Teesta Talks: July 19, 2017
कौन बनेगा राष्ट्रपति, दलित अत्याचार और राष्ट्रपति चुनाव, गोवा में बीफ की कमी नहीं होने देंगे: पर्रिकर
आप सब को नमस्कार, हम आपसे संपर्क रखना चाहते है,समाचार और खबर लेकर,सुर्ख़ियों के पीछे का सच,ख़बरों के आगे या पीछे का इतिहास। क्या आज के समय के पत्रकार और पत्रकारिता अपना लोकतांत्रिक फ़र्ज़ निभा रहे है, कई वर्षों से हम पत्रकारिता से जुड़े हुए है। और शिक्षण, तालीम और सामाजिक कार्य से भी यह अनुभव हम आपके पास लायेंगे, संपर्क रखेंगे,ताकि कोई सोच विचारधारा बने। हमारे देश की सवैधानिक ऊसुल मजबूत हो और नैतिक पत्रकारिता का दौर वापिस आये।
कौन बनेगा भारत का राष्ट्रपति?
राम नाथ गोविंद या मीरा कुमार। ए.पी.जी अब्दुल कलाम देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति थे, उनका गुजरात 2002 का दौरा आज भी याद आता है, गुजरात जनसंहार जब हुआ था तो हमारे देश में देश के पहले दलित राष्ट्रपति थे, के. आर. नारायणन जी, उनका गुजरात आना लगभग तय ही था। मगर आखिर में उस वक़्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें ना जाने को कहा और के. आर. नारायणन मान गये। इस मौके पर यह बात बार बार हो रही है, कि जिस देश में दलित एक राष्ट्रपति बनने जा रहे है चाहे वो कोविंद जी हो या मीरा कुमार जी, इस वक़्त दलित समुदाय और दलित जात के साथ किस तरह के अत्याचार हो रहे है। जिस देश में दलित राष्ट्रपति बनने की बात और चर्चा हो रही हो, और जिस देश में स्वच्छ भारत के नारे भी हर जगह से निकल रहे हो। उसी देश में सेप्टिक टैंक deaths, जहरीली गैस में, सेप्टिक टैंक में हमारे भाई जो मरते है, बेजवाड़ा विल्सन कहते है कि 100 दिनों में 39 लोगों की मौत हुई है चाहे वो दिल्ली में हो, शिवान में हो या दूसरी जगह पर हो, और वो चीज़ को लेकर हमें ज्यादा तकलीफ भारतवासी को नही होती तो वो किस तरह का देश है, ये देश में कानून बना हुआ है, सेप्टिक टैंक को लेकर, Manual Scavenging को लेकर कानून ये कहता है कि Manual Scavenging गैर क़ानूनी है मगर राज्य और केंद्र सरकार ये issue को लेकर, ये मौत को लेकर, कोर्ट के अन्दर, सुप्रीम कोर्ट के अन्दर तक भी झूठे एलान करती रहती है, बेजवाड़ा विल्सन ये भी कहते है बेजवाड़ा विल्सन को magsaysay award मिला था गये साल। वो ये भी कहते है कि ये राजनीतिक क़त्ल है तो क्यों नही हमारे इलाके–इलाके में सेप्टिक टैंक murders के खिलाफ हम सब आवाज़ उठायें।
चलिए वापिस राष्ट्रपति की बात करें। जाकिर हुसैन जी 1962 में राष्ट्रपति बने, जब उस वक़्त के राष्ट्रपति, उस वक़्त के उपराष्ट्रपति S. Radhakrishnan राष्ट्रपति बनाये गये। पंडित जवाहर लाल नेहरु की सरकार का जमाना था, जमाना अलग था सावंधानिक पद की इज्जत भी अलग थी, जाकिर हुसैन अपनी निष्पक्षता पर बड़ा फक्र करते थे, ईमानदारी पर भी, 1920 में मौलाना आजाद के साथ जामिया मिल्या इस्लामिया के Founder भी थे। एक National Basic Education की Policy के Author भी थे। विभाजन और बंटवारे के बाद जाकिर हुसैन जी को Aligarh Muslim im University में vice chancellor बनाया 1959 तक। 1959-1962 तक जब वो बिहार के राज्यपाल थे। मतलब 59 और 62 के बीच में जब वो बिहार के राज्यपाल थे, तो उस वक़्त की सरकार जो कांग्रेस की सरकार थी उन्होंने कोशिश की थी ऐसा कानून लाने के लिए, जिससे Universities की आज़ादी, और सोच और research पर काबू लायी जाये। जाकिर हुसैन ना माने, उन्होंने अपने हाश्ताक्षर sign नही किये, और सावंधानिक वसूल मजबूत बने। सावंधानिक राज्यपाल का पद की गरिमा उन्होंने बचाकर रखी। वो काले कानून पर अपनी सहमति नही की। वो कानून नही बना सका उस वक़्त का सरकार, और आज भी एक पूर्व राज्यपाल और वो भी बिहार के रामनाथ गोविंद, देश के चौदहवें राष्ट्रपति बनने की सम्भावना है। बिहार में उन्होंने अपने पद की गरिमा रखी और अपेक्षा देश रखता है। कि राष्ट्रपति के पद की गरिमा भी वो बनाए रखेंगे, कल ही खबर थी तमिलनाडू से, कि एक दलित गरीब ड्राईवर की बहुत बेहरमी से क़त्ल हुई, गुजरात से ये खबर ये आ रही है, कि उना कांड के एक साल बाद आजादी कूच जो मार्च चला था। उसके लीडर जिग्नेश मेवानी ने कल शाम को बनास कंठा के लवारा गाँव में दलित कुटुम्बों का झंडा लहराया।
जमीन दलितों की 1970 से दी गयी थी सरकार ने, मगर कब्ज़ा थे दरबारों के पास, आज़ादी कूच का ये पूरी पहल जो है जो आज गुजरात में चल रही है। और ये साल गुजरात में हमारे Elections भी होने वाले है December में, वहाँ पर सवाल है जमीन का, तो नारा उन्होंने दिया है, जिग्नेश मेवानी के राष्ट्रीय दलित आन्दोलन ने कि घूंघट से नाता तोड़ो और जमीन से नाता जोड़ो और ये कहकर वो चाहते है कि 150 एकड़ जमीन को जो दलितों को दी गयी थी क़ानूनी स्तर पर, कागज़ी स्तर पर वो वाक्य ही दलितों के हाथ में आ जाये। दूसरे हमारे राष्ट्रपति कौन-कौन रहे है। अलग–अलग चीज़ याद आती है, Emergency के ज़माने में जाकिर हुसैन जैसे एक दूसरे राष्ट्रपति हमारे थे फकरुदीन अहमद। उनका दौर बेइज्जती से याद किया जायेगा, क्योंकि जून 25, 1975 को उन्होंने उस चीज़ पर अपनी सहमति दी, जिससे ये देश में Emergency लागू हो गयी। Emergency लागू होने के बाद बहुत सारे अत्याचार हुए। आज़ादी पर रोक लगाई गयी। और इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री रहते हुए ये राष्ट्रपति ने अपने पद की गरिमा नही रखी। जिस दौर में राष्ट्रपति और वो भी एक दलित राष्ट्रपति की बात हो रही है, उसी वक़्त कल सांसद में, राज्यसभा में बहुजन समाज पार्टी की नेता, दलित नेता कुमारी मायावती ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया, क्यों दिया। क्योंकि उन्होंने दलित अत्याचार की बात जब सांसद में रखने की कोशिश की। तो भारतीय जनता पार्टी के मंत्री सांसद ने उनको बोलने नही दिया, तो जिस वक़्त हम सबसे ऊँचे संवेधानिक पद पर एक दलित होने पर गर्व कर रहे है, उसी वक्त अगर सांसद में दलित असहाय और दलित अत्याचार की बात रखी ना जा सके तो क्या फायदा। उपराष्ट्रपति के पद के लिए भी गाँधी जी के पोते और भारत के राष्ट्रपति S. Radhakrishanan के नवासे गोपाल कृष्ण गाँधी विपक्ष के सामूहिक उम्मीदवार है जैसे उनका नाम जाहिर हुआ तो गंदगी संघ ने ट्विटर और सोशल मीडिया पर करने शुरू कर दिए।
साम्प्रदायिक खेल, साम्प्रदायिक रंग का खेल संघ खेलने लगे। क्या इल्ज़ाम लगाया उन्होंने गोपाल कृष्ण गाँधी पर, इल्ज़ाम ये था कि गोपाल कृष्ण गाँधी ने याकूब मेमन की सज़ा-ए-मौत के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। गोपाल कृष्ण गाँधी का लाजवाब जवाब था जब गाँधी जी के बेटों ने नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे के लिए भी मौत की सजा के खिलाफ बोले थे, तो याकूब मेमेन का मुद्दा याकूब मेमेन का सिर्फ नही है, मगर सजाय मौत और संवेदनशील एक समाज और राजनीति का है, आखिर बात हम कहना चाहेंगे भारतीय जनता पार्टी और बीफ को लेकर दोगुलापन, कल गोआ के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर का लाजवाब एक बयान ये था कि गोआ के अंदर बीफ का shortage वो बर्दाश्त नही करेंगे, बर्दाश्त वो इसलिए नही करेंगे कि क्योंकि गोआ में उनको लगता है कि तीस फ़ीसदी अल्पसंखयक की आबादी है, तो क्या बाकी राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा में वहाँ पर हमारे अल्पसंखयक समुदाय नही रहते क्या, और क्या बीफ सिर्फ अल्पसंखयक खाता है, यही सवाल हम आपके पास छोड़ेंगे।और दोबारा संपर्क रखेंगे शुक्रिया।