पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा- ट्वीट से नहीं, जजों के काम और फ़ैसलों से घटता है कोर्ट का मान

Written by sabrang india | Published on: August 22, 2020
नई दिल्ली। दो ट्वीट्स के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी ठहराए जाने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी ने भी टिप्पणी की है। शौरी ने कहा है कि यदि सुप्रीम कोर्ट किसी टिप्पणी से अपमानित होता है तो उसे कानून के तहत व्यक्ति को अपनी बात साबित करने का मौका देना चाहिए। 



अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में शौरी ने कहा कि इस मामले में कोर्ट का फैसला दर्शाता है कि लोकतंत्र का यह केंद्रीय स्तंभ इतना खोखला हो चुका है कि महज दो ट्वीट इसकी नींव को हिलाने की क्षमता रखते हैं।

मालूम हो कि जब सुप्रीम कोर्ट ने भूषण के ट्वीट के संबंध में स्वत: संज्ञान लेकर उन्हें नोटिस जारी किया था, वरिष्ठ पत्रकार एन। राम और प्रशांत भूषण के साथ मिलकर शौरी ने याचिका दायर कर अदालत की अवमानना कानून, 1971 की धारा 2(सी)(आई) को चुनौती दी थी और कहा था कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

हालांकि बाद में यह याचिका वापस ले ली गई और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इस मामले को हाईकोर्ट में उठाने की छूट दी। सुप्रीम कोर्ट के प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराने वाले फैसले में की गई टिप्पणियों की कई पूर्व जजों, वकीलों व कानून विशेषज्ञों ने आलोचना की है।

कोर्ट ने माना था कि भूषण के ट्वीट के चलते लोगों का सुप्रीम कोर्ट में विश्वास प्रभावित हो सकता है और इसमें इस संस्थान के नींव को हिलाने की क्षमता है।

इस पर शौरी ने कहा, ‘यदि सुप्रीम कोर्ट खुद को सुरक्षित नहीं रख सकता, तो वो हमारी रक्षा कैसे करेगा? कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस ट्वीट के चलते विदेशों में भारत की छवि खराब होगी- लोकतंत्र को लेकर भारत की ओर देखा जाता है और ये ट्वीट लोकतंत्र के इस केंद्रीय स्तंभ को कमजोर करते हैं।’

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस तरह की टिप्पणियों पर निराशा व्यक्ति करते हुए अरुण शौरी ने व्यंगात्मक लहजे में कहा कि यदि कोई विज्ञापन कंपनी ट्विटर के लिए विज्ञापन बनाना चाहती है तो इससे अच्छा कोई विज्ञापन नहीं होगा कि ‘आओ ट्विटर से जुड़ो, हमारा प्लेटफॉर्म इतना शक्तिशाली है कि इस पर किया गया ट्वीट दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के केंद्रीय स्तंभ को हिलाने की क्षमता रखता है।’

उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट की नींव कितनी खोखली हो चुकी है कि यह महज दो ट्वीट से हिल सकती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भूषण के ट्वीट नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों द्वारा की गईं इन टिप्पणियों के चलते लोगों का विश्वास सर्वोच्च न्यायालय में घटेगा। लोग कहेंगे ‘अरे यार तुम सुप्रीम कोर्ट के पास भाग रहे हो कि वो तुम्हे बचाएंगे जबकि वो खुद कह रहे हैं कि वो इतने कमजोर हो गए हैं कि दो छोटे-से ट्वीट सारे ढांचे को गिरा देंगे।’

उन्होंने कहा, ‘यह बात वही हुई जैसा कि शायर कलीम आजिज़ ने कहा है, ‘हम कुछ नहीं कहते, कोई कुछ नहीं कहता, तुम क्या हो तुम्हीं सब से, कहलवाए चलो हो।’

अरुण शौरी ने कहा कि कोर्ट के फैसलों की आलोचना और विश्लेषण करना अवमानना नहीं होता है। उन्होंने कुछ मामलों का उदाहरण देते हुए कहा कि कोर्ट के कई ऐसे निर्णय हैं जहां न्यायालय ने तर्कों को नजरअंदाज करते हुए फैसला दिया या अभी भी लंबित हैं।

उन्होंने कहा कि जैसा कोर्ट ने जज लोया और रफाल फैसले में लिया, दोनों मामलों में महत्वपूर्ण साक्ष्यों की ओर से मुंह फेर लिया गया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 को रफाल डील की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग वाली चार याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इस मामले में शौरी और भूषण भी याचिकाकर्ता थे।

शौरी ने कहा कि अदालत हमारे संविधान के केंद्र में स्थित बेहद महत्वपूर्ण विषयों- कश्मीर, एनकाउंटर हत्या, सीएए इत्यादि को लगातार नजरअंदाज कर रही है।

27 जून को एक ट्वीट करते हुए भूषण ने पिछले छह सालों में औपचारिक आपातकाल के बिना लोकतंत्र की तबाही के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम चार मुख्य न्यायाधीशों- जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जेएस खेहर की भूमिका की आलोचना की थी।

इस पर अरुण शौरी ने कहा कि लोग कोर्ट के फैसलों और जजों के कार्यों से प्रभावित होते हैं न कि किसी के दो ट्वीट से। यदि कोर्ट किसी बात से खुद को अपमानित महसूस करता है तो उसे व्यक्ति को अपनी बात साबित करने का मौका देना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘क्या सत्य को उस देश में रक्षा के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा, जिसका राष्ट्रीय आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते है? जिस देश के राष्ट्रपिता ने बार-बार कहा है कि सत्य ही भगवान है।’

अरुण शौरी ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था का मान किसी ट्वीट ने कम नहीं होता है बल्कि अन्य कई कारणों- जैसे तथ्यों को नजरअंदाज करने, महाभियोग जैसे मामलों को डील करने की प्रक्रिया अपर्याप्त और निष्पक्ष न होने और पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ दुराचार के आरोपों के संबंध में पूरी तरह गोपनीयता बरतने- से कोर्ट का मान घटता है। उन्होंने कहा कि किसी के ट्वीट पर अपना गुस्सा निकालने से अच्छा है कि इन कमियों को दूर किया जाए। 

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