अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार ने कहा, "आरोपी मोहम्मद अंसार की जमानत याचिका इस अदालत की संतुष्टि के लिए 25,000 रुपये के जमानती बॉण्ड और इतनी ही राशि के निजी मुचलके की शर्त के साथ स्वीकार की जाती है।"
फाइल फ़ोटो।
नयी दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक निचली अदालत ने जहांगीरपुरी हिंसा के आरोपियों में से एक को शुक्रवार को यह कहते हुए जमानत दे दी कि मामले में आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है और सुनवाई पूरी होने में काफी समय लगेगा।
अदालत मोहम्मद अंसार की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दिल्ली पुलिस के अनुसार याचिकाकर्ता हिंसा के मुख्य आरोपियों में से एक है।
हालांकि पुलिस अभी तक किसी पर आरोप सिद्ध नहीं कर पाई है ।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार ने कहा, "आरोपी मोहम्मद अंसार की जमानत याचिका इस अदालत की संतुष्टि के लिए 25,000 रुपये के जमानती बॉण्ड और इतनी ही राशि के निजी मुचलके की शर्त के साथ स्वीकार की जाती है।"
अदालत ने कहा कि आरोपी के संबंध में जांच पूरी हो चुकी है और आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है।
सुनवाई पूरी होने में लंबा समय लगेगा और आरोपी को न्यायिक हिरासत में रखने से कोई मकसद पूरा नहीं होगा।
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि मामले के कुछ सह-आरोपियों को इस अदालत के साथ-साथ दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी जमानत दे दी है।
इससे पहले अगस्त में एक अन्य आरोपी की सुनवाई के दौरान भी पुलिस की जांच पर सवाल उठाए गए थे और मुस्लिम आरोपियों को ज़मानत दे दी थी। दिल्ली याचिककर्ता को जमानत देते हुए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति योगेश खन्ना ने बाबुद्दीन (43) को 20 हजार रुपये की जमानत और इतनी ही राशि के मुचलके पर जमानत पर रिहा कर दिया था। अदालत ने कहा था कि सीसीटीवी फुटेज में आरोपी सिर्फ खड़ा दिख रहा है और वह भीड़ को उकसाता नहीं दिख रहा है।
अदालत ने इसके साथ ही यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने दूसरा सीसीटीवी फुटेज लाने के लिये बार-बार तारीख ली, लेकिन अदालत में अबतक इसे प्रस्तुत नहीं किया जा सका है।
अदालत ने विचार किया कि याचिकाकर्ता 27 अप्रैल से हिरासत में है और आगे की जांच के लिये उसकी जरूरत नहीं है और इसलिये उसे मामले में जमानत दी जाती है।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, ‘‘जहां तक याचिकाकर्ता का सवाल है, राज्य ने उसे भीड़ का नेता बताया है, और दो सीसीटीवी फुटेज में उसकी पहचान की गयी है। हालांकि, सीसीटीवी फुटेज में याचिकाकर्ता केवल खड़ा है और भीड़ को उकसाते हुये नहीं दिख रहा है।’’
अदालत ने कहा कि राज्य ने अन्य सीसीटीवी फुटेज रिकार्ड में लाने के लिये कई बार तारीख ली, लेकिन उन्होंने अब तक इसे प्रस्तुत नहीं किया है। अदालत ने कहा कि मामले में आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है और सह आरोपियों में से एक जाहिद को जमानत भी मिल गयी है। अदालत ने इन सब तथ्यों के मद्देनजर आरोपी की जमानत मंजूर कर ली।
इससे पहले दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के अनधिकृत जुलूस को रोकने में ‘‘पूरी तरह नाकाम’’ रही। इस जुलूस के दौरान इलाके में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी।
गौरतलब है कि इस साल 16 अप्रैल को जहांगीरपुरी में दो समुदायों के बीच झड़प हो गई थी और इस दौरान कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया था। इस हिंसा में स्थानीय लोगों के अलावा कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे।
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)
साभार- न्यूजक्लिक
फाइल फ़ोटो।
नयी दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक निचली अदालत ने जहांगीरपुरी हिंसा के आरोपियों में से एक को शुक्रवार को यह कहते हुए जमानत दे दी कि मामले में आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है और सुनवाई पूरी होने में काफी समय लगेगा।
अदालत मोहम्मद अंसार की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दिल्ली पुलिस के अनुसार याचिकाकर्ता हिंसा के मुख्य आरोपियों में से एक है।
हालांकि पुलिस अभी तक किसी पर आरोप सिद्ध नहीं कर पाई है ।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार ने कहा, "आरोपी मोहम्मद अंसार की जमानत याचिका इस अदालत की संतुष्टि के लिए 25,000 रुपये के जमानती बॉण्ड और इतनी ही राशि के निजी मुचलके की शर्त के साथ स्वीकार की जाती है।"
अदालत ने कहा कि आरोपी के संबंध में जांच पूरी हो चुकी है और आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है।
सुनवाई पूरी होने में लंबा समय लगेगा और आरोपी को न्यायिक हिरासत में रखने से कोई मकसद पूरा नहीं होगा।
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि मामले के कुछ सह-आरोपियों को इस अदालत के साथ-साथ दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी जमानत दे दी है।
इससे पहले अगस्त में एक अन्य आरोपी की सुनवाई के दौरान भी पुलिस की जांच पर सवाल उठाए गए थे और मुस्लिम आरोपियों को ज़मानत दे दी थी। दिल्ली याचिककर्ता को जमानत देते हुए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति योगेश खन्ना ने बाबुद्दीन (43) को 20 हजार रुपये की जमानत और इतनी ही राशि के मुचलके पर जमानत पर रिहा कर दिया था। अदालत ने कहा था कि सीसीटीवी फुटेज में आरोपी सिर्फ खड़ा दिख रहा है और वह भीड़ को उकसाता नहीं दिख रहा है।
अदालत ने इसके साथ ही यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने दूसरा सीसीटीवी फुटेज लाने के लिये बार-बार तारीख ली, लेकिन अदालत में अबतक इसे प्रस्तुत नहीं किया जा सका है।
अदालत ने विचार किया कि याचिकाकर्ता 27 अप्रैल से हिरासत में है और आगे की जांच के लिये उसकी जरूरत नहीं है और इसलिये उसे मामले में जमानत दी जाती है।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, ‘‘जहां तक याचिकाकर्ता का सवाल है, राज्य ने उसे भीड़ का नेता बताया है, और दो सीसीटीवी फुटेज में उसकी पहचान की गयी है। हालांकि, सीसीटीवी फुटेज में याचिकाकर्ता केवल खड़ा है और भीड़ को उकसाते हुये नहीं दिख रहा है।’’
अदालत ने कहा कि राज्य ने अन्य सीसीटीवी फुटेज रिकार्ड में लाने के लिये कई बार तारीख ली, लेकिन उन्होंने अब तक इसे प्रस्तुत नहीं किया है। अदालत ने कहा कि मामले में आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है और सह आरोपियों में से एक जाहिद को जमानत भी मिल गयी है। अदालत ने इन सब तथ्यों के मद्देनजर आरोपी की जमानत मंजूर कर ली।
इससे पहले दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के अनधिकृत जुलूस को रोकने में ‘‘पूरी तरह नाकाम’’ रही। इस जुलूस के दौरान इलाके में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी।
गौरतलब है कि इस साल 16 अप्रैल को जहांगीरपुरी में दो समुदायों के बीच झड़प हो गई थी और इस दौरान कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया था। इस हिंसा में स्थानीय लोगों के अलावा कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे।
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)
साभार- न्यूजक्लिक