यूजीसी के लर्निंग आउटकम्स मसौदे को केरल की चुनौती, शिक्षा में भगवाकरण का विरोध

Written by sabrang india | Published on: August 28, 2025
केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने यूजीसी मसौदे की आलोचना करते हुए इसे ‘प्रतिगामी और अवैज्ञानिक’ बताया। उन्होंने विशेष रूप से राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम में वीडी सावरकर की रचनाएं शामिल करने के प्रस्ताव का विरोध किया।


साभार : द इंडियन एक्सप्रेस 

केरल सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा प्रस्तावित लर्निंग आउटकम्स आधारित करिकुलम फ्रेमवर्क के मसौदे का औपचारिक रूप से विरोध करने का निर्णय लिया है। राज्य सरकार का आरोप है कि यह मसौदा छात्रों पर हिंदुत्व की विचारधारा थोपने का प्रयास लगता है।

द हिंदू के अनुसार, केरल राज्य उच्च शिक्षा परिषद की प्रारंभिक समीक्षा में यूजीसी के लर्निंग आउटकम्स आधारित करिकुलम फ्रेमवर्क को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की गई हैं।

परिषद के उपाध्यक्ष राजन गुरुक्कल ने अखबार को जानकारी दी कि मसौदे की समग्र समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ पैनल गठित किया जाएगा, जो इस पर विस्तृत प्रतिक्रिया तैयार करेगा।

उन्होंने मसौदे में मानव विज्ञान, वाणिज्य, राजनीति विज्ञान और शारीरिक शिक्षा जैसे विषयों के पाठ्यक्रमों की ओर ध्यान दिलाया, जो उनके अनुसार संघ परिवार की वैचारिक प्राथमिकताओं के अनुरूप प्रतीत होते हैं।

केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने यूजीसी मसौदे की आलोचना करते हुए इसे ‘प्रतिगामी और अवैज्ञानिक’ बताया। उन्होंने विशेष रूप से राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम में वीडी सावरकर की रचनाएं शामिल करने के प्रस्ताव का विरोध किया।

उन्होंने कॉरपोरेट प्रशासन और सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणाओं को ‘रामराज्य’ की दृष्टिकोण से देखने के सुझाव की आलोचना की। अख़बार के अनुसार, उनका तर्क था कि ऐसी सिफारिशें भारत के धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी मूल्यों को कमजोर करती हैं।

आलोचकों ने इस मसौदा ढांचे में न केवल वैचारिक, बल्कि शैक्षणिक और संरचनात्मक स्तर पर भी कई खामियों की ओर ध्यान दिलाया है। उनका कहना है कि प्रस्तावित पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव है और विषयवस्तु को गहराई से प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसके परिणामस्वरूप छात्रों पर अनुभवजन्य अध्ययन की बजाय वैचारिक बोझ बढ़ने का जोखिम है।

उदाहरण स्वरूप, मसौदे में धार्मिक ग्रंथों और राष्ट्रवादी विचारकों से ली गई अवधारणाओं को रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र और लोक नीति जैसे विषयों में शामिल किया गया है। इससे यह चिंता बढ़ गई है कि प्रस्तावित ढांचा साक्ष्य-आधारित शिक्षा को कमजोर करता है और आलोचनात्मक सोच तथा विश्लेषण की गुंजाइश को सीमित करता है।

साथ ही, मसौदे में 'भारतीय ज्ञान प्रणालियों' (Indian Knowledge Systems) पर अत्यधिक निर्भरता को भी आलोचना का विषय बनाया गया है। आलोचकों का तर्क है कि यह रुझान वैश्विक शैक्षणिक दृष्टिकोणों की उपेक्षा करता है और इससे उच्च शिक्षा तथा अनुसंधान में छात्रों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता प्रभावित हो सकती है।

यह उल्लेखनीय है कि जहां केंद्र सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) इस मसौदे को बहु-विषयक और समग्र शिक्षा को बढ़ावा देने वाला बताकर प्रस्तुत कर रहे हैं, वहीं केरल सरकार का आरोप है कि यह ढांचा एक विशेष वैचारिक दृष्टिकोण से प्रेरित है। राज्य सरकार ने उच्च शिक्षा के 'भगवाकरण' को लेकर गंभीर चिंता जताई है।

केरल का यह रुख सीधे तौर पर केंद्र सरकार के साथ टकराव की स्थिति पैदा करता है, जिससे शिक्षा नीति के नियंत्रण को लेकर संघीय तनाव और गहरा रहा है।

उम्मीद जताई जा रही है कि केरल सरकार जल्द ही यूजीसी को अपनी आपत्तियों से औपचारिक तौर पर अवगत कराएगी। इस कदम के विरोध जताने वाले अन्य राज्यों पर भी प्रभाव पड़ने की संभावना है।

गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में, 21 जनवरी को, केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से यूजीसी के मसौदा नियमों को वापस लेने का आग्रह किया था।

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस नए यूजीसी मसौदे को संघीय सिद्धांतों के खिलाफ बताया था। मसौदे के विवादित नियम में राज्यपालों को राज्यों में कुलपतियों की नियुक्ति का व्यापक अधिकार दिया गया है। इसके तहत अब इस पद पर न केवल शिक्षाविदों, बल्कि उद्योग विशेषज्ञों और सार्वजनिक क्षेत्र के लोगों को भी नियुक्त किया जा सकता है। इससे पहले, इस पद पर केवल शिक्षाविदों की नियुक्ति होती थी।

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