भोपाल। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने चार मुस्लिम युवकों पर लगे आरोपों को 6 अक्टूबर को खारिज कर दिया जो उन पर लगाए गए थे। चारों युवकों के खिलाफ 2019 में मुहर्रम के जुलूस के दौरान तलवारें ले जाने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाये जाने को लेकर राज्य सरकार पर दस हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया है।

कोर्ट ने चार बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि केवल याचिकाकर्ता के भाई को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत डिटेंशन (हिरासत) में रखने के लिए इस कोर्ट के समक्ष ऐसा गलत बयान दिया जा रहा है और इसलिए याचिका की अनुमति दी जानी चाहिए।'
कोर्ट ने इसी तरह की याचिकाओं में भी समान मुआवजा देने और अधिकारियों को केवल गंभीर मामलों के लिए रासुका का उपयोग करने की चेतावनी दी है।
जस्टिस एस सी शर्मा और शैलेन्द्र शुक्ला ने पाया कि राजगढ़ कलेक्टर ने 4 सितंबर को हकीम, सलमान, अब्दुल करीम और जहीर खान के खिलाफ कथित रूप से धारदार हथियारों की तस्करी और संभावित रूप से सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए एनएसए आरोप गलत तरीके से लगाए थे। एक लड़के को छोड़कर, आरोपी व्यक्तियों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर गंभीर हमला शामिल है और इसलिए, यह सुनिश्चित करना अदालतों का एकमात्र कर्तव्य है कि यह शक्ति संविधान और कानून की आवश्यकता के अनुसार कड़ाई से प्रयोग की जाए।
राजगढ़ पुलिस के अनुसार, उन्होंने शांति बनाए रखने और 'राज्य की सुरक्षा के लिए किसी भी मामले में कार्रवाई करने से रोकने के लिए चार युवाओं को हिरासत में लिया था।' एसपी ने 3 सितंबर को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसके बाद जिला कलेक्टर ने एनएसए डिटेंशन ऑर्डर पास किया।
हालांकि, हकीम के बड़े भाई द्वारा दायर जमानत याचिका में कहा गया है कि पुलिस ने उसे 23 और 24 अगस्त की रात को हिरासत में लिया था और बाद में उसे शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत जिला जेल भेज दिया था। इसके बाद, कलेक्टर ने एनएसए आरोपों को लगाया और डिटेंसन का ऑर्डर पारित किया।
'याचिकाकर्ता का भाई एक कट्टर अपराधी नहीं है और उस पर केवल शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत आरोप लगाए गए थे। लेकिन, कलेक्टर ने उसके खिलाफ एनएसए का चालान किया, वह भी तब जब वह एक कथित अपराध के लिए जेल में था जो एक साल पहले किया गया था। डिटेंशन का ऑर्डर प्रतिशोधात्मक (बदला लेने) तरीके से पारित किया गया।'
उन्होंने तर्क दिया कि एनएसए के तहत डिटेंशन को भी आवश्यकता के अनुसार 12 दिनों के भीतर अनुमोदित (Approvel) नहीं किया गया था। अदालत ने बदले में सवाल किया कि 14 सितंबर को आदेश क्यों नहीं जारी किया गया जब डिटेंशन (हिरासत) में लेने की मंजूरी दी गई थी। उन्हें प्रशासन के अनुमोदन के आदेश पर संदेह था।
हकीम को हिरासत में लेने का आधार 5 सितंबर को सहायक दस्तावेजों के साथ दिया गया था, जब वह जेल में था, जबकि राज्य सरकार ने 14 सितंबर को अपनी मंजूरी दी थी। हकीम को 17 सितंबर को मंजूरी मिली और यह मामला अभी भी सलाहकार बोर्ड के समक्ष लंबित था।
बेंच ने कहा, 'यह अदालत वास्तव में यह समझने में विफल है कि 30 अगस्त, 2020 को हुई एक रोज़नामचा प्रविष्टि के आधार पर, जिसमें पुलिस द्वारा यह कहा गया था कि याचिकाकर्ता के भाई ने पिछले साल मोहर्रम के जुलूस में भाग लिया था, जो तलवारें लेकर चल रहा था, वह कानून के लिए खतरा कैसे हो सकता है? मोहर्रम में भागीदारी पिछले साल, भले ही इसे सही मान लिया जाए, लेकिन इस साल होने वाले जुलूस की कोई प्रासंगिकता नहीं है।'

कोर्ट ने चार बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि केवल याचिकाकर्ता के भाई को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत डिटेंशन (हिरासत) में रखने के लिए इस कोर्ट के समक्ष ऐसा गलत बयान दिया जा रहा है और इसलिए याचिका की अनुमति दी जानी चाहिए।'
कोर्ट ने इसी तरह की याचिकाओं में भी समान मुआवजा देने और अधिकारियों को केवल गंभीर मामलों के लिए रासुका का उपयोग करने की चेतावनी दी है।
जस्टिस एस सी शर्मा और शैलेन्द्र शुक्ला ने पाया कि राजगढ़ कलेक्टर ने 4 सितंबर को हकीम, सलमान, अब्दुल करीम और जहीर खान के खिलाफ कथित रूप से धारदार हथियारों की तस्करी और संभावित रूप से सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए एनएसए आरोप गलत तरीके से लगाए थे। एक लड़के को छोड़कर, आरोपी व्यक्तियों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर गंभीर हमला शामिल है और इसलिए, यह सुनिश्चित करना अदालतों का एकमात्र कर्तव्य है कि यह शक्ति संविधान और कानून की आवश्यकता के अनुसार कड़ाई से प्रयोग की जाए।
राजगढ़ पुलिस के अनुसार, उन्होंने शांति बनाए रखने और 'राज्य की सुरक्षा के लिए किसी भी मामले में कार्रवाई करने से रोकने के लिए चार युवाओं को हिरासत में लिया था।' एसपी ने 3 सितंबर को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसके बाद जिला कलेक्टर ने एनएसए डिटेंशन ऑर्डर पास किया।
हालांकि, हकीम के बड़े भाई द्वारा दायर जमानत याचिका में कहा गया है कि पुलिस ने उसे 23 और 24 अगस्त की रात को हिरासत में लिया था और बाद में उसे शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत जिला जेल भेज दिया था। इसके बाद, कलेक्टर ने एनएसए आरोपों को लगाया और डिटेंसन का ऑर्डर पारित किया।
'याचिकाकर्ता का भाई एक कट्टर अपराधी नहीं है और उस पर केवल शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत आरोप लगाए गए थे। लेकिन, कलेक्टर ने उसके खिलाफ एनएसए का चालान किया, वह भी तब जब वह एक कथित अपराध के लिए जेल में था जो एक साल पहले किया गया था। डिटेंशन का ऑर्डर प्रतिशोधात्मक (बदला लेने) तरीके से पारित किया गया।'
उन्होंने तर्क दिया कि एनएसए के तहत डिटेंशन को भी आवश्यकता के अनुसार 12 दिनों के भीतर अनुमोदित (Approvel) नहीं किया गया था। अदालत ने बदले में सवाल किया कि 14 सितंबर को आदेश क्यों नहीं जारी किया गया जब डिटेंशन (हिरासत) में लेने की मंजूरी दी गई थी। उन्हें प्रशासन के अनुमोदन के आदेश पर संदेह था।
हकीम को हिरासत में लेने का आधार 5 सितंबर को सहायक दस्तावेजों के साथ दिया गया था, जब वह जेल में था, जबकि राज्य सरकार ने 14 सितंबर को अपनी मंजूरी दी थी। हकीम को 17 सितंबर को मंजूरी मिली और यह मामला अभी भी सलाहकार बोर्ड के समक्ष लंबित था।
बेंच ने कहा, 'यह अदालत वास्तव में यह समझने में विफल है कि 30 अगस्त, 2020 को हुई एक रोज़नामचा प्रविष्टि के आधार पर, जिसमें पुलिस द्वारा यह कहा गया था कि याचिकाकर्ता के भाई ने पिछले साल मोहर्रम के जुलूस में भाग लिया था, जो तलवारें लेकर चल रहा था, वह कानून के लिए खतरा कैसे हो सकता है? मोहर्रम में भागीदारी पिछले साल, भले ही इसे सही मान लिया जाए, लेकिन इस साल होने वाले जुलूस की कोई प्रासंगिकता नहीं है।'