सियासत: ममता की जीत या मोदी की हार?

Written by Navnish Kumar | Published on: May 3, 2021
बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की सुपर डूपर जीत के बाद, अब जहां एक ओर अगले साल उत्तर प्रदेश में 'खेला' होने यानी भाजपा की योगी सरकार की विदाई को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है वहीं बंगाल में दीदी की बंपर जीत को जानकार, मोदी की हार के तौर पर ज्यादा देख रहे हैं और इसी सब से जानकार 2024 में देश के सियासी समीकरणों के बदलने के संकेत दे रहे हैं। तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रॉयन व महुआ मोइत्रा ने बीते दिनों कहा भी था कि अब तृणमूल बनारस में मैदान में उतरेगी। हालांकि यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना साफ है कि दीदी बनाम मोदी की सियासी जंग आने वाले दिनों में तेज होगी। 



मोदी-शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने जिस तरह अपनी पूरी ताकत पश्चिम बंगाल में झोंक रखी थी, उसके बावजूद, बीजेपी को करारी शिकस्त मिली है तो साफ है कि यह ममता की जीत से ज्यादा, मोदी की हार है। वैसे भी बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली में पीएम मोदी ने कहा था कि नंदीग्राम में अपनी हार को देखते हुए ममता बनर्जी दूसरी सीट से चुनाव लड़ने वाली हैं। इस दावे पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने तंज कसा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट किया, 'पीएम मोदी कहते हैं कि ममता बनर्जी दूसरी सीट से लड़ेंगी, प्रधानमंत्री मोदी आप सही कह रहे हैं और वह सीट होगी वाराणसी, तो लड़ाई के लिए आप तैयार हो जाइए।

दूसरी ओर, अबकी बार दो सौ पार के नारे के साथ अपनी पूरी ताक़त और संसाधनों के साथ, मैदान में उतरी बीजेपी अपनी मंज़िल की आधी दूरी भी नहीं तय कर सकी है। जो पार्टी पूरे आत्मविश्वास के साथ '2 मई, दीदी गई' का नारा दे रही थी, उसके नेता शर्मनाक हार पर अब कुछ बोलने से भी बच रहे हैं। चुनाव में हार के लिए बीजेपी के खिलाफ कई फैक्टर्स को वजह माना जा रहा है, उन्हीं में से एक 'दीदी ओ दीदी' का नारा भी है। 

रविवार को पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम के रुझान टीएमसी के पक्ष में जाने के साथ ही ट्विटर पर #दीदी_ओ_दीदी ट्रेंड कर रहा था। टीएमसी सांसद काकोली दास्तीदार ने लिखा, 'दीदी ओ दीदी बोलने वाला दादा कहां गया? दादागिरी नहीं चलेगा यार। जय बांग्ला...' काकोली अकेली नहीं है, कई विश्लेषक 'दीदी ओ दीदी' को बीजेपी की हार की एक बड़ी वजह मान रहे हैं। 

पश्चिम बंगाल के साथ केरल, असम व तमिलनाडु के चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश पुद्दुचेरी में चुनाव हुए, लेकिन हर किसी की नजर बंगाल पर ही टिकी रही। दरअसल, यहां सीधा मुकाबला टीएमसी-भाजपा के बीच था या यूं कह लीजिए कि टक्कर पूरी तरह मोदी बनाम ममता की हो गई थी। पीएम मोदी और भाजपा के तमाम दांव-पेचों और शक्ति फूंकने के बावजूद टीएमसी की 2016 से भी ज्यादा विधानसभा सीटों पर जीत ने बड़ा सवाल उठाया है कि क्या अब यूपी और उसके बाद 2024 में राष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी बनाम ममता के बीच 'खेला' होगा?।

खास है कि वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर  पीएम नरेंद्र मोदी को सीधे चुनौती दे सकने वाले नेताओं का अभाव है। कांग्रेस अपने आंतरिक मतभेदों में उलझी है तो अन्य विपक्षी दल भी अपने-अपने राज्यों में सिमटे हुए हैं। ऐसे में सर्वमान्य विपक्षी नेता को लेकर बड़ी खाई है। चाहे शरद पवार की बात करें या चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव, मायावती, केजरीवाल, उद्धव ठाकरे या अन्य किसी क्षेत्रीय नेता की, पीएम मोदी की तुलना में कहीं न कहीं उनकी सामर्थ्य कम दिखती है। हालांकि ममता को लेकर भी सवाल है कि क्या कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना, अकाली दल, सपा, बसपा, डीएमके जैसे विपक्षी दल एकजुट होकर दीदी को अपना नेता कबूल करेंगे? 

फिर क्या ममता कोई इन सब दलों को जोड़कर अगले दो सालों में एनडीए का विकल्प तैयार कर सकेगी? बिखरे विपक्ष को एकजुट करने के लिए क्या कांग्रेस अपनी महत्वाकांक्षाओं को सीमित करेगी? यदि ऐसा हो सका तो दीदी राष्ट्रीय स्तर पर खेला करने में सक्षम हो सकती हैं। ऐसे में यह सवाल भी मौजूं है कि क्या दीदी बंगाल की कमान अपने पास रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर ताल ठोकेंगी या बंगाल की गद्दी किसी और को सौंपकर राष्ट्रीय राजनीति में ताल ठोकेंगी? यह देखना होगा।

हालांकि भाजपा के नजरिये से देखा जाए तो 5 राज्यों में असम को छोड़ दें तो भाजपा के पास गंवाने के लिए कुछ खास नहीं है। पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव में उसे महज 3 सीटें मिली थीं। इसलिए उसे जो भी मिलेगा वह उसकी जीत ही होगी। इसी तरह देखें तो पिछले चुनाव में केरल में भाजपा को सिर्फ एक सीट मिली थी और तमिलनाडु में उसका खाता भी नहीं खुला था। पुद्दुचेरी में भी उसके पास 3 विधायक थे, जिनको केंद्र सरकार ने मनोनीत किया था। यानी वहां भी पार्टी कोई भी सीट नहीं जीत सकी थी।

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