मोदी का आरोप झूठा: पिछले साल ईद पर 13000 और दिवाली पर 15000 मेगावाट बिजली सप्लाई हुई


उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले की एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी ने बिजली का धर्मिक बंटवारा कर दिया। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार पर धर्म के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में भेदभाव सबसे बड़ा संकट है। जिसका भी हक है, उसे मिलना चाहिए चाहे वह किसी भी माता की कोख से पैदा हुआ है। गांव में कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए। रमज़ान में बिजली मिलती है तो दिवाली में भी मिलनी चाहिए।

नरेंद्र मोदी के इस बयान को कमोबेश पूरी मीडिया ने जस का तस प्रसारित किया। देश भर में यह संदेश गया कि उत्तर प्रदेश सरकार शायद धार्मिक आधार पर अपने नागरिकों से भेदभाव करती है। यूपी में बिजली का वितरण देखने वाला विभाग उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) इस विवाद की सही तस्वीर दे सकता था लिहाजा कैच ने विभाग से साल 2016 के आंकड़ों जाने। यूपीपीसीएल से मिले आंकड़े प्रधानमंंत्री के दावे के बिल्कुल उलटी तस्वीर पेश करते हैं।

यूपीपीसीएल के मुताबिक पिछले साल ईद के दिन यानी 6 जुलाई, 2016 को पूरे राज्य में 13,500 मेगावॉट बिजली की सप्लाई की गई जो कि रमजान के महीने मेें सबसे पीक सप्लाई थी। ईद के करीब चार महीने बाद अक्टूबर में दीवाली पड़ी। इस मौके पर धनतेरस से लेकर भैया दूज तक यानी पांच दिनों तक प्रदेश में रोजाना 15,400 मेगावॉट बिजली की आपूर्ति हुई। यानी कि ईद की तुलना में दीवाली के मौक़े पर 1900 मेगावॉट ज़्यादा बिजली सप्लाई हुई।

इन आंकड़ोंं को एक अलग नजरिए से भी देखा जा सकता है। ईद जुलाई महीने में पड़ी थी जो कि अपेक्षाकृत बेहद गर्म महीना होता। इस दौरान एसी, कूलर समेत तमाम साधनों का लोग इस्तेमाल करते हैं। जाहिर तौर पर गर्मियों के मौसम में बिजली की जरूरत ज्यादा होती है। जबकि दिवाली सर्दियों की पहली दस्तक के आसपास अक्टूबर महीने मेें थी। जाहिर है बिजली की जरूरतें कम हो जाती हैं। पर उत्तर प्रदेश सरकार ने दिवाली पर सप्लाई ज्यादा की।

ऑल इंडिया पावर इंजिनियर फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कैच हिंदी को बताया, ‘पिछले साल 28 अक्टूबर से 1 नवंबर तक (धनतेरस से भैयादूज) यानी कि पूरे पांच दिन राज्य में 15400 मेगावॉट बिजली की आपूर्ति की गई। पांच दिनों तक लगभग 24 घंटे आपूर्ति जारी थी।’

दीवाली के मौक़े पर राज्य में 1900 मेगावॉट बिजली की ज़्यादा सप्लाई इसलिए हुई क्योंकि धनतेरस से भैयादूज के दौरान छुट्टियों में सभी सरकारी दफ़्तर बंद थे और इंडस्ट्री वग़ैरह में काम नहीं हुआ। इसलिए यहां खपत होने वाली बिजली नागरिकों को सप्लाई कर दी गई।

मोदी की आधी-अधूरी जानकारी
क्या यूपीपीसीएल को धर्म के आधार पर बिजली की आपूर्ति संबंधी दिशानिर्देश कभी सरकार से मिलते हैं? इस सवाल के जवाब में शैलेंद्र दूबे का दावा है कि यूपीपीसीएल के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि राज्य सरकार बिजली की आपूर्ति में धार्मिक भेदभाव करती है। चाहे समाजवादी पार्टी की सरकार हो या फिर उससे पहले रही बहुजन समाज पार्टी, त्यौहारों के मौक़े पर नागरिकों को अधिक से अधिक बिजली या दूसरी सुविधाएं देना सरकारों की प्राथमिकता में रहता है। इससे जनता को खुश रखने में भी मदद मिलती है।

सभी प्रमुख त्यौहारों में बिजली आपूर्ति के लिए ख़ास इंतज़ाम सरकारों का दायित्व होता है। राज्य सरकार बाक़ायदा सर्कुलर निकालकर पॉवर कॉरपोरेशन को इंतज़ाम करने का निर्देश देती है। त्यौहार के ठीक पहले सूचना विभाग प्रेस स्टेटमेंट भी जारी कर यह जानकारी नागरिकों तक पहुंचाता है। सिर्फ ईद, रमज़ान नहीं बल्कि दीवाली, दशहरा, नवरात्र वग़ैरह पर भी एक ही प्रक्रिया का पालन होता है।

कैच हिंदी ने उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा से धार्मिक भेदभाव के आरोप की वजह जानने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि चूंकि यह प्रधानमंत्री का बयान है इसलिए वो इस पर कोई कमेंट नहीं करना चाहते हैं।

यूपी में बिजली
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के मुताबिक नोएडा और लखनऊ में 24 घंटे बिजली उपलब्ध रहती है। सभी महानगरों में 20 घंटे, ज़िला मुख्यालयों पर 18 घंटे, तहसीलों और ग्रामीण इलाक़ो में 12 घंटे की न्यूनतम आपूर्ति होती है। शैलेंद्र के मुताबिक गर्मियों में राज्य में 17 हज़ार मेगावॉट बिजली की मांग होती है जबकि जाड़ों में 13 हज़ार मेगावॉट। उन्होंने दावा किया है कि निगम के पास पर्याप्त बिजली होती है और राज्य अपने सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के बिजली आपूर्ति करता है।

प्रधानमंत्री के बयान के बाद सपा और कांग्रेस नेताओं ने नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की है। दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं का आरोप है कि इस बयान के पीछे नरेंद्र मोदी की मंशा उत्तर प्रदेश चुनाव का ध्रुवीकरण करना है। यह बहुत हद तक स्पष्ट भी है।

श्मशान-कब्रिस्तान का सच
प्रधानमंत्री ने अपने फतेहपुर की चुनावी सभा में अखिलेश सरकार पर श्मशान और कब्रिस्तान के आधार पर भेदभाव करने का आरोप भी लगाया। इसकी सच्चाई भी जान लेना जरूरी है। प्रधानमंत्री के बयान से यह भ्रम फैला कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कब्रिस्तान के लिए जमीन जारी करने की कोई नीति बनाई है। इसे एक लिहाज से भ्रामक चुनावी बयान कहा जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश सरकार ने सदियों से मौजूद कब्रिस्तानों की बाउंड्री बनाने के लिए लगभग चार सौ करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया था। इस बजट की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि हाल के कुछ सालों में तेजी से भू-माफियाओं ने गांव-कस्बों में अपनी पैठ बना ली है। कब्रिस्तान की जमीनों को भू-माफियाओं के अवैध कब्जे से बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने यह नीति बनाई थी। लेकिन इस नीति का दूसरा हिस्सा भी है। इसके तहत पूरे प्रदेश के श्मशान घाटों के सुधार और जीर्णोद्धार के लिए भी एक बजट का ऐलान यूपी सरकार ने किया था। यह बजट 200 करोड़ रुपए से कुछ अधिक का है। चुनावी होड़ में तथ्योंं से तोड़-मरोड़ आम बात है। लेकिन प्रधानमंंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसा क्यों करना पड़ा यह बड़ा सवाल है।