प्रिंटर खराब होने से निर्यात नहीं हो रहा है और तीन के तीन प्रिंटर खराब हैं। मैंने पहले कभी नहीं सुना और ना कभी कल्पना की थी कि प्रिंटर खराब होने (काम चलाने के लिए पांच हजार रुपए से कम में मिल सकते हैं) से निर्यात रुक जाएगा। द टेलीग्राफ में प्रकाशित इस खबर के अनुसार पेट्रापोल लैंड पोर्ट से बांग्लादेश को निर्यात लगातार दो दिन से बंद है और स्थिति नियंत्रण से बाहर है। सामान्य सेवा शुरू होने में कम से कम एक सप्ताह लगेगा।
सामान भेजने के लिए अंतिम आदेश का प्रिंट सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्ल्यूसी) करता है । इसके लिए जो प्रिंटर हैं वो खराब हैं। दो पहले से खराब थे, तीसरा शुक्रवार को खराब हो गया। नतीजतन सीमा पर भारत की तरफ एक हजार से ज्यादा ट्रक खड़े हैं। इन्हें देश के बाहर सामान लेकर जाने के लिए ‘लेट एक्सपोर्ट ऑर्डर’ चाहिए आम बोलचाल में इसे ‘लियो’ कहा जाता है और क्लियरेंस के बाद सीडब्ल्यूसी यह क्लियरेंस देता है। पर प्रिंटर खराब होने से यह ऑर्डर नहीं दिया जा सक रहा है।
दो प्रिंटर करीब दो महीने से खराब थे और इस दौरान ना तो उन्हें ठीक कराया गया और ना तीसरे के खराब होने की स्थिति में क्या करना है यह सोचा गया। लिहाजा तीसरा खराब हो गया तो काम रुक गया है। भारत और बांग्लादेश के बीच ऐसे 23 लैंड पोर्ट हैं और इनमें पेट्रापोल सबसे बड़ा है। 60 प्रतिशत व्यापार इसी के जरिए होता है।
समस्या यह है कि ऑनलाइन सुरक्षा प्रणाली के जरिए कोई स्थानीय प्रक्रिया नहीं अपनाई जा सकती है। यह अलग बात है कि इस कारण कुल 100 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। निर्यात किए जाने वाले सामान में कई खराब होने वाले हैं औऱ देरी के कारण खराब हो गए तो उसका नुकसान अलग होगा। किसका होगा यह अलग बात है। यही नहीं, ‘लियो’ नहीं बनने से ट्रक को खड़ा रखने का पैसा लग रहा है जो रोज 100 से 300 रुपए तक है।
इस तरह निर्यात पूरी तरह रुक जाना भारत के लिए शर्मनाक है क्योंकि बांग्लादेश की ऐसी ही व्यवस्था ठीक-ठाक चल रही है। दिलचस्प यह है कि पड़ोसी देश से कारोबार बेहतर करने के लिए इस सीमा शुल्क केंद्र को बेहतर बनाया गया था। नए प्रिंटर के लिए ऑर्डर किया गया है। उम्मीद है बुधवार को आ जाएंगे पर उन्हें चालू करने में कम से कम तीन दिन और लगेंगे।
कहने की जरूरत नहीं है कि सीडब्ल्यूसी सरकारी उपक्रम है और देश की प्रमुख भंडारण एजेंसी है जो आयात-निर्यात के लिए संभारतंत्र और क्लियरिंग तथा हैंडलिंग के काम करता है। पेट्रापोल में तैनात सीमाशुल्क आयुक्त ने द टेलीग्राफ से कहा कि उन्होंने सीडब्ल्यूसी के अधिकारियों को प्रिंटर बदलने के लिए कई पत्र लिखे। मौखिक रूप से भी कहा पर लगता है कि उन लोगों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
सामान भेजने के लिए अंतिम आदेश का प्रिंट सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्ल्यूसी) करता है । इसके लिए जो प्रिंटर हैं वो खराब हैं। दो पहले से खराब थे, तीसरा शुक्रवार को खराब हो गया। नतीजतन सीमा पर भारत की तरफ एक हजार से ज्यादा ट्रक खड़े हैं। इन्हें देश के बाहर सामान लेकर जाने के लिए ‘लेट एक्सपोर्ट ऑर्डर’ चाहिए आम बोलचाल में इसे ‘लियो’ कहा जाता है और क्लियरेंस के बाद सीडब्ल्यूसी यह क्लियरेंस देता है। पर प्रिंटर खराब होने से यह ऑर्डर नहीं दिया जा सक रहा है।
दो प्रिंटर करीब दो महीने से खराब थे और इस दौरान ना तो उन्हें ठीक कराया गया और ना तीसरे के खराब होने की स्थिति में क्या करना है यह सोचा गया। लिहाजा तीसरा खराब हो गया तो काम रुक गया है। भारत और बांग्लादेश के बीच ऐसे 23 लैंड पोर्ट हैं और इनमें पेट्रापोल सबसे बड़ा है। 60 प्रतिशत व्यापार इसी के जरिए होता है।
समस्या यह है कि ऑनलाइन सुरक्षा प्रणाली के जरिए कोई स्थानीय प्रक्रिया नहीं अपनाई जा सकती है। यह अलग बात है कि इस कारण कुल 100 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। निर्यात किए जाने वाले सामान में कई खराब होने वाले हैं औऱ देरी के कारण खराब हो गए तो उसका नुकसान अलग होगा। किसका होगा यह अलग बात है। यही नहीं, ‘लियो’ नहीं बनने से ट्रक को खड़ा रखने का पैसा लग रहा है जो रोज 100 से 300 रुपए तक है।
इस तरह निर्यात पूरी तरह रुक जाना भारत के लिए शर्मनाक है क्योंकि बांग्लादेश की ऐसी ही व्यवस्था ठीक-ठाक चल रही है। दिलचस्प यह है कि पड़ोसी देश से कारोबार बेहतर करने के लिए इस सीमा शुल्क केंद्र को बेहतर बनाया गया था। नए प्रिंटर के लिए ऑर्डर किया गया है। उम्मीद है बुधवार को आ जाएंगे पर उन्हें चालू करने में कम से कम तीन दिन और लगेंगे।
कहने की जरूरत नहीं है कि सीडब्ल्यूसी सरकारी उपक्रम है और देश की प्रमुख भंडारण एजेंसी है जो आयात-निर्यात के लिए संभारतंत्र और क्लियरिंग तथा हैंडलिंग के काम करता है। पेट्रापोल में तैनात सीमाशुल्क आयुक्त ने द टेलीग्राफ से कहा कि उन्होंने सीडब्ल्यूसी के अधिकारियों को प्रिंटर बदलने के लिए कई पत्र लिखे। मौखिक रूप से भी कहा पर लगता है कि उन लोगों ने कोई कार्रवाई नहीं की।