प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (24 फरवरी) को कुंभ मेले में इतिहास रचते हुए पांच स्वच्छाग्रहियों के पांव पखारे। पीएम ने कुंभ मेले में उनके विशेष योगदान के लिए उन्हें सम्मानित भी किया। संगम में डुबकी लगाने के बाद गंगा पंडाल पहुंचे प्रधानमंत्री ने कहा, “आज जिन सफाईकर्मी भाइयों-बहनों के चरण धुलकर मैंने वंदना की है, वह पल मेरे साथ जीवनभर रहेगा। उनका आशीर्वाद, स्रेह, आप सभी का आशीर्वाद, आप सभी का स्रेह मुझपर ऐसे ही बना रहे, ऐसे ही मैं आपकी सेवा करता रहूं, यही मेरी कामना है।” मोदी के इस कदम की अपने-अपने हिसाब से व्याख्या हो रही है। एक तबका इसे “एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक संदेश” बता रहा है तो आलोचना इस बात पर हो रही है कि चरण धोनी की बजाय प्रधानमंत्री उनके लिए रोजगार की व्यवस्था क्यों नहीं करते।
वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने फेसबुक पर एक लंबी-चौड़ी पोस्ट लिखकर इस बारे में सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और रमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता बेजवाड़ा विल्सन का मत रखा है। उनकी यह पोस्ट आप नीचे पढ़ सकते हैं।
''सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और रमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि कुम्भ में सफाईकर्मियों के पैर धोना असंवैधानिक है। यह उन्हें तुच्छ दिखाकर खुद को महिमामंडित करने जैसा है। विल्सन पिछले कई दशकों से मैला उठाने के काम में लगे लोगों के बीच काम कर रहे हैं और इसके लिये उन्हें देश विदेश में सम्मानित किया जा चुका है।
विल्सन ने मुझसे कहा, “प्रधानमंत्री को सफाई कर्मियों और दलितों के पैर नहीं धोने चाहिये बल्कि उनसे हाथ मिलाना चाहिये। पैर धोने से कौन ग्लोरिफाई (महिमामंडित) होता है। वह (प्रधानमंत्री) ही ग्लोरिफाइ होते हैं ना। वह सफाईकर्मियों के पांव पकड़ते हैं तो वह यह संदेश दे रहे हैं कि आप (सफाईकर्मी) बहुत तुच्छ हैं और मैं महान हूं। इससे किसका फायदा होता है? इनके पैर धोकर वह खुद को महान दिखा रहे हैं। यह बहुत खतरनाक विचारधारा है।”
प्रधानमंत्री ने रविवार को कुम्भ में डुबकी लगाने के साथ वहां सफाईकर्मियों के चरण धोये और उन्हें सम्मानित किया। टीवी पत्रकारों ने जब सफाई कर्मियों से बात की तो प्रधानमंत्री के इस कर्म से वह काफी खुश और भावुक दिखे। उनमें से कुछ ने कहा कि उनके लिये यह सपने की बात सच होने जैसा है तो कुछ ने पत्रकारों के पूछने पर कहा कि वह मोदी जी को ही वोट देंगे।
प्रधानमंत्री ने जहां सफाईकर्मियों को खुश किया वहीं टीवी और इंटरनेट पर चली उनकी तस्वीरें राजनीतिक संदेश भी थीं। मोदी अकेले नहीं हैं उनसे पहले भी अनुसूचित जाति के लोगों को लुभाने के लिये नेता कुछ न कुछ करते रहे हैं। एक वक्त राहुल गांधी अनुसूचित जाति के लोगों के घर जाकर रहे और खाना खाया। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बीजेपी के दूसरे नेता भी इस तरह कर चुके हैं जबकि सफाईकर्मियों और मैला ढोने वालों की स्थिति खराब बनी हुई है और उन्हें अमानवीय स्थितियों में काम करना पड़ रहा है।
संसद द्वारा गठित नेशनल कमीशन फॉर सफाई कर्मचारी – जो कि एक वैधानिक बॉडी है – के मुताबिक हर पांच दिन में गटर में जाकर सफाई करने वालों में से एक आदमी की मौत हो रही है। बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं कि 1 लाख 60 हज़ार महिलायें ड्राइ लैट्रिन साफ कर मैला ढो रही हैं। उनके काम करने के हालात सुधारने के लिये सरकारें कुछ नहीं करतीं। पिछले दो महीनों में 13 लोगों की मौत हुई है।
विल्सन कहते हैं कि पैर पकड़ने जैसी नेताओं की ये हरकतें बहुत ग़लत और असंवैधानिक हैं। यह बराबरी के फलसफे के खिलाफ हैं। विल्सन ने कहा कि राहुल गांधी हों या नरेंद्र मोदी दोनों को अम्बेडकर का अध्ययन करना चाहिये। “संविधान कहता है कि सब बराबर हैं लेकिन जब कोई इस तरह सफाईकर्मियों के पैर धोता है तो यह एक बिल्कुल ग़लत है। यह ड्रामेबाज़ी बन्द होनी चाहिये।” उनके मुताबिक यह दलितों को मैला उठाने के काम में लगाये रखने को ही प्रोत्साहित करने जैसा है।
विल्सन ने कहा, “इस तरह पैर धोने से वह (सफाईकर्मी) क्या सोचेंगे? यही ना कि मैला ढोना बड़ा महान काम है और हम इसी में लगे रहेंगे तो लोग मेरे पांव पकड़ोगे और मैं इसी में लगा रहूं।”
राहुल गांधी के अनुसूचित जाति के लोगों के घर जाने को भी बेजवाड़ा एक ढकोसला ही बताते हैं।
“हमने देखा है कि दलितों को गांवों में जहां उनके घर वहीं उन्हें सम्मान से नहीं रहने दिया जाता। अपने (ऊंची जातियों के) गांवों में उन्हें नहीं घुसने देते। यह सब खुद को महिमामंडित करने की कोशिश है। अगर दलितों से इतना प्यार है तो उन्हें अपने घर क्यों नहीं बुलाते। अपने साथ अपने घर में क्यों नहीं सुलाते। उनके लिये अच्छे घर क्यों नहीं बनाते?”
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने फेसबुक पर एक लंबी-चौड़ी पोस्ट लिखकर इस बारे में सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और रमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता बेजवाड़ा विल्सन का मत रखा है। उनकी यह पोस्ट आप नीचे पढ़ सकते हैं।
''सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और रमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि कुम्भ में सफाईकर्मियों के पैर धोना असंवैधानिक है। यह उन्हें तुच्छ दिखाकर खुद को महिमामंडित करने जैसा है। विल्सन पिछले कई दशकों से मैला उठाने के काम में लगे लोगों के बीच काम कर रहे हैं और इसके लिये उन्हें देश विदेश में सम्मानित किया जा चुका है।
विल्सन ने मुझसे कहा, “प्रधानमंत्री को सफाई कर्मियों और दलितों के पैर नहीं धोने चाहिये बल्कि उनसे हाथ मिलाना चाहिये। पैर धोने से कौन ग्लोरिफाई (महिमामंडित) होता है। वह (प्रधानमंत्री) ही ग्लोरिफाइ होते हैं ना। वह सफाईकर्मियों के पांव पकड़ते हैं तो वह यह संदेश दे रहे हैं कि आप (सफाईकर्मी) बहुत तुच्छ हैं और मैं महान हूं। इससे किसका फायदा होता है? इनके पैर धोकर वह खुद को महान दिखा रहे हैं। यह बहुत खतरनाक विचारधारा है।”
प्रधानमंत्री ने रविवार को कुम्भ में डुबकी लगाने के साथ वहां सफाईकर्मियों के चरण धोये और उन्हें सम्मानित किया। टीवी पत्रकारों ने जब सफाई कर्मियों से बात की तो प्रधानमंत्री के इस कर्म से वह काफी खुश और भावुक दिखे। उनमें से कुछ ने कहा कि उनके लिये यह सपने की बात सच होने जैसा है तो कुछ ने पत्रकारों के पूछने पर कहा कि वह मोदी जी को ही वोट देंगे।
प्रधानमंत्री ने जहां सफाईकर्मियों को खुश किया वहीं टीवी और इंटरनेट पर चली उनकी तस्वीरें राजनीतिक संदेश भी थीं। मोदी अकेले नहीं हैं उनसे पहले भी अनुसूचित जाति के लोगों को लुभाने के लिये नेता कुछ न कुछ करते रहे हैं। एक वक्त राहुल गांधी अनुसूचित जाति के लोगों के घर जाकर रहे और खाना खाया। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बीजेपी के दूसरे नेता भी इस तरह कर चुके हैं जबकि सफाईकर्मियों और मैला ढोने वालों की स्थिति खराब बनी हुई है और उन्हें अमानवीय स्थितियों में काम करना पड़ रहा है।
संसद द्वारा गठित नेशनल कमीशन फॉर सफाई कर्मचारी – जो कि एक वैधानिक बॉडी है – के मुताबिक हर पांच दिन में गटर में जाकर सफाई करने वालों में से एक आदमी की मौत हो रही है। बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं कि 1 लाख 60 हज़ार महिलायें ड्राइ लैट्रिन साफ कर मैला ढो रही हैं। उनके काम करने के हालात सुधारने के लिये सरकारें कुछ नहीं करतीं। पिछले दो महीनों में 13 लोगों की मौत हुई है।
विल्सन कहते हैं कि पैर पकड़ने जैसी नेताओं की ये हरकतें बहुत ग़लत और असंवैधानिक हैं। यह बराबरी के फलसफे के खिलाफ हैं। विल्सन ने कहा कि राहुल गांधी हों या नरेंद्र मोदी दोनों को अम्बेडकर का अध्ययन करना चाहिये। “संविधान कहता है कि सब बराबर हैं लेकिन जब कोई इस तरह सफाईकर्मियों के पैर धोता है तो यह एक बिल्कुल ग़लत है। यह ड्रामेबाज़ी बन्द होनी चाहिये।” उनके मुताबिक यह दलितों को मैला उठाने के काम में लगाये रखने को ही प्रोत्साहित करने जैसा है।
विल्सन ने कहा, “इस तरह पैर धोने से वह (सफाईकर्मी) क्या सोचेंगे? यही ना कि मैला ढोना बड़ा महान काम है और हम इसी में लगे रहेंगे तो लोग मेरे पांव पकड़ोगे और मैं इसी में लगा रहूं।”
राहुल गांधी के अनुसूचित जाति के लोगों के घर जाने को भी बेजवाड़ा एक ढकोसला ही बताते हैं।
“हमने देखा है कि दलितों को गांवों में जहां उनके घर वहीं उन्हें सम्मान से नहीं रहने दिया जाता। अपने (ऊंची जातियों के) गांवों में उन्हें नहीं घुसने देते। यह सब खुद को महिमामंडित करने की कोशिश है। अगर दलितों से इतना प्यार है तो उन्हें अपने घर क्यों नहीं बुलाते। अपने साथ अपने घर में क्यों नहीं सुलाते। उनके लिये अच्छे घर क्यों नहीं बनाते?”
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।