी रखा। हालांकि पुलिस ने बलपूर्वक सभी को हिरासत में लेकर धरना को खत्म करा दिया ।
आपको बता दें कि सफाई कर्मचारी सोमवार को एनडीएमसी अधिकारियों के इस आश्वासन के साथ अपने घर वापस चले गए थे कि उन्हें मंगलवार एनडीएमसी बिल्डिंग में प्रवेश दिया जाएगा। मगर मंगलवार सुबह जब मजदूर काम के लिए पहुंचे तो उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया गया। कार्यकर्ता किसी तरह परिसर में घुसे और अपना धरना जारी रखा। लेकिन, एनडीएमसी अधिकारियों ने पुलिस की मदद से उन्हें हिरासत में ले लिया। इस दौरान महिला कर्मियों ने पुलिस पर मारपीट करने का भी आरोप लगाया। इसके साथ ही उनके फ़ोन पुलिस ने ले लिए और सारा डेटा डिलीट कर दिया।
कर्मचारियों ने बताया कि उनके फोन में पुलिस की मारपीट के वीडियो और फोटो थे जिसे पुलिस अधिकारियों ने नष्ट किया और फिर रात में रिहा किया ।
ज्ञात हो कि धरने पर बैठे सफाई कर्मचारी पिछले कई सालों से एनडीएमसी, पालिका केंद्र में कार्यरत हैं। दिनांक 9 दिसम्बर 2022 को कर्मचारियों को यह बताया गया कि ठेका बदल गया है, इस कारण से 10 दिसम्बर से काम पर आने की जरूरत नहीं है। नई ठेका कंपनी (आर. के. जैन) के सुपरवाइज़र ने कर्मचारियों को यह भी बताया कि नौकरी चाहिए तो 10 हज़ार रुपये जमा करने होंगे। ज्ञात हो कि किसी भी कर्मचारी को काम से निकाले जाने से पूर्व 1 महीने की सूचना दिए जाने का कानूनी प्रावधान Contract Labour (Regulation and Abolition) Act 1970 में किया गया है। बिना सूचना काम से निकाला जाना स्पष्ट रूप से श्रम कानूनों का खुलेआम उल्लंघन है।
प्रदर्शन कर रहे कर्मचारीयों के मुताबिक़ नई ठेका कंपनी द्वारा नौकरी देने के लिए घूस की मांग करना गैर-कानूनी है। साथ ही, कंपनी द्वारा मजदूरों को 10 हज़ार के मासिक वेतन देने का प्रावधान बताया गया है, जो कि कानूनी रूप से तय न्यूनतम वेतन से बहुत कम है। ज्ञात हो कि अधिकतर कर्मचारी गरीब, दलित परिवारों से आते हैं और परिवार के गुजर बसर के लिए केवल इस नौकरी पर ही निर्भर हैं। ऐसे में जीवनयापन के एकमात्र सहारा छीना जाना कई कर्मचारियों को सड़कों पर ला खड़ा करेगा। ज्ञात हो कि इन कर्मचारियों ने कोरोना महामारी के दौरान भी अपनी जान का जोखिम उठाते हुए काम किया था।
यूनियन ने अपने बयाना में कहा कि सरकारी संस्थानों को एक आदर्श नियोक्ता का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, लेकिन यहाँ पर खुलेआम सरकारी संस्था द्वारा ही क़ानूनों का उल्लंघन किया जाना, और सफाई कर्मचारियों से उनकी नौकरी छीनना शर्मनाक है। यह दिखाता है कि किस तरह से सभी सरकारें और नेता दलित समुदाय का अपनी वोट की राजनीति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं, और बहुसंख्यक दलितों को शोषणकारी ठेका प्रथा में फंसाए रखने का षड्यंत्र रचते रहते हैं।
सफाई कर्मचारियों की मांग है कि उन्हें नौकरी पर वापस रखा जाए और साथ ही सफाई कर्मचारियों ने कानूनों का उल्लंघन करने वाली नई ठेका कंपनी का ठेका निरस्त कर उसपर सख्त कार्रवाई की जाए। लेकिन, अभी तक एनडीएमसी अधिकारियों का रवैया उदासीन बना हुआ है, और उनपर पुलिस धरना खत्म करने का दबाव बना रही है। सफाई कर्मचारियों ने भी नौकरी पर वापस रखे जाने तक अपना संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया है।
Courtesy: Newsclick