इलेक्टोरल बॉन्ड: सुप्रीम कोर्ट के फैसला सुरक्षित रखने के बाद भी मोदी सरकार ने 8,350 करोड़ रुपये के बॉन्ड छापे

Written by sabrang india | Published on: March 20, 2024
साल 2024 में छापे गए 1 करोड़ रुपये के 8,350 करोड़ रुपये के बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस योजना की शुरुआत से अब तक जुटाई गई रकम से भी अधिक हैं।



नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार चुनाव आयोग द्वारा अपनी वेबसाइट पर चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी साझा करने के बाद से रोज नए खुलासे हो रहे हैं।

इस संबंध में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के माध्यम से यह जानकारी सामने आई है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवंबर 2023 में योजना की संवैधानिकता पर फैसला सुरक्षित रखने के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार ने सिर्फ साल 2024 में 1 करोड़ रुपये के 8,350 चुनावी बॉन्ड छापे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, यह जानकारी एक्टिविस्ट कमोडोर लोकेश बत्रा द्वारा दाखिल आरटीआई आवेदन के जवाब में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने दी है।

इस साल छापे गए 8,350 करोड़ रुपये के बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा योजना की शुरुआत से अब तक जुटाई गई रकम से भी अधिक हैं।

चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, भाजपा को साल 2018 से चुनावी बॉन्ड के जरिये 8,251।8 करोड़ रुपये मिले हैं। इस अवधि में बेचे गए बॉन्ड का कुल मूल्य 16,518 करोड़ रुपये है। इसका अर्थ यह है कि भाजपा ने बेचे गए सभी बॉन्ड का लगभग 50 प्रतिशत भुना लिया।

एक्टिविस्ट बत्रा द्वारा दायर एक पूर्व आरटीआई से यह बात साफ है कि इन चुनावी बॉन्ड की छपाई और प्रबंधन का खर्चा करदाता यानी टैक्सपेयर यानी आम लोगों की जेब से होता है। इसमें चंदा देने वाले लोगों, कंपनियों या राजनीतिक पार्टियों की कोई भूमिका नहीं है।

आरटीआई जवाब से पता चला है कि चुनावी बॉन्ड जारी करने के लिए अधिकृत बैंक एसबीआई ने साल 2018 से 2023 के बीच ‘चुनावी बॉन्ड योजना के प्रबंधन और संचालन के लिए कमीशन, छपाई और अन्य खर्चों’ के लिए सरकार से 13।50 करोड़ रुपये शुल्क लिया था।

वहीं, इस साल 2024 में अतिरिक्त 8,350 बॉन्ड की छपाई और प्रबंधन की लागत के संबंध में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है।

द वायर को एक्टिविस्ट बत्रा ने बताया, ‘ऐसा लगता है कि सरकार आश्वस्त थी कि सुप्रीम कोर्ट यथास्थिति बनाए रखेगा और यही कारण है कि सरकार ने 1 करोड़ रुपये के और बॉन्ड छापे।’

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे तत्काल प्रभाव से रद्द करने का आदेश दिया था। अदालत ने इसे मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए एसबीआई से बॉन्ड से संबंधित सभी जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने और फिर आयोग द्वारा इसे अपनी वेबसाइट पर साझा करने का निर्देश दिया था।

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