'मैंने जेल के भीतर अपनी ज़िंदगी के 8,150 दिन बिताए हैं। मेरे लिए ज़िंदगी ख़त्म हो चुकी है। आप जो देख रहे हैं वो एक ज़िंदा लाश है।' एक आदमी जो ख़ुद को ज़िंदा लाश की तरह दिखाना चाहता है, हम उसकी लाश को देखकर सामान्य होने लगे हैं। हमें न तो मर चुके को देखकर फर्क पड़ता है न ही मरे जैसे को देखकर।
Published: May 31, 2016 09:30 PM IST | Duration: 22:36
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