मेरठ: बीजेपी सरकार बनने के बाद से गाय पालने से बच रहे मुसलमान, ये है मुस्लिम बाहुल्य गांव का हाल

Written by Sabrangindia Staff | Published on: December 26, 2018
मेरठ। हाल ही में बुलंदशहर के स्याना में कथित गोकशी के चलते एक पुलिस इंस्पेक्टर और एक युवक की हत्या कर दी गई। उन्मादी भीड़ गाय के नाम पर जब तब बेकाबू हो जाती है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से देशभर में गाय के नाम पर हिंसा के कई मामले सामने आए हैं। इसके बाद यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से कथित गोरक्षकों के हंगामे की खबरें आती रही हैं। 

योगी आदित्यनाथ द्वारा गाय को इंसान की जान से ज्यादा महत्व दिया जा रहा है इसका नजारा बुलंदशहर हिंसा के दौरान देखने को मिला। जब योगी सरकार ने इंस्पेक्टर की मौत पर एक शब्द बोले बगैर कहा कि गोकशी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट कहती है कि यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से गोपालक मुस्लिमों में खौफ है। इतना ही नहीं मेरठ क्षेत्र में मुस्लिम गोपालक किसी भी तरह की अनहोनी की आशंका को देखते हुए अपनी गायों को बेच रहे हैं। 


बुलंदशहर के स्याना क्षेत्र के एक प्रभावशाली नेता हैं बदर-उल-इस्लाम, जिन्होंने 2004 में भाजपा के कल्याण सिंह के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था और 8,000 मतों के अंतर से हार गए थे। वे कहते हैं कि सूबे में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद उन्होंने अपनी दो गाय बेच दी हैं। 

बदर-उल-इस्लाम कहते हैं कि परिवर्तन की हवा को देखते हुए, मैंने अपनी दो गायों को बेचने का फैसला किया क्योंकि मैं अपने लिए परेशानी मोल नहीं लेना चाहता था। मैं गायों के प्रति स्नेह रखता हूं और उन्हें अपने घर पर एक दशक से अधिक समय से पाल रहा था क्योंकि गाय का दूध बच्चों और यहां तक कि वयस्कों के स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।

हिंदुस्तान टाइम्स की इसी रिपोर्ट में मेरठ के सौंदत गांव के बारे में कहा गया है कि यहां बीजेपी सरकार आने के बाद करीब 200 लोग अपनी गाय और बैल बेच चुके हैं। सौंदत मुस्लिम बाहुल गांव है और यहां 7000 की आबादी में मुश्किल से 200 हिंदू परिवार हैं।  

इसी गांव के बीजेपी के मेरठ यूनिट के जनरल सेक्रेट्री हैं गुलजार हसन। गुलजार हसन कहते हैं कि गांव में काफी मुस्लिम बीजेपी सपोर्टर हैं और 2017 के चुनाव में उन्होंने बीजेपी को वोट दिया था। 

इस गांव के लोग कहते हैं कि यहां के मुस्लिमों ने बीजेपी के ''अच्छे दिन'' के नारे की वजह से वोट किया था। उन्हें भी अच्छे दिन की उम्मीद थी लेकिन यह जुमला साबित हुआ। उनका दावा है कि नफरत औऱ बंटवारे की राजनीति की वजह से बीजेपी इस गांव से अपना जनाधार खो देगी। एक गांव वाले ने कहा कि मुस्लिम बाहुल्य होने के बाद भी सोंदत गांव हिंदू मुस्लिम एकता का नजारा देखने को मिलता है। हम विभाजन और भेदभाव की राजनीति को पसंद नहीं करते। यहां तक कि गांव में इकलौता मंदिर बनाया गया तो उसमें भी मुस्लिमों ने सहयोग किया। मुस्लिमों के सौहार्द के दावों की पुष्टि करते हुए गांव के ही चमन सिंह ने कहा कि यहां हिंदुओं ने कभी भी इन्सिक्योर फील नहीं किया। 

सौंदत गांव के प्रधान कलुवा कहते हैं कि उसका परिवार पहले से ही गाय और बैल रखता है। दूध की अच्छी क्वालिटी की वजह से गाय पालन किया जाता था लेकिन यूपी में बीजेपी की सरकार बनने के दो महीने बाद ही उन्होंने अपनी गाय एक दूधवाले को बेच दी। इसके बाद उनके एक बैल की मृत्यु हो गई। उन्हें डर था कि बैल बेचने से परेशानी हो सकती है इसीलिए उसे किसी को बेचा नहीं। कलुवा का दावा है कि बीजेपी सरकार आने के बाद से झूठे केसों में फंसने का डर मुस्लिमों के अंदर पैदा हुआ है जिसकी वजह से पिछले दो साल में करीब 200 गाय औऱ बैल बेच दिए गए। कलुवा ने दावा किया कि जो लोग अभी भी गाय पाल रहे हैं वे गोरक्षकों औऱ पुलिस के डर की वजह से गायों को खेतों में चराने के लिए नहीं ले जाते।  

एक अन्य ग्रामीण वकील अहमद कहते हैं कि वे तीन साल से गाय पाल रहे थे लेकिन बीजेपी सरकार बनने के बाद उन्होंने भी बेच दी। इसी गांव के नसीर कहते हैं कि लोग गाय को पालना चाहते हैं क्योंकि यह भैंस की तुलना में ज्यादा व्यवहार्य है। लेकिन सभी डरे हुए हैं और गाय बेचने में ही भलाई समझते हैं। इतना ही नहीं, लोग गोरक्षकों और पुलिस के डर से अपनी गायों को अपने घरों से बाहर निकालने से भी डरते हैं।  

शमशाद कहते हैं कि उनकी गाय बीमार पड़ गई तो उन्हें डॉक्टर घर पर ही बुलाना पड़ा। उनका कहना है कि मैं इसे बाहर नहीं ले जा सका क्योंकि मुझे डर था कि मैं डॉक्टर के पास से गाय के साथ वापस आ पाउंगा या नहीं। ऐसे में मैंने डॉक्टर को घर बुलाना ही उचित समझा।  

एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि “हम इलाज के लिए गायों और बैलों को बाहर भी नहीं ले जा सकते क्योंकि इससे परेशानी हो सकती है। यदि हम उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की हिम्मत करते हैं तो दक्षिणपंथी कार्यकर्ता और पुलिस आम तौर पर हमसे जानवरों को छीन लेते हैं।  

65 वर्षीय मेहरबान, गायों के प्रति स्नेह के कारण गाँव में लोकप्रिय हैं। वह अपने पिता के समय से गायों का पालन-पोषण कर रहे हैं और वर्तमान में उनके पास दो गाय और एक बछड़ा है। वे कहते हैं कि मैंने अपनी गायों को चरने के लिए बाहर जाने से रोक दिया है। हालांकि यह उनकी दूध उत्पादन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है लेकिन मेरे पास उन्हें घर पर खिलाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

गांव वालों का कहना है कि अगर वे इन गौरक्षकों की शिकायत करते हैं तो पुलिस इस पर ध्यान नहीं देती। इसी तरह के एक मामले का हवाला देते हुए, सलीम का कहना है कि उसने लगभग नौ महीने पहले अहमदपुरी गाँव के एक गुर्जर से 20,000 रुपये में एक गाय खरीदी थी। एक दिन सुबह, मेरी अनुपस्थिति में परीक्षितगढ़ पुलिस मेरे घर आई और गाय को ले गई। जब मैंने पुलिस से संपर्क किया, तो उन्होंने मुझे धमकी दी कि वे मुझे गोहत्या में फंसा देंगे। 

सलीम कहते हैं कि कोई मदद नहीं मिलने पर मैंने अदालत का रुख किया और 103 दिन की लड़ाई के बाद अपनी गाय वापस ले ली। मैंने गाय को अपने ससुराल भेज दिया है। सलीम अब गाय रखने से हिचकते हैं। सलीम का कहना है कि परिवार को खतरे में डालने का मतलब ही क्या है।  

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