FRA वनाश्रितों को पारिस्थितिकी तंत्र का अभिन्न अंग मानता है: शोमोना खन्ना

सुप्रीम कोर्ट जल्द ही फोरेस्ट राइट्स एक्ट (FRA) पर सुनवाई करने जा रहा है। ऐसे में तीस्ता सीतलवाड़ ने वरिष्ठ अधिवक्ता शोमोना खन्ना से विस्तृत बातचीत की और जानने की कोशिश की कि इसके क्या निहितार्थ हैं। साथ ही इस बात पर भी चर्चा हुई कि अदालतें, वकील और सरकारें एफआरए 2006 को किस तरह देखती हैं। सुश्री शोमोना का मुख्य कार्यक्षेत्र मूलनिवासी, आदिवासी और वनाश्रितों के अधिकारों के लिए लड़ना है।  
 
सुश्री शमोना बताती हैं कि एफआरए लोगों के कई दशकों के आंदोलनों, जनजातीय अधिकारों के आंदोलनों, आदिवासी आंदोलनों और कई अन्य आंदोलनों से उभरा है, जो यह भी स्वीकार करता है कि अब अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथा क्या है जो इंडीजीनियस लोगों और जंगल के बीच सहजीवी और एकीकृत है। दुनिया भर में हम इस तथ्य को मान्यता देते हुए आगे बढ़ रहे हैं कि एक बार पर्यावरण का संरक्षण नहीं किया जा सकता है या यह स्वदेशी लोगों के सक्रिय सहयोग के बिना जैव विविधता को संरक्षित कर सकता है। दुर्भाग्यवश भारत में विपरीत दिशा में जाने की प्रवृत्ति है और जंगल और पर्यावरण से संबंधित मौजूदा औपनिवेशिक और पूर्व औपनिवेशिक कानूनों को स्वदेशी समुदायों को वार्ताकार या अतिक्रमणकारी मानने पर केंद्रित है जो पूरी तरह अवैज्ञानिक दृष्टिकोण है।