इंटरव्यू

शोषितों की एकता,वक्त की जरूरत – राहुल सोनपिंपले, बापसा

Date: 
September 22, 2016
Courtesy: 
Newsclick
वामपंथ के पारंपरिक स्वरूप को चुनौती देने वाले राहुल सोनपिंपले ने कहा है, कि देश के शोषित समाज के लिए रेडिकल राजनीति का वक्त आ गया है। सोनपिंपले ने शोषित समाज के इस उभार के बारे में कम्युनिलिस्म  कॉम्बैट और न्यूजक्लिक से बातचीत के दौरान यह राय जाहिर की। सोनपिंपले जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के चुनाव में नवगठित बिरसा  अम्बेडकर फुले स्टूडेंट्स यूनियन यानी बापसा ( बीएपीएसए) की ओर अध्यक्ष पद के उम्मीदवार थे।



तीस्ता सीतलवाड़ ने बापसा  के विचारों और नव उदारवाद के इस दौर में जमीन और सार्वजनिक संसाधन के नए सिरे से बंटवारे पर अम्बेडकरवादी  राजनीति पर उनके रुख के बारे में जानने के लिए उनसे बात की। यह इंटरव्यू कम्यूनिलिज्म कॉम्बैट  और न्यूजक्लिक की साँझा  पेशकश है।

राहुल सोनपिंपले ने कहा कि बापसा ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद से लड़ने के खिलाफ लड़ाई में सामाजिक और आर्थिक तौर पर दबाए गए छात्र-छात्राओं को एकजुट करने के लिए प्रतिबद्ध है। सोनपिंपले के मुताबिक भारत में ब्राह्मणवाद के वर्चस्व की वजह से सदियों से क्रूर दमन का सिलसिला चला आया है। ब्राह्मणवाद की वजह से जाति व्यवस्था को खुद में समाए हुए स्थानीय पूंजीवाद ने शक्ल ली है। पूंजीवाद के साथ इसके संपर्क ने एक ऐसी स्थिति पैदा कि जिससे हाशिये के समुदाय अंतहीन शोषण के शिकार बने रहे। देश में सार्वजनिक उद्योगों का जिस तेजी से निजीकरण हुआ उसने इन समुदायों के लिए उठाए जा रहे अफरमेटिव एक्शन के कदमों को प्रभावित किया। इसलिए ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद दोनों से पूरी ताकत से लड़ना जरूरी है। सोनपिंपले ने आरएसएस और बीजेपी की ओर से अंबेडकर को अपनाने की कोशिश के बारे में भी बात की। साथ ही अम्बेडकर  की विचारधारा को दक्षिणपंथी एजेंडे से खतरे पर भी रोश्नी  डाली।

 बापसा के पास उना संघर्ष के बाद उभरे दलित-मुस्लिम एकता की योजना को और आगे ले जाने की ठोस योजना है।