दिलीप मंडल
गाय का चमड़ा छीलने का जातीय पेशागत काम करने वाले ये चारों युवक दलित हैं। पीटने वाले सवर्ण गुंडे हैं। तस्वीर गुजरात की है। हरियाणा के दुलीना में इसी अपराध में पांच दलितों की पीटकर हत्या कर दी गई थी। सरकार बनने के बाद से RSS ने जब गाय की राजनीति शुरू की तभी मैंने लिखा था कि इसकी मार मुसलमानों पर कम और दलितों पर ज्यादा पड़ेगी। आप घटनाओं को गिनकर देखिए। गाय की राजनीति में जितने मुसलमान अब तक मरे हैं, उससे तीन से चार गुना दलित मरे हैं। दलितों का गाय से संबंध मरी गाय को ठिकाने लगाने, चमड़ा उतारने, चमड़ा पकाने, रंगने से लेकर जूते तक का रहा है। भारत में मरी हुई गाय दलितों का जिम्मा है। मरा जानवर खाना उनका शौक नहीं, सदियों से चली आ रही मजबूरी है। गाय का चमड़ा उतारना शास्त्र सम्मत पेशा बताया गया। कहने को गाय जिनकी माता है, वे भी मरने के बाद अपनी मां का अंतिम संस्कार नहीं करते। अपनी मां को सड़ने के लिए फेंक देते हैं कि कोई दलित उसे ढोकर ले जाए।