मथुरा। उत्तर प्रदेश के मथुरा की एक स्थानीय अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर उनके भक्तों की दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया। इस दौरान अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने बहस की। वादी पक्ष के अधिवक्ताओं ने द्वापर युग से कलियुग तक जन्मभूमि का इतिहास बताया। करीब 500 वर्ष में मंदिर कितनी बार टूटा और बना। इसकी भी जानकारी दी गई लेकिन न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि भक्त होना दावा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

जन्मभूमि पर मालिकाना हक के लिए 25 सितंबर को सिविल कोर्ट में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री समेत छह भक्तों ने याचिका दाखिल की थी। इस पर बुधवार को एडीजे-2 पॉक्सो एक्ट की न्यायाधीश छाया शर्मा ने सुनवाई की। वादी की ओर से अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन ने द्वापर से कलियुग तक मंदिर के टूटने तथा बनने से संबंधित तथ्य कोर्ट के सामने रखे।
अधिवक्ताओं ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही ईदगाह मस्जिद के बीच हुए समझौते और डिक्री (न्यायिक निर्णय) को गलत बताया। अधिवक्ताओं ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के भक्त होने के नाते यह याचिका दाखिल की है। शाम करीब पांच बजे अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि भक्त होना यह दावा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अधिवक्ता हरीशंकर जैन ने बताया कि उन्होंने अदालत को बताया कि जहां पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, वह कंस की जेल थी और उस स्थान पर शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी है। उन्होंने कहा कि क्या उन्हें यह अधिकार नहीं कि वह वहां जाकर पूजा-अर्चना करें। उन्होंने अदालत को इतिहास बताते हुए कहा कि औरंगजेब ने 33 लाख की लागत से बनवाए गए भव्य मंदिर को न केवल तोड़वा दिया बल्कि उसकी मूर्ति को आगरा की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफन कर दिया।
वादी अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने बताया कि हमारे रास्ते अभी खुले हुए हैं। हम आगे जाएंगे और इस अदालत द्वारा दिए गए निर्णय को चुनौती देंगे। हमारे अंदर आस्था है और हम न्यायिक प्रक्रिया के तहत भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को 13.37 एकड़ की भूमि पर मालिकाना हक दिलाएंगे। वादी अधिवक्ता हरीशंकर जैन ने कहा कि अब हम इस मामले को लेकर अग्रिम अदालत जिला जज या फिर हाईकोर्ट में जाने संबंधी निर्णय लेगे। अभी हमने निर्णय का अध्ययन नहीं किया है।

जन्मभूमि पर मालिकाना हक के लिए 25 सितंबर को सिविल कोर्ट में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री समेत छह भक्तों ने याचिका दाखिल की थी। इस पर बुधवार को एडीजे-2 पॉक्सो एक्ट की न्यायाधीश छाया शर्मा ने सुनवाई की। वादी की ओर से अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन ने द्वापर से कलियुग तक मंदिर के टूटने तथा बनने से संबंधित तथ्य कोर्ट के सामने रखे।
अधिवक्ताओं ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही ईदगाह मस्जिद के बीच हुए समझौते और डिक्री (न्यायिक निर्णय) को गलत बताया। अधिवक्ताओं ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के भक्त होने के नाते यह याचिका दाखिल की है। शाम करीब पांच बजे अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि भक्त होना यह दावा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अधिवक्ता हरीशंकर जैन ने बताया कि उन्होंने अदालत को बताया कि जहां पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, वह कंस की जेल थी और उस स्थान पर शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी है। उन्होंने कहा कि क्या उन्हें यह अधिकार नहीं कि वह वहां जाकर पूजा-अर्चना करें। उन्होंने अदालत को इतिहास बताते हुए कहा कि औरंगजेब ने 33 लाख की लागत से बनवाए गए भव्य मंदिर को न केवल तोड़वा दिया बल्कि उसकी मूर्ति को आगरा की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफन कर दिया।
वादी अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने बताया कि हमारे रास्ते अभी खुले हुए हैं। हम आगे जाएंगे और इस अदालत द्वारा दिए गए निर्णय को चुनौती देंगे। हमारे अंदर आस्था है और हम न्यायिक प्रक्रिया के तहत भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को 13.37 एकड़ की भूमि पर मालिकाना हक दिलाएंगे। वादी अधिवक्ता हरीशंकर जैन ने कहा कि अब हम इस मामले को लेकर अग्रिम अदालत जिला जज या फिर हाईकोर्ट में जाने संबंधी निर्णय लेगे। अभी हमने निर्णय का अध्ययन नहीं किया है।