बजट 2024-25: नागरिकों की जेब काटकर कॉरपोरेट की झोली भरने की कवायद

Written by जयप्रकाश नारायण | Published on: July 27, 2024
संघ की संस्कृति में दीक्षित भाजपा सरकार में वित्त मंत्री कर्ण प्रिय शब्दों के मकड़जाल के साथ 2024 का बजट पेश करते हुए आगे करना क्या चाहती हैं। यही बात छुपा ली गई है। मूल लक्ष्य जिसे साधने की वित्त मंत्री ने एक घंटा 20 मिनट के बजट भाषण में कसरत की है। वह जनता के जेब से किसी न किसी बहाने पैसा निकाल कर कॉरपोरेट इंडिया की तरफ‌ प्रवाह को तेज करना था। इसके लिए उन्होंने असफल कसरत की है। जो संक्षेप में इस प्रकार है ।



कुछ तथ्य- आज का यथार्थ।

महंगाई -खाद्य महंगाई 9.4 प्रतिशत बढ़ी है। सब्जी 29.32 प्रतिशत, अनाज 8.75 प्रतिशत, दलहन 16.6%, दूध 7 प्रतिशत के आसपास।

बेरोजगारी-वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत, शिक्षित और उच्च शिक्षित बेरोजगारी 23% से 46% के बीच में है।

बचत दर-आज तक के इतिहास की सबसे कम 5.3 प्रतिशत।

गोल्ड लोन-आईएमईआई बढ़ता जा रहा है।

प्राइवेट कंजम्पशन-58% पर लंबे समय से ठहरा है। सामान्य आदमी की उपभोग क्षमता घटी है। जिससे बाजार का संकट तीव्र हुआ है।

एआई-आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से रोजगार तेजी से घट रहा है। सरकार के अनुसार बेरोजगारी दर 6,7 प्रतिशत।
सवाल जनता से यह है कि जो आपके पास है, उसे किस तरह से बचा के रखें, क्योंकि मुसीबत आने वाली है।
आयकर– मामूली छूट -17500 रुपए। 3 लाख से 10 लाख के बीच सालाना कमाने वालों के लिए, जो सरकार दे रही है
जीएसटी दर में कोई परिवर्तन नहीं।
सरकारी टैक्स-27 लाख 28 हजार करोड़ से बढ़कर 31 लाख 25 हजार करोड़ हो गया है।15% की बढ़ोतरी।
इस वर्ष टैक्स से चार लाख करोड़ की अतिरिक्त वसूली। जीएसटी, इनकम टैक्स, पेट्रोल, डीजल टैक्स यथावत।
सरकार को 12 लाख करोड़ बजट से ऋण भुगतान में देना है। इसके लिए सरकार 16 लाख करोड़ बाजार से (देसी विदेशी) ऋण लेने जा रही है। वैसे ही विदेशी ऋण सर्वकालिक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। लगभग 2 लाख करोड़ के आसपास। जिसके ब्याज की वापसी शुरू होने जा रही है। कंपनी टैक्स से निजी आयकर ज्यादा है। जो 13 लाख 87 हजार करोड़ है।
64% जीएसटी आम उपभोक्ता के जेब से आती है। कॉर्पोरेट कुल जीएसटी संग्रह का 23% देते हैं। पिछले वर्ष 10 लाख 44 हजार करोड़ से बढ़कर इस वर्ष 11 लाख 88 हजार करोड़ हो गया। यानी सरकार ने 1,40 लाख करोड़ जनता की जेब से निकाल लिया।

खर्चा –

रक्षा व्यय- पिछले साल 4.55 लाख करोड़ था। जो इस साल घटकर 3 लाख 55 हजार करोड़। यानी देश की सुरक्षा,सेना पर 1 लाख करोड़ रूपया इस वर्ष कम खर्च होगा। भारतीय सेना के पराक्रम का गुणगान और तेज हो जाएगा। याद रखें अग्निवीर। बढ़ते आतंकी हमले। चीन पाकिस्तान सीमा पर बढ़ती असुरक्षा के बीच बजट में कटौती।
फर्टिलाइजर सब्सिडी-1.89 हजार करोड़ से घटकर 1.64 हजार करोड़। यानी 25 हजार करोड़ की कमी। किसान पूजा पाठ पर ज्यादा ध्यान लगाए।

फूड सब्सिडी– पिछले वर्ष 2.12लाख करोड़ इस वर्ष 2. 5 लाख करोड। 7 हजार करोड़ की कमी।
कृषि बजट-1,44 हजार करोड़ से बढ़कर एक 1, 51हजार करोड़। 6000 करोड़ की वृद्धि। जो शक्ल घरेलू उत्पादका ढाई % है। किसान सम्मान निधि 6 साल बाद भी 60हजार करोड़ पर स्थिर। विदेश मंत्रालय का आबंटन -2 9हजार करोड़ से घटकर 22हजार करोड़ रुपए्। 7 हजार करोड़ की कमी। लगता है विश्व गुरु और विश्व नेता बनने की योजना स्थगित हो गई है।

शिक्षा-

समग्र शिक्षा अभियान 2 साल पहले 33.5 हजार करोड़ था। जो अब घटकर 33.3 हजार करोड़ हो गया है। शिक्षा सुधार उच्च शिक्षा और शोध तथा अन्य विषयों के लिए बजट में कोई चर्चा नहीं की गई है। सिर्फ शिक्षा ऋण से शिक्षा की गाड़ी आगे चलनी है। शिक्षा ऋण की माफी या उसमें किसी रियायत पर चर्चा नहीं है। प्रधानमंत्री पोषण स्कीम 1268 करोड़ से घटकर 1240 करोड़ हो गई है।

आयुष्मान भारत 7200 करोड़ से 140 करोड़ जनता का इलाज होना है। सार्वभौम स्वास्थ्य सेवा पर न कोई बहस है न चिकित्सा व्यवस्था मे सुधार की कोई योजना।
प्रधानमंत्री आवास योजना -30 हजार करोड़ पहले था। अब 28 हजार करोड़। एक करोड़ मकान जिनकी लागत 10 लाख रुपए आएगी। बनाने की योजना है। 2022 तक सबको पक्का मकान देने की गारंटी प्रधानमंत्री पहले ही दे चुके थे। लगता है मोदी की यह गारंटी अमृत काल के पार चली गई है।

स्मार्ट सिटी -8 हजार करोड़ से घटकर 2400 करोड़। 10 वर्ष पहले से बन रहे 100 स्मार्ट सिटी के बारे में कोई रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत की गई।
मनरेगा 3 साल पहले 90 हजार करोड़ था। अभी भी 86 हजार करोड़ पर रुका है। जबकि जॉब कार्ड धारकों की संख्या बढ़ी है। वित्त मंत्री ने जॉबकार्ड धारक परिवार एक सदस्य को 1 साल में मनरेगा में 100 दिन काम देने की घोषणा की है।

अनुसूचित जनजाति विकास– 4300 करोड़। जो दो वर्ष से स्थिर है। वात्सल्य मिशन 2 साल पहले 1472 करोड़ रुपये से शुरू हुआ था अभी भी वहीं पर रुका है।
मिशन शक्ति– 2 साल पहले 3144 करोड़। अब बढ़कर 3146 करोड़ फसल बीमा 15000 करोड़ से घटकर 14.5 हजार करोड़।

मिड डे मील, पोषण तत्व अधिकार– सब्सिडी 86000 करोड़ 22-23 में थी। 24-25 में घटकर 46000 करोड़ हो गई। यानी 40 हजार करोड़ की कमी।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना– 272 लाख करोड़ से घटकर 202 लाख करोड़। मुफ्त अनाज योजना को अगले 5 साल तक चलने की घोषणा की गई है।

पूर्वोत्तर भारत– 2490 पर करोड़ 3 साल से टिका है। पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के लिए 8 करोड़ का वित्तीय आवंटन। पूर्वोत्तर विकास के लिए 22-23 में 50 हजार करोड़ दिया गया 5 वर्ष के लिए। प्राइवेट सेक्टर से 24000 करोड़ 2 साल में निवेश करना है। प्रतिवर्ष 2हजार करोड़ का खर्च सरकार और प्राइवेट से 8 हजार करोड़ लेकर पूरा किया जाएगा।

रेलवे विद्युतीकरण– 8663 करोड़ को घटा दिया गया। बाकी रेलवे पर कोई चर्चा नहीं। ट्रैक का आधुनिकीकरण सुरक्षा कवच लगाना रखरखाव नई रेल लाइन का निर्माण आदि पर बजट में कोई ठोस और स्पष्ट दिशा नहीं है। इसके लिए बजट में अलग से कुछ अभी दिखाई नहीं दे रहा है। दुर्घटनाओं की संख्या को देखते हुए सरकार की उपेक्षा चिंताजनक। साफ बात है सरकार बहुत शीघ्र रेल से अपना हाथ झाड़ लेना चाहती है। न रेलवे में खाली पड़े पदों को भरने की बात है न नए जॉब क्रिएट करने की।वस्तुत रेलवे को धीरे-धीरे निजी उद्योगपतियों के हाथ में दे देना है। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।

शेयर मार्केट– लॉन्ग टर्म गैन पर टैक्स 10% से बढ़कर 12.5% शार्ट टर्म गेन पर 15% से बढ़कर 20.5 प्रतिशत कर दिया गया है। रोजगार के अभाव में बड़ी तेजी से जो युवा पीढ़ी शेयर मार्केट की तरफ आकर्षित हुई थी। शॉर्ट टर्म में गेन में ही पैसा लगा कर रोटी-रोजी चला रही थी। अब बड़े खिलाड़ियों के हित में‌ इन पर भी हमला।

कस्टम ड्यूटी-कम की गई है। विदेशी निवेश पर टैक्स घटा दिया गया है। कुछ कैंसर की दवाओं पर एक्साइज ड्यूटी घटी है।बाकी चीजें यथावत हैं। इस तरह यह विकास यात्रा आगे बढ़ रही है।

एम एस एम ई– 30% जीडीपी का आता था। वह घटकर 23% पर आ गया है। लघु और मध्यम उद्योगों की जीएसटी में भागीदारी 7.5% घटी है। इनको उबराने की बजट में कोई रूपरेखा नहीं‌ है।
कृषि– 7500 करोड़ रिसर्च पर ख़र्च होगा। जलवायु उपयुक्त उच्च फसल वाली किस्म को प्रोत्साहित करने के नाम पर जीएम सीड को खेती में प्रवेश कराने की तैयारी। शब्दावली थोड़ा खूबसूरत और लिरिकल है।

भूमि का डिजिटलाईजेशन– 5 करोड़ किसानों की भूमि का डिजिटलाजेशन होगा। स्पष्ट है भूमि बैंक में जमीन की वृद्धि। जो भविष्य में कॉरपोरेट घरानों को दी जा सके।
रोजगार के संकट के हाल के लिए कौशल विकास नामक फ्लॉप योजना का आलाप जारी है।
फिर वही मुद्रा लोन 10 लाख से बढ़कर 20 लाख। बिना किसी जमानत के। अब तक के मुद्रा लोन योजना की समीक्षा कहीं से पेश नहीं की गई। रोजगार के नाम पर 500 निजी कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे एक करोड़ नौजवानों को 6 महीने या 1 साल तक इंटर्नशिप देकर उन्हें रोजगार के योग्य बनाएं। सरकार इसमें 3000 कंपनियों को और 5000 इंटर्नशिप करने वाले को मासिक देगी। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है की इंटर्नशिप के बाद उन नौजवानों को कंपनियां रोजगार पर रखेंगी या नहीं। क्योंकि सरकार पहले ही कह चुकी है कि कॉरपोरेट मुनाफा तो बहुत कमा रहे हैं। लेकिन रोजगार सृजन करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। नौकरी वालों के लिए टैक्स की सीमा बढ़ने से 17500 रुपए की छूट मिली है। तथा 50 हजार से बढ़ाकर 75 हजार कर दिया गया है।

शेयर बाजार में 1 साल से ज्यादा अवधि तक निवेश करने वालों को 10% से बढ़कर 12:5% पर टैक्स और 1 साल की अवधि के लिए निवेश करने वालों को 15% से बढ़ाकर 20% तक टैक्स लगाया गया है। भारत में फ्लैट, सोना और जेवर खरीदने बेचने पर 12.5 प्रतिशत टैक्स। मध्य वर्ग सावन मास में पूजा पाठ का समय थोड़ा और बढ़ा दे। शांति मिलेगी।
कॉरपोरेट टैक्स में छूट। प्रत्येक एसेट के कैपिटल गैन में 12.5% टैक्स लगेगा।
विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में निवेश पर टैक्स 40% से घटाकर 35% कर दिया गया। संभवतः चीनी कंपनियों को आकर्षित करने का प्लान है। 60% आयत चीन से ही होता है। और भारत को चीन के साथ आयात-निर्यात में भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। एफडीआई 1 साल में 62% घट गई।

कृषि और उससे संबद्ध गतिविधियों के लिए आबंटन 144214 करोड़ से घटकर 140553 करोड़ हो गया है। यह सम्पूर्ण बजट का 2.5% है। जबकि कृषि के लिए संपूर्ण बजट का तीन से चार प्रतिशत आबटित करने की मांग हो रही थी। सम्पूर्ण श्रम बल का 46% कृषि में ही लगा है। यानी कृषि 46% रोजगार का सृजन करती है।

जनजातियों के विकास का धन 4111 करोड़ से घटकर 3874 करोड़ रह गया है। समाज कल्याण में 55 हजार 80 करोड़ से घटकर 46 हजार 741 करोड़ पर आ गया है।

यह है पूरा बजट आवंटन जो मोटी-मोटा दिखाई दे रहा है। इस तरह बजट में जन कल्याण विकास मनरेगा खाद्यान्न सुरक्षा किसान सम्मान निधि मिड-डे-मील पोषणीय तत्वों के सप्लाई और समाज कल्याण से लेकर जनजातियों के लिए लगने वाले पैसे में भारी कमी देखी गई।

राजनीतिक दबाव-चुनाव में बीजेपी की हार का सदमा बजट के निर्धारण में साफ-साफ दिखाई दे रहा है। बैसाखी पर टिकी सरकार के वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में बिहार और आंध्रप्रदेश के बारे में बार-बार चर्चा कर यह दिखाने की कोशिश की है कि बिहार और आंध्र प्रदेश में स्वर्ग आने वाला है। बजट में बिहार के लिए 27000 करोड़ और आंध्र के लिए 15000 करोड़ रुपए के आवंटन ने सबका ध्यान खींचा है। यह आवंटन मूलतः इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में लगेगा। यहां भी भाजपा ने बोध गया गया राजगीर नालंदा जैसी जगहों को कनेक्टिविटी से जोड़कर यह दिखाने की कोशिश की है कि वह अपने हिंदूत्ववादी एजेंडा पर अभी भी टिकी हुई है। जबकि बिहार के पिछड़ेपन को देखते हुए बिहार में कृषि विकास के लिए सीधे पूंजी निवेश की जरूरत थी। जिसमें सिंचाई के साधनों का विस्तार नहरों की मरम्मत जलाशयों और बांधों के निर्माण द्वारा जल संग्रह के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास‌ के सवाल को हल करने की जरूरत थी।

भारत में सबसे ज्यादा श्रम का पलायन बिहार से ही होता है। उत्तरी बिहार जहां बाढ़ में डूब जाता है वहीं दक्षिणी बिहार सुखाड़ से पीड़ित रहता है। बिहार के समृद्धि का रास्ता बाढ़ और सुखाड़ से मुक्ति दिलाने के रास्ते से ही आगे बनता है।

बिहार में पटना को जोड़ने वाले चार एक्सप्रेस-वे के निर्माण की घोषणा कर भारत सरकार ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वह बिहार को इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में आधुनिक राज्य बनाना चाहती है। ये सभी परियोजनाऐं‌ अगले 5 वर्ष की के लिए है। तब तक बिहार को मोदी सरकार बचाने के लिए बैसाखी लगाए रखना होगा। वही आंध्र प्रदेश में राजधानी के निर्माण के लिए 17 हजार करोड़ देकर केंद्र सरकार ने दूसरी बैसाखी का इंतजाम किया है। लेकिन इस प्रक्रिया में भारत सरकार यह भूल गई है कि एक विशालकाय ‌देश की जिम्मेदारी उसके कंधे पर है।

पूर्वोत्तर भारत की बात करते हुए बार-बार आंध्र उड़ीसा झारखंड बिहार बंगाल पर चर्चा जाकर केंद्रित हो जा रही थी। साफ बात है कि पश्चिमोत्तर भारत, उत्तर प्रदेश, दक्षिणी भारत से हताश भाजपा ने इस आदिवासी पट्टी में अपनी जड़ें जमाने की योजना बनाई है। जहां पहले से ही आरएसएस एक सांप्रदायिक एजेंडा के साथ सक्रिय है। वह पहले भी उड़ीसा झारखंड छत्तीसगढ़ में कई बार सांप्रदायिक विध्वंस कर चुका है। उड़ीसा में नवीन बाबू को यह बात अभी भी याद है, कैसे 50 हजार से ज्यादा आदिवासी ईसाइयों को उजाड़ दिया गया था। इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों को इसे सिर्फ भाजपा की राजनीतिक मजबूरी के रूप में नहीं देख कर उसके दूरगामी सांप्रदायिक एजेंट के विस्तार के संदर्भ में भी देखना चाहिए।

दूसरी बात कश्मीर के लद्दाख से शुरू कर पंजाब हिमाचल उत्तर प्रदेश हरियाणा राजस्थान गुजरात महाराष्ट्र मध्य प्रदेश से कन्याकुमारी तक बजट में किसी भी राज्य के बारे में कोई चर्चा एक बार भी नहीं की गई । सामान्य बात है कि भाजपा कश्मीर पंजाब हरियाणा महाराष्ट्र और दक्षिण भारत से हताश और निराश हो चुकी है। उत्तर प्रदेश की हार से वह अभी तक ऊबर नहीं पाई है। हिन्दी पट्टी में अपनी पराजय को देखते हुए भाजपा और ज्यादा अलगाव वादी तथा सांप्रदायिक होती जा रही है। हालिया दिनों में हुई घटनाएं इस बात का संकेत है।

इसलिए बजट की दिशा और प्राथमिकताओं को हमें अवश्य समझना चाहिए। वैसे हमें पता है कि बेरोजगारों के सवाल, किसानों के लिए एमएसपी का सवाल, कर्ज माफी, शिक्षा स्वास्थ्य जैसे सवाल भाजपा के एजेंडे में कभी नहीं रहे और न आगे आने वाले हैं। उसकी प्रार्थनाएं बहुत स्पष्ट हैं। उसके विकास के रास्ते सांप्रदायिक विभाजन और धार्मिक एजेंट के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रहते हैं ।

इसलिए इस बजट में फिलहाल इस तरह के खुले संकेत न होने से थोड़ी राहत तो महसूस हो ही रही है। लेकिन यह क्षणिक है।ज्यों ही भाजपा फिर से ताकतवर होगी और ज्यादा आक्रामक तथा विध्वंसक रूप में सामने आएगी। इसलिए इस देश के लोकतंत्र पसंद नागरिकों, सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार से जुड़े संस्थाओं, व्यक्तियों और विपक्षी राजनीतिक दलों को भी सचेत रहने की जरूरत है और भाजपा पर दबाव बनाकर उसे बाध्य करने की जरूरत है कि वह देश के बुनियादी सवालों के समाधान के रास्ते पर वापस लौटे हालांकि भाजपा के तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्ण‌‌ बजट से हताशा निराशा और दिशाहीनता से स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि भाजपा सरकार के भविष्य पर संकट हमेशा मंडराता रहेगा। जिससे संसद से लेकर सड़क तक जन संघर्षों की आवाज़ें बार-बार सुनाई देती रहेगी। इस संदर्भ में आज बस इतना ही।

(जयप्रकाश नारायण स्वतंत्र टिप्पणीकार और किसान नेता हैं।)

साभार- जनचौक

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