रोहित वेमुला ज़िंदा होते तो मुट्ठी तानकर सरकार से पूछते- बताओ नजीब कहाँ है?
यह बात, हर पीड़ित के हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाली बात ने रोहित वेमुला को "21वीं सदी के भारत का यूथ आइकॉन" बना दिया है।
सबके लिए दिल में दर्द होने की वजह से उसे तमाम समाजों की स्वीकृति मिली। उनके जाने का दुख सबको हुआ। राष्ट्रीय शोक का वातावरण बना।
वरना लाखों दलित हैं, जो दलितों के हक़ की बात करते हैं , लेकिन सिर्फ अपने लिए आवाज़ उठाकर कोई रोहित वेमुला जैसा प्रतीक नहीं बन सकता।
वह रोहित वेमुला जी का लहू था। धरती पर गिरा। पर बहने की जगह वहीं का वहीं जम गया।
पूरे देश को जगा गया रोहित।
वह मौत जो पहाड़ से भारी साबित हुई। ब्राह्मणवाद का नामोनिशां मिटने तक रोहित का भूत उसे परेशान करता रहेगा। यूनिवर्सिटी, कॉलेज और स्कूलों के द्रोणाचार्यों की क़ब्र खुदने तक रोहित ज़िंदा रहेगा।