इंटरव्यू

अगर गाय तुम्हारी मां तो तुम्हीं करो अंतिम संस्कार - गुजरात में दलित मुक्ति की हांक  

Date: 
August 7, 2016
आज से 53 साल पहले अमेरिका में अश्वेतों ने अपनी मुक्ति यानी सेल्फ लिबरेशन के लिए वाशिंगटन मार्च किया था। ठीक इसी तरह 5 अगस्त को 800 प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं ने सेल्फ लिबरेशन के लिए 81 किलोमीटर लंबी यात्रा की शुरुआत की। सबरंगइंडिया पिछले कई सप्ताह से हिंदू राष्ट्र की इस प्रयोगशाला में उभर रहे दलित आंदोलन को गौर से देख रहा है। सबरंगइंडिया ने पांच अगस्त को दस बजे बेजलपुर से अहमदाबाद की इस सेल्फ लिबरेशन यात्रा के शुरू होते ही गुजरात में उभरे दलित आंदोलन के एक प्रमुख चेहरे जिगनेश मेवानी से बातचीत की। युवा वकील और दलित अधिकार कार्यकर्ता जिग्नेश ने सबरंगइंडिया की सह-संपादक तीस्ता सीतलवाड़ को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में इस यात्रा के मकसद और मौजूदा दलित आंदोलनों के दूसरे पहलुओं पर खुल कर अपने ख्याल रखे।  


Jignesh Mevani
 
 जिगनेश जी,  क्या आप इस आजादी कूच यात्रा का महत्व समझाएंगे?
-  गुजरात का यह दलित आंदोलन ऐतिहासिक है। पिछले, रविवार यानी 31 जुलाई 2016 को गुजरात के 20000 दलितों ने बाबा साहेब अंबेडकर के नाम पर एक शपथ ली। उन्होंने कसम खाई कि वे दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में मरे हुए जानवरों को उठाने का गंदा और आदमी की गरिमा घटाने वाला काम नहीं करेंगे। उन्होंने कसम खाई कि वे अन्यायपूर्ण हिंदू जाति व्यवस्था की ओर से दलितों पर लाद दिए गए सीवर और नालियां साफ करने का गंदा काम नहीं करेंगे। गुजरात में दलितों की यह शपथ मील का पत्थर है। हमें उम्मीद है कि इससे देश भर के दलितों को प्रेरणा मिलेगी। गुजरात की यह पहल ऐतिहासिक है।
यह पदयात्रा, यह कूच हमारी इस दलित चेतना और आंदोलन की मांग को मजबूती से उठाने की ओर तेजी से बढ़ता कदम है। इस कूच के जरिये हम अपनी मांग जोर-शोर से उठा रहे हैं। वेजलपुर (अहमदाबाद) से शुरू होकर उना तक की 81 किलोमीटर की यह यात्रा रास्ते में पडऩे वाले सैकड़ों गांव से गुजरेगी और 30 संगठनों की सामूहिक मांग को सामने रखेगी। यात्रा के मार्ग में हम दलितों से संवाद कायम करेंगे। हम अन्य पिछड़े वर्गों और दूसरे समुदाय से अपनी मांगों और दलितों की एक नई आजादी के बारे में बात करेंगे। हमें दलित चेतना को जगानी है।

हम दलितों के लिए वैकल्पिक रोजगार की मांग कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि दलितों को गरिमापूर्ण काम मिले। हम खेती करना चाहते हैं। हम मरे हुए मवेशियों को उठाने का गरिमाहीन काम छोडऩा चाहते हैं। हम गाय, भैंसों की लाश उठाने के काम से खुद को मुक्त करना चाहते हैं। हम गटर, सीवर और गलियों की सफाई का काम छोडऩा चाहते हैं। जाति व्यवस्था ने सदियों से हमारे ऊपर यह गरिमाहीन व्यवस्था लाद दी है। हमारा आंदोलन इस व्यवस्था के खिलाफ एक विद्रोह है।

क्या दलितों के लिए पीढिय़ों से जारी आजीविका के इन साधनों को छोडऩा आसान होगा?
मुझे पता है कि यह कितना कठिन है। मेरे पिता ने बरसों तक यह काम किया है। इस तरह के काम हमारी आय का एक मात्र साधन थे। हम जानते हैं कि इस काम को छोडऩा और अन्य गरिमापूर्ण कामों की मांग करना कितना मुश्किल है। लेकिन हम एक आंदोलन छेड़ कर इस दिशा में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। दलित का अस्तित्व इसी से मुक्त होने से जुड़ा हुआ है। दलित तभी मुक्त हो सकते हैं जब वे वैकल्पिक और गरिमापूर्ण रोजगार अपनाएंगे।

आप किन वैकिल्पक कामों की मांग कर रहे हैं?
गुजरात का लैंड सीलिंग एक्ट और सरकार की कृषि नीति में दलित परिवारों को पांच एकड़ जमीन देने का प्रावधान है। इस प्रावधान के तहत दलितों को तुरंत जमीन बांटने का काम शुरू होना चाहिए। यह काम तुरंत शुरू हो। बगैर किसी देरी के। जो सरकार अडानी, अंबानी और एस्सार को लगभग मुफ्त में जमीन दे सकती है क्या वह गुजरात के दलितों को जमीन नहीं बांट सकती। दलितों के आर्थिक पिछड़ेपन को खत्म करने की दिशा में यह एक बड़ी सामाजिक क्रांति होगी। 

हमें यह अहसास है कि देश के व्यापक दलित बहुजन समाज के अपने अंतर्विरोध भी हैं। दलित भी जातियों और समुदायों में बंटे हैं। उनके बीच कई उपजातियां हैं। हमें इस बात का भी अहसास है कि यह हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। दलितों में कम से कम 1500 उपजातियां और समुदाय हैं। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे सुलझाना इतना आसान नहीं है। लेकिन इस विभाजन के बावजूद हम दलितों की आर्थिक तरक्की, उनके सामाजिक अधिकार की लड़ाई जारी रखेंगे। उप जातियों में विभाजन और लैंगिक भेदभाव के बावजूद हम इस आंदोलन को आगे लेने जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम इस दलित उभार को आगे ले जाने को लेकर आशान्वित हैं। हम इसे गुजरात के हर कोने और अंतत: पूरे देश में ले जाना चाहते हैं। हम लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार देश के हर नागरिक चाहे वे गांधीवादी हों या फिर कम्यूनिस्ट, नारीवादी हों गैर सरकारी संगठन, सबसे अपने साथ आने की अपील करते हैं। वे आएं और हमारे साथ दलितों के उत्थान और उनके सामाजिक अधिकार के इस संघर्ष के भागीदार बनें। आंदोलन के पीछे एक नारा काम कर रहा है और वह है - मरेला पशु तमे रखो, अमने जमीन आपो। यही नारा इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहा है। मैं इस आंदोलन को जाति व्यवस्था और  गलोबलाइजेशन के खिलाफ देखता हूं। हमें जाति व्यवस्था और गलोबलाइजेशन, दोनों को हराना होगा।



आपने और आपके सहयोगियों ने गुजरात के विकास मॉडल के खिलाफ तीखा विरोध जताया है। गुजरात में समाज के कमजोर वर्गों पर इसका क्या असर पड़ा है? 
हम गुजरात के विकास मॉडल से ठगे हुए , हताश और पराजित महसूस कर रहे हैं। यही वजह है गुजरात और इसके बाहर के समझदार लोग इस शोषणकारी सामाजिक और सांस्कृतिक चलन को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। यह जो व्यवस्था है वह सीधे-सीधे जाति व्यवस्था की उपज है।

आजादी कूच मार्च के दौरान आप जो दस खास मांगें रख रहे हैं। वे क्या हैं?
हमारी मांगें इस तरह हैं-
1. सबसे पहले ऊना में 11 जुलाई को दलित युवाओं की बर्बर पिटाई के सभी आरोपियों पर प्रिव्हेंशन ऑफ  एंटी सोशल एक्ट (पीएसीए) लगाया जाए ताकि जमानत पर रिहा होने पर उनकी फिर गिरफ्तारी हो सके। जो लोग गिरफ्तार हुए हैं उनके अलावा इस मामले को सभी आरोपियों को भी तुरंत गिरफ्तार किया जाए। 

2. जो पुलिस अफसर मरे हुए जानवरों का खाल उतारने वाले दलित युवकों की पिटाई के दौरान आरोपियों से मिले हुए पाए गए उनके खिलाफ आपराधिक साजिश और अत्याचार एक्ट के तहत तेजी से कार्रवाई हो। 

3. पिछले रविवार को 70-80 दलितों के खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज की गईं। 31 जुलाई को अकेले ढोडका में ही गुजरात पुलिस ने इस तरह के 43 मामले दर्ज किए। पिछले रविवार को जो ऐतिहासिक प्रदर्शन और आंदोलन हुआ, सिर्फ उसमें हिस्सा लेेने के आरोप में इन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। इन झूठे आरोपों को तेजी से और तुरंत वापस ले लिया जाए। 

4. 2012 में सुरेंद्रनगर जिले के थांगढ़ में पुलिस ने एके -47 राइफलों से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे दलितों को मार डाला था। इस मामले के आरोपी और अभियुक्त पुलिस अफसरों के खिलाफ तेजी से मामला चलाया जाए। इस कांड को चार साल हो चुके हैं। जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करने की बात तो छोड़ दीजिये अभी तक चार्जशीट तक दाखिल नहीं की गई है।

5. अत्याचार कानून के तहत इन अपराधों के लिए स्पेशल कोर्ट गठित हों। गुजरात के सभी 25 जिलो में ऐसे कोर्ट गठित हों।

6. अत्याचार कानून की धारा 3(1)(एफ) के तहत दलितों को पांच एकड़ जमीन पारदर्शी और पक्के तौर पर देना अनिवार्य हो। इस प्रावधान का पूरी तरह पालन हो।

7. सभी नगर पालिकाओं (नगर निगमों, स्थानीय निकायों) में जो सफाई कर्मचारी रखे जाएं उन्हें छठे वेतन आयोग के हिसाब से वेतन मिले।

8. गुजरात में आरक्षण कानून तुरंत लागू हो। आज की तारीख में गुजरात में रिजर्वेशन और अफरमेटिव एक्शन से जुड़े सभी कदम कार्यपालिका की मनमर्जी पर निर्भर करते हैं। इन्हें सरकार के प्रस्ताव के तहत ही शुरू और लागू  किया जाता है। इसमें बदलाव हो।

9. अनुसूचित जाति और जनजातियों को लिए आवंटित बजट का इस्तेमाल सिर्फ उन्हीं वर्गों के लिए हो। गुजरात सरकार अक्सर यह फंड कहीं और लगा देती है।

10. गुजरात सरकार को डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर की उस किताब के उन पन्नों को हटाने के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए जिनमें हिंदुत्व पर उनके क्रांतिकारी विचार व्यक्त किए गए गए थे। इनमें 1956 में बौद्ध धर्म ग्रहण करने के समय लिए गए उनके 22 शपथों का भी विवरण था।


Chalo Una! Flagging off Ahmedabad to Una rally
Chalo Una! Flagging off Ahmedabad to Una rally. Girls from Valmiki Samaj flagged off the rally.

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आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2010 की तुलना में 2014 में दलितों पर अत्याचार की घटनाओं में 44 फीसदी का इजाफा हुआ है। 2014 में ही केंद्र में बीजेपी सरकार आई थी। इस दौरान बीजेपी शासित राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और छत्तीसगढ़ में दलितों के खिलाफ 47,064 के अपराधों में से 30 फीसदी को अंजाम दिया गया। पिछले ही सप्ताह दलित अत्याचार की कई घटनाएं एक साथ हुईं। कांग्रेस शासित कर्नाटक में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने दलितों की पिटाई की। भाजपा शासित गुजरात और महाराष्ट्र में उनको बुरी तरह पीटा गया । नीतीश कुमार के बिहार में उन पर पेशाब किया गया। गुजरात में इतना बड़े आंदोलन के बावजूद लखनऊ में उन पर हमला किया गया।

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आजादी कूच यात्रा के दौरान शामिल की गई कुछ और मांगें
1. वन अधिकार कानून के तहत गुजरात सरकार को जमीन के लिए आदिवासियों के 1,20,000 आवेदन मिले। गुजरात सरकार इस कानून के प्रावधानों के तहत तुरंत इन जमीनों को बांटने का काम करे।
2. गुजरात के दलित आत्मरक्षा के लिए लाइसेंसी हथियार रखने की मांग कर रहे हैं। यह मांग पूरी की जाए। गुजरात में दलितों की सुरक्षा को भारी खतरा है। दलित गुजरात में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते। गांवों में उन पर हमला होता है।
3.दलितों को मार्शल आर्ट मसलन- जूडो,कराटे सिखाने के लिए तालीम केंद्र खोले जाएं।  खेल महाकुंभ के दौरान जिस तरह अन्य समुदायों के लिए ऐसी पहल की जाती है वैसी ही व्यवस्था दलितों के लिए भी हो।
4.सामाजिक बहिष्कार और छुआछूत खत्म करने के लिए दलितों के लिए स्मार्ट सेंटर बनें। उन्हें नारंगपुरा और नवरंगपुरा जैसे पॉश इलाकों में रहने की सुविधा मिले।
5. नरेंद्र  मोदी के स्टार्ट-अप कैंपेन में दलितों के लिए अलग स्पेशल इकोनॉमिक जोन बने। यह ऐसे दलित युवकों के लिए कारगर होगा जो दलितों पर लादे गए गरिमाहीन कार्यों को छोड़ कर गरिमापूर्ण रोजगार अपना सकें।