इंटरव्यू

तुम्हीं ने दर्द दिए हैं, तुम्हीं दवा देना : मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी

Date: 
September 26, 2016
Courtesy: 
Newsclick

​मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी रिहा कर दिए गए हैं। लेकिन क्राइम ब्रांच की निगाह में वह अब भी अपराधी हैं। मुफ्ती साहब का कहना है कि अब उनके सम्मानजनक पुनर्वास की बारी है। जिस सरकार ने झूठे आरोप में जेल में डाला था उसे ही अब उनके सम्मानजनक पुनर्वास की जिम्मेदारी उठानी होगी।




वह कहते हैं -  दाग आपने ही लगाया, आप ही की जिम्मेदारी है कि आप दाग धो दें।

मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी  ने कम्यूनलिज्म कॉम्बेट की तीस्ता सीतलवाड़ से एक इंटरव्यू में आतंकवाद के झूठे आरोपों में जेल डाले गए लोगों के रिहा होने के बाद सम्मानजनक पुनर्वास की नीति बनाने की जोरदार वकालत की है।

रिहा होने के बाद दिए गए इस इंटरव्यू में मुफ्ती सवाल करते हैं कि जेल में रहने के दौरान उनके वालिद गुजर गए। वह पूछते हैं – क्या अब मैं अपने वालिद से मिल पाऊंगा। मेरे बच्चों का बचपन कौन लौटाएगा। क्या सरकार मेरी इन बेशकीमती चीजों को लौटा सकेगी।  
 
मुफ्ती कहते हैं कि 16 मई 2014 से पहले भी मैं सामाजिक कार्य करता था इस दिन रिहाई के बाद भी मैं अपने मिशन में लगा हूँ । गरीबों और हाशिये पर रह रहे लोगों की सेवा कर रहा हूँ । धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठ कर। इस साल 15 अगस्त को अहमदाबाद में मदरसों के बच्चों ने स्वतंत्रता दिवस मनाया। इन बच्चों ने उस ऐतिहासिक प्रदर्शनी में हिस्सा लिया, जिसमें भारत की आजादी की लड़ाई में मुस्लिमों की भागीदारी दिखाई गई थी।

मुफ्ती कहते हैं-  अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के पुलिस इंस्पेक्टर यादव और जडेजा अब भी मेरे पीछे पड़े हैं,कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से 16 मई 2014 को मेरी रिहाई भले हो गई हो लेकिन मैं अब भी अपराधी हूं।

मेरी रिहाई के दो साल बाद भी जीडीपी पीपी पांडे ने मुझसे मिलने से इनकार कर दिया। जबकि खुद गंभीर अपराधों में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल है। उन्होंने कहा कि हम बकरीद की कुर्बानी के लिए पुलिस की निगरानी में कुर्बानी की इजाजत के लिए आवेदन देने के गए थे। लेकिन उन्होंने मिलने से इन्कार  कर दिया।

आज भी गुजरात में पूर्व डीजी वंजारा का दबदबा है। जब मेरी किताब ‘ग्यारह साल सलाखों के पीछे’ रिलीज होने वाली थी तो पुलिस में काम करने वाले उनके भतीजे ने कार्यक्रम करने की इजाजत नहीं दी। 

TRANSCRIPT

तीस्ता सेतलवाड़:    नमस्कार और सलाम,कम्युनिलिज़्म कॉम्बैट के खास मुलाकात में आज हमारे साथ है "मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी साहब" जिन्होंने ११ साल सलाखों के पीछे ज़ुल्म बरदाश्त करने के बाद किताब निकाली।  “Eleven years behind the bars (11 साल सलाखों के पीछे)  जिस किताब की कॉपी आज तक एक लाख कॉपी के ऊपर बिक चुकी है। आज हम उसी मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी से बात करेंगे कि 16 मे 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब वो बाइज्जत मतलब इज़्जत के साथ वो बरी हो गये। उसके बाद ज़िन्दगी में वापस खड़े होने के लिये उनके साथ क्या-क्या तकलीफें हुई। मुफ़्ती जी सलाम आप वापिस गुजरात में आये,गुजरात में ही थे पर जेल के अंदर थे उसके बाद आप बरी हो चुके थे। आप बस अपने शब्दों में बताये कि आपको किस-किस किस्म की तकलीफें हुई।

मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी:    मुझे छूटने के बाद अपने समाज में, अपने घर में अपनी सोसाइटी के साथ सेट होने में काफी दिक्कत हुई है सबसे पहले तो मैंने बाहर आकर देखा, कि सब कुछ बदल गया,छोटे-छोटे बच्चे छोड़कर  गया था,बच्चे बडे हो गये थे। लोगो के मिजाज बदल गये थे ,मैं जो था बहुत छोटी सी दुनिया में था, लिमिटेड दुनिया थी बाहर आने के बाद बहुत विशाल दुनिया मिली तो सबसे पहले तो अपनी फैमिली के साथ ही मिजाज सेट नहीं हो पा रहा था बच्चों के साथ मिजाज सेट नहीं हो पा रहा था और उस के बाद फैमिली के बाद बाहर की दुनिया में तो मेरा अपना समाज भी कुछ समय तक तो मुझसे डरता रहा। बहुत सारे मौके ऐसे हुए कि कुछ लोग मेरा स्वागत करना चाहते थे बाज दफ़े  लेकिन फिर पुलिस के डर से वो प्रोग्राम कैंसल कर देते थे। कई जिले  के  कई गाँव में मुझे बुलाया दावत दी,लेकिन बाद में फोन करके मना कर दिया, कि भई हमको मना किया गया है ऊपर से, बल्कि आज तक भी सरकार या सरकार की जो एजेंसीस है पुलिस एजेंसीस जिसे खास कर हमारे विस्तार की बात करे तो P.I  यादव नाम है और P.I. आज तक वो लोगो को ये कह रहे है कि ये अपने नसीब के बलबूते पर छुट गया वरना हमारी निगाहों में ये मुजरिम नहीं है और आज तक वो मेरा शैडो  करते है पीछा करते है उसके लिए प्रूफ है मेरे पास, प्रूफ भी है, अभी ताजे दिनों की बात करुँ तो अभी हमारा एक त्यौहार आ रहा है ईद-उल- अज्ह तो उसके लिये हम सरकार की सभी एजेंसीयो में आवेदन पत्र देने जाते है कि गाय और गौ रक्षा से हम बचेंगे लेकिन जो लीगल जो जानवर है। उसमें हमारे ऊपर कोई परेशानी न होनी चाहिये। तो हमारे यहाँ एक DIG अभी जो है P.P.Pande साहब अभी तक उनके ऊपर चार्जेस बाकी है लेकिन वो मुझे मना कर रहे है मिलने से, इसलिए कि मैं अकसर धाम केस में था  हालांकि उनको पता नहीं कि मैं तो बा-इज़्जत बरी हूँ मुझे क्लीन चिट मिल चुकी है। और आरोप या चार्जेस उनके ऊपर बाकी है। 

तीस्ता सेतलवाड़:    आपको क्या लगता है। मुफ़्ती साहब सरकार की क्या पॉलिसी होनी चाहिये। जब सरकार की एजेंसी  खुद इतनी बड़ी बातें जानबूझ करके या गल्ती इतनी बड़ी गल्ती करती है लोगो की जान के साथ खेलती है लोगो की रेपुटेशन के साथ खेलती है तो सत्ता की पॉलिसी क्या होनी चाहिये Rehabilitation के लिए, Compensation के लिए । 

मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी:    वैसे  बात यही है कि इब जानिब-ए आज भी मैं समझता हूँ सरकार या सरकार की जो एजेंसीस है। एडमिनिस्ट्रेशन जो सँभालते है या जो पुलिस तंत्र है उनमें मैं समझता हूँ कि कोई सुधार नहीं आया। यही वजह है कि पुलिस अभी भी लोगो को उठाती है और अलग-अलग केसों में बुक  कर रही है। वो ही लोग फिर कोर्टों से बा-इज़्जत बरी होते जा रहे है। किसी ने 5 साल,10 साल,15 साल,20-20 साल बाद भी लोगो को बा-इज़्जत बरी किया जाता है उसकी रोक के लिए सरकार को कुछ कोशिश करनी चाहिये तो उसके लिये एक तो रिहैबिलिटेशन जिन्होंने अपना loss कर दिया जैसे मैं हूँ या मेरे अलावा  बहुत सारे ऐसे लोग है जो अलग-अलग केसों में कई-कई साल बिता कर आये है और बा-इज़्जत बरी हुए। तो उनके ऊपर से जो दाग लगा है वो दाग सुप्रीम कोर्ट या और जो-जो कोर्ट है हटा दो तो  वो हटाती नहीं है लेकिन सरकार खुद भी पहल करे। वो ज्यादा-ज्यादा अहमियत है उस चीज की। कि सरकार खुद भी पहल करे जो उनके  बाज आबादकारी उनकी क्या-क्या ज़रूरत है,उनकी क्या-क्या तकलीफें है,क्या-क्या उन्होंने यूज़ किया वो सारी चीज़े उनको दे। बल्की पहले से अच्छा दे।  क्योंकि दाग धोने का एक तरीका ये भी है सरकार की अपनी ज़िम्मेदारी है कि आप ही के एजेंसियों ने हम पर दाग लगाये है आप ही की ज़िम्मेदारी है वो दाग धोने की। और फिर नो डाउट  वो रिहा कर देती है फिर आप की भी ज़िम्मेदारी है बल्की कुछ ऐसा कानून या तो आप गिरफ्तारियाँ इस तरह गल्त गिरफ्तारियाँ मत करवाओ। जब तक कि आप के पास कोई ठोस सबूत और वो भी बिल्कुल आज़ादाना तरीके से सही तरीके से जाँच हो। या अगर आपने लिया भी है तो आपकी ज़िम्मेदारी है 11 साल मुझे वापस दे दो आप किसी तरह मेरे फादर का देहांत हो गया मुझे कोई पैसा नहीं चाहिये फादर मुझे वापस ला कर दे दो,मेरा बचपना लाकर दे दो। फिर उस वक़्त के ये दाग आपने लगाया है तो धोने की ज़िम्मेदारी भी आप ही की है। आपकी,पुलिस की ज़िम्मेदारी है आपकी ज़िम्मेदारी कि आप हमको अच्छी तरह से बसाये और हमारी फॅमिली को जो ज़रुरियात हो हम समाज के साथ अच्छी तरह आज की रफ़्तार के साथ चल सके। और जो हमारी requirement  है वो आपको देनी चाहिये।

तीस्ता सेतलवाड़:    16  में 2014 के बारे में श्री अब्दुल कय्यूम की जिंदगी कैसे गुज़र गयी।

मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी:    अल्हम्दुलिल्लाह मैं पहले भी बे-कसूर था कभी मैंने कोई गलत बात करी नहीं थी हाँ, अन्याय और ज़ुल्मों के खिलाफ मैं पहले भी आवाज़ उठाता हूँ और आज भी आवाज़ उठाता हूँ और पहले भी मैं सामाजिक कार्यो में लोगो की सेवाओं में जुड़ा था और पहले से ज्यादा ज़ोरो शोरो से  अब अल्हम्दुलिल्लाह कर रहा हूँ और उसमें  कोई मज़हब की हमने तफ़रीक़ नहीं की, जो भी ज़रूरतमंद है परेशान है जो भूखा है ,वो हमारे पास आयेगा। हिन्दू,मुस्लिम कोई भी नफ़्से इंसानी मानवी होना चाहिये, कोई भी मानवी आता है। हम उसकी सेवा करते है, मेडिकल की लाइन्स में, एजुकेशन लाइन्स में या और जो-जो सोशल वर्क के जो भी फील्ड मैदान है हम उनमें काम कर रहे है। समाज की सेवा करने में हमसे जितना हो सकता है हम कर रहे है।

तीस्ता सेतलवाड़:    अगस्त 15,2016 को आप ने खास प्रोग्राम रखा था इसके बारे में कुछ बात करेंगे,उसके बाद  हम समाप्त करेंगे।

मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी:    इसमें एक आम सोच जो है मदरसे वाले तिरँगा नहीं लहराते है या मदरसे वाले राष्ट्रीय प्रवृत्तियों में भाग नहीं लेते है या उससे बढ़कर जो एक हमला किया जाता है कि मदरसों में आतंकवाद सिखलाया जाता है तो हम लोगो को बदनाम  मैं भी चूँकि एक मदरसे का बच्चा हूँ मदरसे से निकला हूँ तो भी लोगो तक यह पैगाम पहुँचाना चाहता हूँ कि अल्हम्दुलिल्लाह हम पहले से राष्ट्रीय प्रेमी है राष्ट्रीय भक्त्त है देशभक्ति हमारे नसों में हमारे डी.एन.ए में हमें आर.एस.एस से या किसी से सीखने की जरूरत नहीं है। जो लोग आज तक अपने हेड क्वॉर्टर में तिरँगा लहेरा नहीं सकते वो हमें तिरँगा लहराने की हमको एडवाइस देते है हम उनकी एडवाइस से नहीं हम अपनी देश भावना से यह लोगो तक एक पैगाम पहुँचाना चाहता हूँ कि भई देश हमारा है पहले भी वफादार था,आप भी है और इंशा अल्लाह आइन्दा  भी  हम वफादार रहेंगे। हम लोगो ने 15 अगस्त में एक प्रोग्राम किया था कि जो छोटे-छोटे बच्चे होते है मदरसों में उन सब के हाथ में आज़ादी के जो हमारे हीरोस है उनके प्लेकार्ड है उसमें बहुत सारे मुसलमानों का योगदान है 1857 में बहादुरशाह जफ्फर हो या उसके बाद और उससे पहले शाह सुर मोज़िज़ रहमतुल्ला अल्य टीपू सुलतान है और टीपू सुलतान के बाद भी और पहले भी बहुत सारे आखिर तक 1919 उसके बाद भी आज़ादी होने तक लाखों मुसलमानो ने इसमें योगदान दिया। और लाखों मुसलमान शहीद भी हुए,जेलो में भी गये, लेकिन  कुछ मुस्लिम फ्रीडम फाइटर और भी दूसरे लोगो के भी ताकि हमारे समाज को भी कॉन्फिडेंस मिले कि हम पहले भी बलिदान दिया और आईन्दा भी हम बलिदान के लिये इंशा अल्लाह तैयार है। लोगो को पता चले और हमारी हिस्ट्री भुलाने की जो साज़िश हो रही है कि मुसलमानो का कोई योगदान नहीं था और हमको जवाब देना चाहते है कि पहले भी योगदान था आज भी है इंशा अल्लाह आईन्दा भी रहेगा। तो हमने एक तो तिरँगा लहराने का प्रोग्राम किया था सुबह में उस के बाद एक रैली की  शक्ल में हज़ारों बच्चे उसमें शरीक हुए थे और एक बहुत पॉजिटिव और  बहुत अच्छा  पैगाम लोगो तक पहुँचा था।

तीस्ता सेतलवाड़:    ये किताब जब आपकी रिलीज़ हुई तो उस वक़्त रिलीज़ के वक़्त क्या तकलीफें सहन करनी पड़ी और उसके बाद शायद आपके ऊपर डीफामेशन केस भी लगा तो किस तरह की तकलीफें आपने सहन की।

मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी:    असल में ये एक किताब लिखी तब पुलिस तबके को तो पता था ही कि उनकी तारीफ तो लिखी नहीं होंगी मैंने क्योंकि सच बोलना।

तीस्ता सेतलवाड़:    आपने किस तरह की किताब लिखी।

मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी:    असल में अंदर ही मैंने एक मन बना लिया था मुझे ईश्वर अल्लाह में पूरा विश्वास था कि मैं बे-कसूर हूँ और इंशा अल्लाह इंसाफ मिलना ही है और न्याय तन्त्र में भी मुझे विश्वास था शायद निचली कोर्ट से नहीं मिला, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में कही न कही आज भी इंसाफ है। यहाँ पर भारत के अंदर इंसाफ है इंसानियत है। तो मुझे ये उम्मीद थी कि इंसाफ मिलेगा ही और उधर पुलिस खतिरदारिया रवैया था क्राइम ब्रांच के अंदर मेरे साथ, उनको ये था कि ये ज़िंदा बचकर जाना नहीं, और ओवर कॉन्फिडेंस में बहुत सारा बकवास मेरे सामने भी करते थे अल्हम्दुलिल्लाह यादाश्त जो मेरी थी मेमोरी  अच्छी थी मैं एक-एक चीज़ नोट कर लेता था किस दिन मुझे किसने क्या कहा,किसने कितना ज़ुल्म किया और अंदर से ही मन बनाया था मैंने एक चीज़ देखी थी कुछ लोग जो केसेस में से छूटते है। हालांकि वो benefit of doubt  पर छूटते है जैसे संसद भवन वाले वाक्य में एक प्रोफेसर छूटे थे हालांकि उन्हें benefit of doubt  पर लेकिन उसने छूटने के बाद बहुत सारी सच्चाईयां कही और मैं तो बिल्कुल बे-कसूर था सुप्रीम कोर्ट ने मेरे पुरे दाग धो दिये। गुजरात पुलिस ने मुझे गुनहगार कहा था ये एजेंसी को कहा था। इसीलिए मैंने हिम्मत जुटा पाई और ये अल्लाह का ही फर्ज था तो छूटने के बाद बहुत सारी परेशानियाँ आई ये हमारे ऊपर रुकावट डालने की बहुत सारी कोशिशें हुई। इसकी एक वजह यह थी कि हमारे जो divison में जो ACP  है D.G बंजारा साहब की भतीजी है और वो और जो P.I जडेजा और यादव  ने बहुत सारी उन्होंने शरारतें की बहुत सारी अफवाहें फैलाने की कोशिश की ये आतंकवाद फैलायेगा और हमला करवा देगा इस तरह का इसीलिए हमलोग एक प्रोग्राम रखने जा रहे थे उसके लिये भी हमको मना किया गया ये किताब launch नहीं होनी चाहिये हम लोगो ने कहा ठीक है हम चाहते थे सुलह शांति और माहौल थोड़ा प्यार मुहब्बत का माहौल बना रहे गुजरात में किताब हमने उस वक़्त launch नहीं की लेकिन बाद में दिल्ली में जाकर launch की थी हम लोगो ने इस्लामिक cultural center के अंदर उस पर पाबंदी लाने की उन्होंने कोशिश की लेकिन जो कुछ लिखा है सच लिखा है और सारे लोगो को इस का ऐतराफ़ है आज तक किसी ने ये नहीं कहा कि तुमने किताब में गल्त लिखा है तो D.G बंजारा साहब ने भी मेरे खिलाफ जो मान हानि का दावा किया है। सुप्रीम कोर्ट में वहाँ पर भी कही न कही ऐसा लग रहा है कि उसके अंदर भी वो सच्चाई को लोग कबूल किये जा रहे है ये अभी सुप्रीम कोर्ट से हमने जो withdraw की हमने  compensation की अर्ज़ी दी थी तो उसमें भी कही न कही ये हमको मना भी नहीं कर रहे है कि आप इसके मुस्तहिक़ नहीं है लेकिन देने में इनको डर लग रहा है बहुत सारे ऐसे बे-कसूर लोग है वो पिटारा पूरा खुल जायेगा।