इंटरव्यू
"जो व्यक्ति बौद्ध धम्म की शिक्षा के विपरीत कर्म करे वह बौद्ध हो ही नहीं सकता" - प्रोफ़ेसर गेशे न्गवांग सम्तेन
Date:
March 10, 2018
भारत में लगभग साठ वर्षों से 1,20,000 तिब्बती आकर बसे हुए हैं. चौदहवें दलाई लामा की अगुआई में आये तिब्बतियों को आठ वर्ष हुए थे जब तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने तिब्बती अध्यन का एक केन्द्रीय विश्विद्यालय स्थापित किया था. जिसे यूजीसी अधिनियम 1956 की धारा 3 के तहत डीम्ड विश्वविद्यालय का स्थान मिला, और बाद में उसे उच्च तिब्बती अध्ययन के केन्द्रीय संस्थान (सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हायर तिबेटन स्टडीज़, सीआईएचटीएस) का नाम दिया गया.
सीआईएचटीएस के वर्तमान उप कुलपति प्रोफ़ेसर गेशे न्गवांग सम्तेन जी बौद्ध और तिब्बती अध्ययनों के एक प्रसिद्ध विद्वान हैं. प्रोफ़ेसर सम्तेन जी तिब्बती राष्ट्र की मान्यता के संघर्ष पर चर्चा करते हुए सारनाथ में तीस्ता सेतलवाड़ के साथ बातचीत कर रहे थे. उनके अनुसार, बौद्ध धम्म में हर जीव में आज़ाद होने की क्षमता होती है. उनका मानना है कि स्वाभिमान और मानवाधिकार ही तिब्बती संघर्ष का आधार है. परमपावन दलाई लामा जी के नेतृत्व में तिब्बती राजनीतिक संघर्ष पूरी तरह से अहिंसक है. वे चीन के वासियों को अपना दुश्मन नहीं, बल्कि अपने भाई बहन मानते हैं. तिब्बतियों के हिसाब से नफ़रत का मुक़ाबला सकारात्मक मानसिकता से ही किया जाना चाहिए, घृणा के विरुद्ध घृणा से केवल विनाश ही होगा. तिब्बती संघर्ष ने स्वतंत्रता के लिए केवल अहिंसक रास्ते अपनाएं हैं. चीन ने अपनी अज्ञानता के कारण ही सारी ग़लतियाँ की हैं. प्रोफ़ेसर सम्तेन जी का मानना है कि अध्यक्ष माओ को तिब्बत की स्थिति और तिब्बत की सामाजिक व्यवस्था के बारे में बहुत कम समझ थी.
प्रोफ़ेसर सम्तेन जी बौद्ध धम्म और व्यक्ति विशेष के बीच भेद को समझाते हुए कहते हैं, कि जब कोई धम्म के नाम पर हिंसा करता है तो वह स्वयं ही बौद्ध धम्म के उसूलों के विपरीत चला जाता है. एक प्रबुद्ध व्यक्ति को अपने विवेक से 'धम्म' और 'हिंसा में शामिल लोगों' के बीच अंतर करना चाहिए. जब धम्म में सत्ता की लालच होने लगती है तो आध्यात्मिकता भी प्रदूषित हो जाती है. जो व्यक्ति बौद्ध धम्म की शिक्षा के विपरीत कर्म करे वह बौद्ध हो ही नहीं सकता.