राम पुनियानी
क्या एक ही देश में दो तरह के इंसाफ की व्यवस्था चलेगी? कुछ समय पहले एक ऐसी आतंकवादी घटना में एनआइए के पलटी मारने के बाद यह सवाल उठा, जिसमें कई हिंदू नाम शामिल थे। एनआइए ने अपनी ताजा चार्जशीट में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ आरोपों को हटा लिया और कर्नल पुरोहित और अन्य के खिलाफ मामलों को हलका बना दिया। इसके अलावा, एनआइए की नई लाइन यह है कि इस मामले में हेमंत करकरे की जांच में खामियां थीं और तब एटीएस ने पुरोहित को फंसाने के लिए उसके घर में आरडीएक्स छिपा कर रख दिया था। इसका मतलब यह हुआ कि यह सब पूर्व यूपीए सरकार के निर्देशों के तहत हुआ।
गौरतलब है कि खासतौर पर महाराष्ट्र और देश के कुछ दूसरे इलाके आतंकी गतिविधियों के शिकार बने। नांदेड़ में अप्रैल 2006 की एक घटना में एक आरएसएस कार्यकर्ता के घर पर बम बनाने के दौरान विस्फोट हो गया, जिसमें बजरंग दल के दो कार्यकर्ता मारे गए। उस घर में नकली मुसलिम दाढ़ी, मूंछें, पाजामा कुर्ता-पाजामा वगैरह बरामद किए गए थे। इसके बाद महाराष्ट्र में कई जगहों पर विस्फोट हुए थे। ज्यादातर घटनाओं के बाद पुलिसिया जांच में आमतौर पर मुसलमानों को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा। हर विस्फोट की घटना के बाद मुसलमान युवकों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया जाता रहा और कोई सबूत नहीं मिलने के बाद आखिर कई-कई साल बाद उन्हें रिहा किया गया।
2008 में मालेगांव में हुए जिस विस्फोट में नमाज पढ़ने वाले कई लोग मारे गए और कई घायल हुए, उसमें साध्वी की भूमिका सामने आई थी। इस घटना के बाद भी मुसलमान युवकों को गिरफ्तार किया गया था। इसी मामले में महाराष्ट्र एटीएस के मुखिया हेमंत करकरे ने जांच के दौरान पाया कि इसमें जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया, वह पूर्व एबीवीपी कार्यकर्ता साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम से है। इस मामले में दक्षिणपंथी हिंदू संगठन के हाथ होने के कई सबूत सामने आए। उन्हीं में से एक था स्वामी असीमानंद का कबूलनामा, जिसे कानूनी तौर पर सही ठहाराया गया था। यह स्वीकारोक्ति मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में और न्यायिक हिरासत में हुई थी। असीमानंद ने विस्तार से इस बारे में बताया था जो एनआइए के आरोप पत्र का हिस्सा बना।
जब करकरे ने जांच शुरू की थी तो कई हिंदू नाम सतह पर आने लगे थे। तब 'सामना' अखबार में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने लिखा था- 'हम करकरे के चेहरे पर थूकते हैं!' गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 'देशद्रोही' कहा था। करकरे तब रिटायर्ड अफसर जूलियो रिबेरो से मिलने गए थे, जिन्होंने उनकी तारीफ की, ईमानदारी से अपना काम करने और किसी भी तरह के उकसावे की अनदेखी करने की सलाह दी।
इस बीच मुंबई में 26 नवंबर के हमले के दौरान करकरे मारे गए। उनकी मौत को लेकर आज भी बहुत ज्यादा विवाद है। अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन मंत्री एआर अंतुले ने कहा था कि करकरे की मौत के पीछे आतंकवादियों के अलावा भी कुछ और बात है। जिस नरेंद्र मोदी ने करकरे को 'देशद्रोही' कहा था, उन्होंने मुंबई हमले में उनके मारे जाने के बाद करकरे की पत्नी को एक करोड़ रुपए का चेक देना चाहा। लेकिन करकरे की पत्नी ने यह रकम को लेने से इनकार कर दिया।
करकरे की मौत के बाद भी जांच की दिशा वही रही थी, जिसे करकरे ने शुरू किया था। चार्जशीट तैयार था और सभी आरोपियों पर आतंकी होने का मुकदमा चलता। लेकिन अचानक सरकार का रुख बदल गया और एनआइए ने नई लाइन पकड़ ली, जिसके बाद आनन-फानन में साध्वी प्रज्ञा को आरोपमुक्त और रिहा कर दिया गया। इस बदले रुख को पब्लिक प्रॉसिक्यूटर रोहिणी साल्यान के सार्वजनिक बयानों में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा था उन्हें सलाह दी गई थी कि इन मामलों में वे नरमी बरतें। जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उन्हें अपने पद से हटा दिया गया।
अब कोई 1992-93 में मुंबई में हुई हिंसा को भी याद कर सकता है, जब हजारों लोग मारे गए थे। यह कत्लेआम उन बम विस्फोटों का नतीजा था, जिसमें दो सौ से ज्यादा लोग मार डाले गए। बम विस्फोट की घटना में कइयों को उम्रकैद की सख्त सजा मिली। उन्हीं में से एक कैदी रुबीना मेमन है, जो उम्र कैद की सजा काट रही है। उसका अपराध क्या था? वह उस कार की मालकिन थी, जिससे विस्फोटकों को कहीं ले जाया गया था।। लेकिन रूबीना ने कभी भी विस्फोटकों के साथ कार नहीं चलाई थी।
मालेगांव विस्फोट में जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया, वह साध्वी की थी, जो अब जल्दी ही कैद से आजाद हो जाएगी। वह कार रूबीना की थी, वह जिंदगी भर कैद में रहेगी। मुंबई कत्लेआम में बहुत सारे लोग मारे गए। किसी को कोई सजा नहीं मिली। बम विस्फोट मामले में बहुत सारे लोगों को सजा हुई।
तो..! इन तमाम मामलों में हमारा लोकतंत्र कहां खड़ा है? ऐसा लगता है कि दो तरह की न्याय-प्रणाली खुले तौर पर चल रही है! जिस वक्त उकता देने वाली टीवी बहसों में साध्वी का बचाव और गलत जांच के लिए करकरे को कठघरे में खड़ा किया जा रहा था, उस वक्त मालेगांव में लोग एनआइए के आरोप-पत्र में बदलाव के खिलाफ अदालत में जाने की तैयारी कर रहे थे।
कोई उम्मीद कर सकता है कि दोषी को सजा मिलेगी और मासूम लोगों को बचा लिया जाएगा। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए शायद यह उम्मीद बहुत ज्यादा है!
क्या एक ही देश में दो तरह के इंसाफ की व्यवस्था चलेगी? कुछ समय पहले एक ऐसी आतंकवादी घटना में एनआइए के पलटी मारने के बाद यह सवाल उठा, जिसमें कई हिंदू नाम शामिल थे। एनआइए ने अपनी ताजा चार्जशीट में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ आरोपों को हटा लिया और कर्नल पुरोहित और अन्य के खिलाफ मामलों को हलका बना दिया। इसके अलावा, एनआइए की नई लाइन यह है कि इस मामले में हेमंत करकरे की जांच में खामियां थीं और तब एटीएस ने पुरोहित को फंसाने के लिए उसके घर में आरडीएक्स छिपा कर रख दिया था। इसका मतलब यह हुआ कि यह सब पूर्व यूपीए सरकार के निर्देशों के तहत हुआ।
गौरतलब है कि खासतौर पर महाराष्ट्र और देश के कुछ दूसरे इलाके आतंकी गतिविधियों के शिकार बने। नांदेड़ में अप्रैल 2006 की एक घटना में एक आरएसएस कार्यकर्ता के घर पर बम बनाने के दौरान विस्फोट हो गया, जिसमें बजरंग दल के दो कार्यकर्ता मारे गए। उस घर में नकली मुसलिम दाढ़ी, मूंछें, पाजामा कुर्ता-पाजामा वगैरह बरामद किए गए थे। इसके बाद महाराष्ट्र में कई जगहों पर विस्फोट हुए थे। ज्यादातर घटनाओं के बाद पुलिसिया जांच में आमतौर पर मुसलमानों को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा। हर विस्फोट की घटना के बाद मुसलमान युवकों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया जाता रहा और कोई सबूत नहीं मिलने के बाद आखिर कई-कई साल बाद उन्हें रिहा किया गया।
2008 में मालेगांव में हुए जिस विस्फोट में नमाज पढ़ने वाले कई लोग मारे गए और कई घायल हुए, उसमें साध्वी की भूमिका सामने आई थी। इस घटना के बाद भी मुसलमान युवकों को गिरफ्तार किया गया था। इसी मामले में महाराष्ट्र एटीएस के मुखिया हेमंत करकरे ने जांच के दौरान पाया कि इसमें जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया, वह पूर्व एबीवीपी कार्यकर्ता साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम से है। इस मामले में दक्षिणपंथी हिंदू संगठन के हाथ होने के कई सबूत सामने आए। उन्हीं में से एक था स्वामी असीमानंद का कबूलनामा, जिसे कानूनी तौर पर सही ठहाराया गया था। यह स्वीकारोक्ति मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में और न्यायिक हिरासत में हुई थी। असीमानंद ने विस्तार से इस बारे में बताया था जो एनआइए के आरोप पत्र का हिस्सा बना।
जब करकरे ने जांच शुरू की थी तो कई हिंदू नाम सतह पर आने लगे थे। तब 'सामना' अखबार में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने लिखा था- 'हम करकरे के चेहरे पर थूकते हैं!' गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 'देशद्रोही' कहा था। करकरे तब रिटायर्ड अफसर जूलियो रिबेरो से मिलने गए थे, जिन्होंने उनकी तारीफ की, ईमानदारी से अपना काम करने और किसी भी तरह के उकसावे की अनदेखी करने की सलाह दी।
इस बीच मुंबई में 26 नवंबर के हमले के दौरान करकरे मारे गए। उनकी मौत को लेकर आज भी बहुत ज्यादा विवाद है। अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन मंत्री एआर अंतुले ने कहा था कि करकरे की मौत के पीछे आतंकवादियों के अलावा भी कुछ और बात है। जिस नरेंद्र मोदी ने करकरे को 'देशद्रोही' कहा था, उन्होंने मुंबई हमले में उनके मारे जाने के बाद करकरे की पत्नी को एक करोड़ रुपए का चेक देना चाहा। लेकिन करकरे की पत्नी ने यह रकम को लेने से इनकार कर दिया।
करकरे की मौत के बाद भी जांच की दिशा वही रही थी, जिसे करकरे ने शुरू किया था। चार्जशीट तैयार था और सभी आरोपियों पर आतंकी होने का मुकदमा चलता। लेकिन अचानक सरकार का रुख बदल गया और एनआइए ने नई लाइन पकड़ ली, जिसके बाद आनन-फानन में साध्वी प्रज्ञा को आरोपमुक्त और रिहा कर दिया गया। इस बदले रुख को पब्लिक प्रॉसिक्यूटर रोहिणी साल्यान के सार्वजनिक बयानों में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा था उन्हें सलाह दी गई थी कि इन मामलों में वे नरमी बरतें। जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उन्हें अपने पद से हटा दिया गया।
अब कोई 1992-93 में मुंबई में हुई हिंसा को भी याद कर सकता है, जब हजारों लोग मारे गए थे। यह कत्लेआम उन बम विस्फोटों का नतीजा था, जिसमें दो सौ से ज्यादा लोग मार डाले गए। बम विस्फोट की घटना में कइयों को उम्रकैद की सख्त सजा मिली। उन्हीं में से एक कैदी रुबीना मेमन है, जो उम्र कैद की सजा काट रही है। उसका अपराध क्या था? वह उस कार की मालकिन थी, जिससे विस्फोटकों को कहीं ले जाया गया था।। लेकिन रूबीना ने कभी भी विस्फोटकों के साथ कार नहीं चलाई थी।
मालेगांव विस्फोट में जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया, वह साध्वी की थी, जो अब जल्दी ही कैद से आजाद हो जाएगी। वह कार रूबीना की थी, वह जिंदगी भर कैद में रहेगी। मुंबई कत्लेआम में बहुत सारे लोग मारे गए। किसी को कोई सजा नहीं मिली। बम विस्फोट मामले में बहुत सारे लोगों को सजा हुई।
तो..! इन तमाम मामलों में हमारा लोकतंत्र कहां खड़ा है? ऐसा लगता है कि दो तरह की न्याय-प्रणाली खुले तौर पर चल रही है! जिस वक्त उकता देने वाली टीवी बहसों में साध्वी का बचाव और गलत जांच के लिए करकरे को कठघरे में खड़ा किया जा रहा था, उस वक्त मालेगांव में लोग एनआइए के आरोप-पत्र में बदलाव के खिलाफ अदालत में जाने की तैयारी कर रहे थे।
कोई उम्मीद कर सकता है कि दोषी को सजा मिलेगी और मासूम लोगों को बचा लिया जाएगा। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए शायद यह उम्मीद बहुत ज्यादा है!