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आनंद तेलतुंबड़े ने भीमा कोरेगांव सहित कई मुद्दों पर रखी अपनी बात, देखिए न्यूजक्लिक का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आनंद तेलतुंबड़े के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से मना कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि जांच प्रक्रिया इस समय जिस चरण में है, उसमें एफआईआर रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट का मानना था कि एफआईआर रद्द करके वह फिलहाल जांच प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करना चाहता।

न्यूजक्लिक ने एक्टिविस्ट, स्कॉलर और मैनेजमेंट प्रोफेसर, आनंद तेलतुम्बडे के साथ इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, भीमा कोरेगांव मामले में उनकी कथित संलिप्तता, जनता के लिए उनके खुले पत्र और भारत में नागरिक सुरक्षा पर हमले के व्यापक सवाल पर चर्चा की।

16 जनवरी 2019 को तेलतुंबड़े ने एक वक्तव्य जारी किया, जिसमें उन्होंने लोगों या यूं कहें कि अपने शुभचिंतकों के सामने शोकाकुल होकर मदद की गुहार लगाई है। ऐसा इसलिए हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले 14 जनवरी को, उस एफआईआर रिपोर्ट को खारिज करने से इंकार कर दिया, जिसे पुणे पुलिस ने तेलतुंबड़े के खिलाफ दाखिल किया था। पुणे पुलिस ने ये एफआईआर 1 जनवरी, 2018 को हुए भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा से जुड़े मामले में उनके खिलाफ किया था। हालांकि, उन्हें बाद में अगले चार हफ्तों तक के लिए गिरफ्तारी से मुक्त कर न सिर्फ सुरक्षा दी गई, बल्कि उन्हें ये अनुमति भी मिली कि वो इन चार हफ्तों में गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत की अर्जी भी डाल सकते हैं।

तेलतुंबड़े का डर, यथार्थ है, क्योंकि उनपर काफी सख्त माने जाने वाला कानून UAPA यानी अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट लगाया गया है, जिसमें ज़मानत की उम्मीद काफी कम होती है। आसान शब्दों में कहें तो- अगर एक पुलिस ऑफिसर सिर्फ ये कह भर देता है कि उसके पास आरोपी के खिलाफ सबूत है तो आरोपी के पास जेल में लंबे समय तक सड़ने के अलावा कोई चारा नहीं होता है। जब तक कि लंबी कोर्ट कार्रवाई के बाद उसे बेगुनाह न साबित कर दिया जाए।

यही वो कारण है जिसकी वजह से तेलतुंबड़े ने वक्तव्य जारी कर अंदेशा जताया है कि उन्हें अब जमानत के लिए एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट भटकना पड़ेगा। वे लिखते हैं, ‘मेरी उम्मीदें अब पूरी तरह से खत्म हो गईं हैं और मेरे पास सिर्फ ये चारा बचा है कि मैं पुणे के सेशंस कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जमानत की अपील करता रहूं। अब समय आ गया है कि मुझे बचाने के लिए जमीन पर एक कैंपेन चलाने की जरूरत है, जिसमें समाज के हर वर्ग के लोग शामिल हों, ताकि मुझपर गिरफ्तारी की जो तलवार लटक रही है, मुझे उससे बचाया जा सके।’ हो सकता है कि इसे पढ़कर आप हैरान हो उठेंगे।

लोगों की प्रतिक्रिया का अंदाजा लगाते हुए तेलतुंबड़े आगे समझाते हुए कहते हैं, ‘अगर मेरी गिरफ्तारी होती है तो, जेल में कैद रहना उसका कठिन पक्ष नहीं है, उसका मतलब है मुझे मेरे लैपटॉप से दूर कर देना, वो लैपटॉप जो मेरे शरीर का हिस्सा बन चुका है, मेरे छात्र जिन्होंने मेरे साथ जुड़कर अपना भविष्य दांव पर लगाया है या फिर मेरी प्रोफेशनल छवि।’

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