सलवा जुडूम पर फैसले को लेकर अमित शाह के बयान की सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने निंदा की

Written by sabrang india | Published on: August 25, 2025
सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के प्रमुख पूर्व न्यायाधीशों के एक समूह सहित वरिष्ठ वकीलों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान की कड़ी निंदा करते हुए संयुक्त बयान जारी किया है। उनका कहना है कि शाह ने 2011 में सलवा जुडूम मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की “गलत व्याख्या” की है। यह निर्णय न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी द्वारा लिखा गया था, जो उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए इंडिया ब्लॉक पार्टियों द्वारा समर्थित उम्मीदवार हैं।



सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कुछ पूर्व न्यायाधीशों तथा वरिष्ठ वकीलों के एक समूह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की आलोचना करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि शाह ने सलवा जुडूम मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2011 में दिए गए फैसले की "गलत व्याख्या" की है। यह फैसला न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी ने लिखा था, जो उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए INDIA गठबंधन के उम्मीदवार हैं।

बयान में हस्ताक्षरकर्ताओं ने अमित शाह की सार्वजनिक टिप्पणियों को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया है और इस पर जोर दिया है कि सलवा जुडूम पर दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला न तो प्रत्यक्ष और न ही परोक्ष रूप से नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन करता है।

बयान में कहा गया है, “सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा की गई पक्षपातपूर्ण और भ्रामक व्याख्या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों में भय पैदा कर सकती है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकती है।”

पूर्व न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि उपराष्ट्रपति पद जैसे संवैधानिक पदों के लिए होने वाले राजनीतिक अभियानों में वैचारिक बहसें हो सकती हैं, लेकिन उन्हें “सभ्यता और गरिमा” के दायरे में रहकर किया जाना चाहिए। बयान में व्यक्तिगत कटाक्ष से बचने की सलाह दी गई और उम्मीदवारों की “कथित विचारधारा” पर हमले करने के प्रति सावधानी बरतने को कहा गया।

हस्ताक्षरकर्ताओं में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश - न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक, अभय ओका, गोपाला गौड़ा, विक्रमजीत सेन, कुरियन जोसेफ, मदन लोकुर और जे. चेलमेश्वर शामिल हैं। इसके अलावा, विभिन्न उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जैसे गोविंद माथुर, एस. मुरलीधर और संजीब बनर्जी तथा उच्च न्यायालयों के कई अन्य पूर्व न्यायाधीश - जैसे अंजना प्रकाश, सी. प्रवीण कुमार, ए. गोपाल रेड्डी, जी. रघुराम, के. कन्नन, के. चंद्रु, बी. चंद्रकुमार और कैलाश गंभीर - ने भी इस बयान का समर्थन किया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और प्रोफेसर मोहन गोपाल भी इस संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल हैं।

2011 में न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने छत्तीसगढ़ में माओवादियों से लड़ने के लिए आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) के रूप में हथियारबंद करने की प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था। अदालत ने कहा था कि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करती है।

न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी का बतौर जज कामकाज उत्कृष्ट रहा है। उन्होंने जो भी फैसले दिए, वे पूरी तरह संविधान के नियमों के अनुसार थे। नंदिनी सुंदर बनाम भारत सरकार मामले में उन्होंने सलवा जुडूम जैसे राज्य द्वारा बनाए गए हथियारबंद गुट को गैरकानूनी करार दिया था। इस फैसले को देश की न्यायिक इतिहास में मानवाधिकारों के लिए सबसे अहम फैसलों में से एक माना जाता है।

पूरा बयान इस प्रकार है:

"केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा सलवा जुडूम मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की सार्वजनिक रूप से की गई गलत व्याख्या दुर्भाग्यपूर्ण है।

यह फैसला कहीं भी सीधे तौर पर और न ही इसके आशय से यह कहता है कि वह नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन करता है।

हालांकि उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव अभियान में वैचारिक बहसें हो सकती हैं, लेकिन उन्हें शालीनता और सम्मान के साथ ही चलाया जाना चाहिए। किसी भी उम्मीदवार की कथित विचारधारा की आलोचना से बचना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत और पक्षपातपूर्ण व्याख्या किसी बड़े राजनीतिक नेता द्वारा की जाए, तो इससे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों में भय फैल सकता है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमजोर हो सकती है।

भारत के उपराष्ट्रपति पद के सम्मान को बनाए रखने के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करने से बचना ही बेहतर होगा।"

हस्ताक्षरकर्ता:

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश:


1. ए.के. पटनायक

2. अभय ओका

3. गोपाला गौड़ा

4. विक्रमजीत सेन

5. कुरियन जोसेफ

6. मदन बी. लोकुर

7. जे. चेलमेश्वर

उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश:

1. गोविंद माथुर

2. एस. मुरलीधर

3. संजिब बनर्जी

उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश:

1. अंजना प्रकाश

2. सी. प्रवीण कुमार

3. ए. गोपाल रेड्डी

4. जी. रघुराम

5. के. कन्नन

6. के. चंद्रु

7. बी. चंद्रकुमार

8. कैलाश गंभीर

अन्य हस्ताक्षरकर्ता:

1. प्रोफेसर मोहन गोपाल

2. संजय हेगड़े (सीनियर एडवोकेट)

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