वरिष्ठ पत्रकार एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ साल 1919 में जलियांवाला बाग में हुए हज़ारों मासूमों के पूर्व-नियोजित नरसंहार के बारे में बताती हैं, और साथ ही समझाती हैं कि इस घटना के बाद से आज तक, आज़ाद भारत में, लोकतांत्रिक व्यवस्था के बीच पुलिस और न्यायपालिका की भूमिका किस तरह सामने आई है.