तलाक़ की मुख़ालफ़त: एक मुस्सलमान महिला की आवाज़


Tahira Hasan

कुछ लोग मेरे तीन तलाक़ की मुख़ालफ़त करने के खिलाफ है और तरह तरह की बाते कर रहे है मुझे डराने धमकाने की कोशिश कर रहे है मैं उन्हें साफ़ कर दू की मैं उनकी गीदड़ भपकियो से डरने वाली नहीं ... मुझे मालूम है की उनको जानकारी सिर्फ इतनी है जितनी मौलानाओ ने उन्हें दी है ....इसलिए उनको मेरा मशविरा है की इसे पढ़े और फिर खुद सोंच कर फैसला करे ... मेरा विरोध एक ही वक़्त में , नशे की हालत में , पागलपन में ,गुस्से, व्हाट्सअप या फोन पर कहे तीन तलाक़ का है न की क़ुरआन में दिए तरीके से तीन महीने में हुए तलाक़ का .... मेरा मानना है की इस्लाम में तलाक़ का प्रोवीजन औरतो की भलाई के लिए था की अगर पति पत्नी में वाक़ई नहीं निभ रही तो सोंच समझ कर अपने क़रीबी लोगो के मान मनौव्वल और सभी पहलुओं को देख समझ कर ज़िंदा रहते अलग हो जाया जाए और नए सिरे से ज़िंदगी शुरू की जाए ...लेकिन आज के दौर में इसको एक हथियार के तरह इस्तेमाल किया जा रहा है ..मैं साफ़ कर दूँ की क़ुरआन में नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा नहीं दिया है लेकिन तलाक़ किस तरह दिया जाए इसे एक नहीं कई जगह साफ़ तौर पर दिया है .. दुनिया के ज़्यादातर मुल्को ने जहाँ शरई हुकूमते है वहा भी इस तरह के तलाक़ को वक़्त रहते बदला गया है ..यहां मुश्किल यह है की ज़्यादातर हमारे भाई बहन क़ुरआन को अरबी में पड़ते है और उसके मानी नहीं समझ पाते और मौलाना हज़रात भी यही चाहते है .मेरा मानना है की क़ुरआन अल्लाह की दी हुई हिदायत और जीने का तरीक़ा है उसे आप जिस भी ज़बान में अच्छी तरह समझ सके उस ज़बान में पढ़े और उसमे दी हुई बातो पर अमल करे.. मेरा दावा है की अगर आप क़ुरआन को बामानी पढ़ कर समझ लेंगे तो आप को कोइ बेवक़ूफ़ नहीं बना सकेगा और आप अपने मज़हब को जग हसाई से बचा लेंगे