"मोदी सरकार एससी-एसटी-ओबीसी शिक्षकों से छुटकारा पाना चाहती हैं"
(नरेंद्र मोदी की सरकार में भारतीय समाज के तमाम तबके आंदोलित हैं. सबसे ज्यादा तनाव कैंपस में है. देश भर के विश्वविद्यालयों में छात्र और शिक्षक सड़कों पर उतर रहे हैं. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से लेकर आईआईटी चेन्नई और जेएनयू से लेकर बीएचयू तक में बवाल मचा हुआ है. अब यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसका असर काफी दूरगामी होगा और इसकी सबसे ज्यादा मार दलित, आदिवासी, पिछड़े और पसमांदा समाज के एकेडेमिशियंस पर होगा. इस बारे में और जानने के लिए पढ़ें एकेडेमिक फोरम फॉर सोशल जस्टिस, दिल्ली यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष डॉ केदार मंडल का यह बयान)
जब कभी दलित पिछडें एवं पसमांदा समाज की भागीदारी का दिल्ली विश्वविद्यालय एवं अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में सुनिश्चित होने का अवसर आता है मनुवादी ताकतें कोई न कोई बहाना लगाकर इसे रोक देती है । ताजा मामला राजपत्र अधिसूचना,UGC रेगुलेशन(तीसरा संशोधन ) 2016 का है । इस Notification के कारण DU के करीब 4500 एड हाॅक शिक्षकों की नौकरी छिन गई । Academic Forum For Social Justice,DU इसका कडे शब्दों में विरोध करती है, और UGC से इस Notification को अविलंब वापस लेने की मांग करती है । अगर यह वापस नहीं लिया गया तो संगठन सड़कों पर विरोध करने के लिए बाध्य हो जाएगा ॥
गौरतलब है कि इसमें अधिकांश शिक्षक आरक्षित श्रेणी के हैं और बाकी गैरआरक्षित श्रेणी के । ये सारे शिक्षक एक झटके में सड़क पर आ गये ।दूसरी ओर स्थायी शिक्षकों की क्लासें बढ़ा दी गई ताकि निकाले गये शिक्षकों की भरपाई की जा सके ।
ये सारी कवायद पूरी शिक्षा व्यवस्था को एक "कोमोडिटी" में बदल देने की है, जहाँ शिक्षक मात्र एक मशीन बनकर रह जाएगा ॥ कम पैसे में ज्यादा उत्पादन । कम पैसे और कम शिक्षकों से ज्यादा काम । जहाँ गुणवत्ता एवं बौद्धिकता की कोई जरूरत नहीं ॥
फील गुड,अच्छे दिन लेज/ कुरकुरे के उस पैकेट की तरह है जो बाहर से दिखता तो भरा-भरा सा है लेकिन जब खोलो तो सिर्फ एक चौथाई होता है । "अच्छे दिन" की स्थिति भी एेसी हो गई है ॥
Dr.Kedar Mandal
President-Academic forum For Social Justice,DU