इंटरव्यू

UGC के खिलाफ जे.एन.यू लामबंद: सीट कटौती के खिलाफ संघर्ष जारी

Date: 
March 28, 2017
जे.एन.यू के शोध सीटों में 84 % की  कटौती



सबरंग और न्यूज़क्लिक के साझा कार्यक्रम में तीस्ता सेतलवाड़ ने जेएनयू शिक्षक संघ की अध्यक्ष आएशा किदवई से बात की. उन्होंने विश्वविद्यालय में यूजीसी सरक्यूलर के खिलाफ जारी संघर्ष पर चर्चा की. पिछले साल हुए हमले के बाद जेएनयू एक बार फिर भारी सीट कटौती के खिलाफ एकजुट हुआ है. 80 प्रतिशत से ज्यादा की गई कटौती से विश्वविद्यालय  जो मुख्यतः शोध के लिए जाना जाता है, एकबार फिर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. जेएनयू लगातार संघ एवं सरकार के निशाने पर रहा है और यूजीसी का नया निर्देश, विश्वविद्यालय  के मुलभूत  ढांचे को चोट पहुँचाने की तरफ एक कदम के रूप में देखा जा सकता है.

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तीस्ता सेतलवाड़:-     अस्सलाम और प्रणाम, आज की मुलाकात में हमारे साथ है, प्रोफेसर आएशा किदवई। जे.एन.यू.टी.ए (JNUTA)J की प्रेसिडेंट वहाँ पर जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में आज जो संघर्ष एक साल में चल रहा है उनके बारे में बातचीत आज होगी। शुक्रिया आएशा जी बात करने के लिए। एक साल तेरह महीने से संघर्ष चल रहा है जे.एन.यू (JNU) में ये हायर एजुकेशन में तालीम शिक्षण के लिए और एक तरह से लोकशाही और जम्मूरियत के लिए इसके मायने क्या है। 

आएशा किदवई :-     इसके मायने ये है कि आज जे.एन.यू (JNU) है और इसके बाद हर यूनिवर्सिटी तो होगी।पर एक बहुत क्लियर मैसेज जा रहा है, साफ़ एक सन्देश जा रहा है कि अगर गरीब पिछड़े तबके से आप है तो आप को शोध करने  का कोई हक़ नहीं है और एक जो यूनिवर्सिटी है इस देश में और जिसमें ये जो इन ऐसे तबकों को अपने को एडमिशन दे कर के  उनसे वर्ल्ड क्लास रिसर्च करवाते है, उसको बंद कर देना चाहिए। जे.एन.यू (JNU) में कल सुबह अनाउंसमेंट हुआ, कि हमारी चौदह सौ सीट जो हम टीचर्स देना चाहते है वो घटकर दो सौ से कम कर दी गयी।  

तीस्ता सेतलवाड़:-      कानूनी स्तर पर इसका मतलब क्या है ? जे.एन.यू  (JNU) एक्ट के तहत बनी हुई यूनिवर्सिटी सेंट्रल यूनिवर्सिटी एक्ट के अंतर्गत बनी है। वो कानून ये कहता है कि एक तरह से एडमिशन होना ही चाहिए। वो कानून के तहत ऐकडेमिक काउंसिल ने निर्णय ले लिया। चौदह सौ सीट का वो निर्णय को उलटाने के लिए यू.जी.सी (UGC) के गाइडलाइन को इस्तेमाल करके एडमिनिस्ट्रेशन में एक सौ तीस सीट मतलब बहुत कम सीट कर दी तो इसका ये भी एक मतलब निकल सकता है, कि कानून को बिलकुल नाकामयाब करने का एक काम सरकार ने किया।

आएशा  किदवई :-  ये जो देश के और कोनों में भी हो रहा है, कि एक कानून जिससे वो डोमिन्स कर सकते है जिस तरीके से वो लोगों पर हावी होते है जो उसका एक बिल्कुल बराबर का कानून है उसको उसके नीचे घुसेड दो, तो अभी जो हुआ है, यू.जी.सी बना 1956 पर ,जे.एन. यू बना 1966 में। जे.एन.यू (JNU) का एक्ट कहता है, कि आप को इन-इन लोगों को एडमिशन देना है, एक तरीके से देना है। और यू. जी. सी (UGC) का एक्ट जे.एन.यू  (JNU) एक्ट के बारे में बात नहीं करता वो कहता है, कि हम जो रूल बनायेंगे वो ठीक है, तो दोनों एक बराबर एक्ट है एक ऐसा तो नहीं है। राइट टो इक्वलिटी, समानता का अधिकार और बोलने का अधिकार उनमें से एक ज़्यादा है पर यहाँ ये हो रहा है। एक कानून को लेकर के उसको हथोड़ा बनाकर के दूसरे कानूनों को खत्म किया जा रहा है।

तीस्ता सेतलवाड़:-     कि विश्वविद्यालय में जे.एन.यू  (JNU) में बच्चे जो आते है, गरीब तबके से भी आते है, अलग-अलग लोकेशन से बम्बई, दिल्ली छोड़कर जो एलीट कोस्मो पोलिटियन एरियास उनको छोड़ करके जो छोटे-छोटे गाँव, नोरथ ईस्ट से लेकर दक्षिण भारत, पूर्व भारत मतलब वेस्ट इंडिया से ज़्यादा लोग आते है, तो ये तबकों से जब बच्चे जब आते है, एम.ए और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एम.फिल और पी.एच डी करने के लिए उससे शिक्षण तालीम और सोच विचारधारा पर क्या फर्क पड़ता है।

आएशा किदवई :-     बहुत बड़ा फर्क इससे देखिये ,ज्यादातर तो हम लोग सामाजिक न्याय को एक तरीके से सोचते है, कि अन्याय का हम किसी तरह पूर्ति कर रहे है। पर हमारी तो एक्चुअली समझ तो सभी को होनी चाहिए।पर हमारी समझ थोड़ी फर्क है इससे शिक्षा का जो स्तर होता है और स्पेशल्ली शोध का जो स्तर होता है वो कहीं ज़्यादा बढ़ता है,क्योंकि नये सवाल, नये फैक्ट्स आते है जिसके शोध किया जाता है। हमारी यूनिवर्सिटी में शायद आप जानती होंगी कि करीब साठ से पैंसठ प्रतिशत लोग देश के चारों कोनों से आते है। क्योंकि हमारी यूनिवर्सिटी की फीस बहुत कम है हमें तो उनकी कहानियाँ मालूम है वो हमारी क्लास में हर दिन सुनते है ,कितने दिन,कितने महीने पैसा इकठ्ठा करके लोग दिल्ली पहुँचे। जे.एन.यू से अगर एक हफ्ता पहले पहुँचे।तो पहली दो सौ की फीस देने के लिए कंस्ट्रक्शन में काम किया, बिल्डिंग में काम किया। वैसे लोग हमारी यूनियन स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट भी बनते है। तो ये जो एक हम माहौल क्रिएट कर पाए है हम नहीं  कह रहे है कि चीज़ परफेक्ट है। बिल्कुल नहीं ,कि हर चीज़ ,पर एक माहौल जिसमें ये सवाल सिर्फ रिजर्वेशन तक सीमित नहीं,  पढ़ाया जाता है,क्या पढ़ा जाता है, उससे जुड़ जाते है और एक्चुअली वो वहम था, इससे हमें पूरा इंटरनेशनली हमें इतनी शोहरत मिली है, क्योंकि हमारे यहाँ असली रिसर्च होती है,वो सब अब खत्म कर रहे है।

तीस्ता सेतलवाड़:-     रोहित वैमुला का कांड जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी में हुआ तो डायरेक्टली उसमें एम.एच.आर.डी (MHRD) का रोल, मंत्रालय का रोल। वहाँ पर सिक्योरिटी का रोल हमने देखा ए.बी.वी.पी. (ABVP) का साथ देने के लिए यही सरकार इसी तरह हाथ धोकर जे.एन.यू  (JNU)  के पीछे और बाकी विश्वविद्यालय के पीछे क्यों पड़ी है आपको लगता है।

आएशा किदवई :-     मुझे लगता है देखिये, जो ये अंध विश्वास जो है,ये अंध विश्वास कैसे जायेगा। सिर्फ पढ़ाई लिखाई से और वो पढ़ाई लिखाई हमारे पूरे देश में क्या कोई और पढ़ सके के नहीं , इन्फेक्ट इनकी जो साज़िश है जो दो यूनिवर्सिटी यू.जी.सी (UGC), एन.सी.आर.टी (NCERT),  सी.बी.एस.इ (CBSE)। उससे मेजोरिटयन माने हिन्दू राष्ट्र ठीक है आप जानती है कि शिक्षा  में इन लोगों ने हमेशा बहुत दिलचस्पी ली है माने अशिक्षित करने के लिए लोगों को तो उसको ये  यू.जी.सी (UGC) को, सी.बी.एस.इ (CBSE) को, एन.सी.आर.टी (NCERT) को, इस तरीके से इस्तेमाल करेंगे कि ये की कोई न पढ़ पाए। स्पेशल्ली जो एक पुरानी विचारधारा है कुछ लोग तो बिल्कुल ही नहीं पढ़ सकते ब्राह्मण  के अलावा। औरतें तो बिल्कुल नहीं पढ़ सकती थी। हमारी यूनिवर्सिटी में साठ प्रतिशत औरतें है तो  उसको रिस्ट्रिक्ट करना और दूसरा की  रिजर्वेशन के खिलाफ ही बहुत  बड़ा आरक्षण के खिलाफ  बहुत बड़ा हमला हुआ है।उस हमले को यूनिवर्सिटी में अब जाकर ये सत्तर साल के बाद हर जगह ये रिज़र्व सीट भरती है, तो ये तो बहुत बुरा है ना , इसको तो खत्म करना है तो देश की जनता को कुचलने के लिए आसान तरीका है आप प्रवचन  कर दे कि प्लास्टिक सर्जरी थी वेदा में। पर आपसे पूछे कि कैसे आप ये कह सकते है।

तीस्ता सेतलवाड़:-     मतलब रोहित वैमुल्ला, कन्हैया कुमार, उमरखालिद, शैला रशीद,  मोहित जो भी हो राहुल सोनपिपले, ऐसे बच्चे बड़े होकर सवाल सरकार और व्यवस्था से ना करे। वही मतलब ये सरकार का उद्देश्य है।

आएशा किदवई :-     देखिये शिक्षक का क्या  होता है, एक नई दुनिया की कल्पना करना वो सिर्फ सरकार पर नहीं होता है, इस नई दुनिया में हम कैसे समानता बनायेंगे वो सवाल अपने से भी ना पूछ पायें जो आज जे.एन.यू में हम कहीं जाते है  इतना जे.एन.यू की  टीशर्ट पहनकर कोई बाहर नहीं निकलता, क्योंकि ये सवाल जो है कि क्या हम दुनिया कैसे बदले,कौन सी नई दुनिया हो, वही खत्म करना है कि आप अपने आप से न पूछ पाएं ये सवाल।

तीस्ता सेतलवाड़:-     आएशा जी आपके संघर्ष में हम सब आपके साथ है। आपने बहुत बहादुरी दिखाई इस इशू पर ,और हमसे बात करने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।

आएशा किदवई:-     बहुत शुक्रिया।

तीस्ता सेतलवाड़:-     अन्धविश्वास सवाल नहीं करने का दबाव एक इस तरह की समाज और इस तरह की सोच विचारधारा जो महिला , औरत  और  पिछड़े गरीब बच्चों के सवाल नहीं सुन सके। इस तरह के समाज की तैयारी हमारी सरकार करने जा रही है ,जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पर जो एक हमला सरासर तेरह महीनों से हो  रहा है,वो सिर्फ जे .एन. यू पर हो रहा है वो हम ना समझे।  मगर विश्वविद्यालय और सोच विचारधारा और शोध और रिसर्च के ऊपर ,सोशल साइंस की रिसर्च के ऊपर एक हमला है ,इस तरह  नागरिक सोचें। इसलिए हमने आज ये बातचीत डॉ . आएशा किदवई से की। हमारे साथ और सुनने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया ।