संविधान की रक्षा में – हक़ और न्याय के लिए

प्रेस वक्तव्य
 
10 मई 2017 को लखनऊ के गाँधी भवन सभागार में  एक दिवसीय सम्मलेन

संविधान की रक्षा में – हक़ और न्याय के लिए
 
10 मई 1857 को देश की पहली जंगे आज़ादी की शुरुआत हुई और 1947 में हमने ब्रिटिश औपनिवेशिक राज से आज़ादी हासिल की. आज़ाद भारत के संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किये, लेकिन पिछले 3 सालों में काफी चीजें बदली हैं. संविधानिक मूल्यों का हनन बहुत तेज़ी से हुआ है, और जिसके कारण कानून का राज एक मज़ाक बन गया है. नागरिकों के अधिकारों पर सीधा और गहरा प्रहार है, जो दिन प्रतिदिन तेज़ होता जा रहा है, और अपने आपको एक सामान्य रूप से स्थापित करने की कोशिश में है. जो नागरिक अधिकार संविधान समर्थक व्यक्ति / संगठन / आन्दोलन अन्याय और ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं उन्हें भी बख्शा नहीं जा रहा है.
 
आज भारत की आज़ाद अवाम को फिर एक मर्तबा अपने देश और अपनी आज़ादी को बरक़रार रखने के लिए बुलंद आवाज़ में प्रतिरोध करने की आवश्यकता आन पड़ी है.
 
आज कोई ऐसा दिन नहीं है कि हमें किसी इंसान की पीट-पीट कर हत्या होने की सुचना प्राप्त नहीं मिलती हो. अपने खानपान, प्रेम और पसंद, कारोबार, या धर्म-समुदाय और विचार के कारण से इंसानों की सरे-आम हत्याएं देश में हो रहीं हैं. देश का संविधान ऐसे अराजक माहौल की इजाज़त कतई नहीं देता, इसके बावजूद देश अराजक गणराज्य के रूप में आगे बढ़ चुका है.
 
देश की सरकार ही आज देश के अधिकतर संविधानिक संस्थानों और प्रक्रियाओं पर हमलावर है. और यह पूरी तरह से सोच समझकर योजना के तहत हो रहा है ताकि देश में फ़ासीवादी राज स्थापित कर तालिबानीकरण को समाज के ऊपर थोपा जाये, जिससे धार्मिक अल्पसंख्यक, विशेषकर मुस्लिम और ईसाई, एवं महिलाओं, दलितों, आदिवासी और पिछड़ों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाया जाये.
 
सोचने की आज़ादी के ऊपर आज सख्त पहरा है, और प्रश्न करने पर सीधी पाबन्दी है. अकादमिक और शिक्षण संस्थानों, अध्यापकों और छात्रों को आज खुले दमन का शिकार बनाया जा रहा है.
 
बुनियादी मुद्दे जैसे शोषित वर्गों के जल, जंगल, ज़मीन के अधिकार; सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बराबरी; शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका के वादे आज साफ़ तौर पर झूठलाये जा चुके हैं. इन तमाम मसलों को लेकर चल रहे जनांदोलनों को अनदेखा किया जा रहा है.  
 
देश की साझी विरासत और संस्कृति को खत्म कर आरएसएस की द्वेष और कटुता वाली हिंसक विचारधारा को समाज में संस्कृति और नई भारत के नारे के तौर पर स्थापित किया जा रहा है.   
 
अदालतें और मीडिया भी अब पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है. आज भारत में वे सभी चीजें हो रहीं हैं जो हिटलर और मुसोलिनी के सत्तासीन होने के बाद यूरोप ने देखी थीं. आज से पहले आज़ाद भारत पर कभी इतना बड़ा ख़तरा नहीं आया है.
 
आज देश बचाने के लिए संविधान और संविधानिक संस्थाओं को बचाने की ज़रूरत है. भयानक अशांति का माहौल है, ख़ामोशी और असंतोष बढ़ता जा रहा है जो किसी भी रूप में देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है. आज इस ख़ामोशी को तोड़ते हुए अपने संविधान की रक्षा और हक और न्याय के लिए एकजुट आवाज़ बुलंद करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है.
 
इसी के ख़ातिर, लखनऊ के गाँधी भवन सभागार में 10 मई 2017 को सुबह 9 बजे से शाम 6:30 बजे तक एक दिवसीय सम्मलेन सामाजिक संगठनों और आन्दोलनों द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, कलाकार, मज़दूर, और सेक्युलर राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व शिरकत कर रहा है.
 
आपसे निवेदन है कि अपने समाचार पत्र / न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर को इस महत्वपूर्ण सम्मलेन के लिए भेजें. कार्यक्रम का ब्यौरा और आयोजकों के नाम इस प्रकार है:  
 
--- कार्यक्रम ---


सुबह 9:00 से 10:00: रजिस्ट्रेशन और चाय


सुबह 10:00 से 11:00: सांस्कृतिक कार्यक्रम


सुबह 11:00 से दोपहर 1:30: पहला सत्र
वक्ता: ऐनी राजा, अपूर्वानंद, अशोक वाजपई, चौथी राम यादव, दीपक मलिक, हर्ष मंदर, हाशिम पसमांदा, जॉन दयाल, ऋचा सिंह,  एस. आर. दारापुरी, संजय गर्ग, शबनम हाशमी, शाहनवाज़ आलम, श्रेयत बौद्ध, तीस्ता सीतलवाड
 
दोपहर 1:30 से 2:30: भोजन


दोपहर 2:30 से 4:30: दूसरा सत्र
अध्यक्षता: अपूर्वानंद
वक्ता: डी. राजा (सीपीआई), डी.पी. त्रिपाठी (एनसीपी), जावेद रज़ा (जदयू), हीरालाल यादव (सीपीएम), मनोज झा (राजद), राज बब्बर (कांग्रेस), रमेश दीक्षित, लाल बहादुर सिंह-यूपी जन मंच , समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधि, बहुजन समाज पार्टी के प्रतिनिधि

 
4:30 से शाम 6:30: खुला सत्र
प्रेसेडीयम: अरुंधती धुरु, अशोक चौधरी, रूपरेखा वर्मा, तीस्ता सीतलवाड, 





आयोजक:
आल इंडिया एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन, आल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन (AIDWA), आल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन एसोसिएशन (AIPWA), आल इंडिया सेक्युलर फोरम, अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन, अमन बिरादरी, आंबेडकर यूनिवर्सिटी दलित स्टूडेंट्स यूनियन, अनहद, अंक फाउंडेशन, अस्मिता चाइल्ड लाइन, अस्मिता (Association for the Socially Marginalised Integrated Therapeutic Action), बकरा गोश्त व्यापार मंडल लखनऊ, भारतीय महिला फेडरेशन, भारतीय निर्माण मजदूर यूनियन, भूमि अधिकार आन्दोलन, बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, क्रिस्चियन वेलफेयर एसोसिएशन, सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस, कॉर्ड (CORD), डॉ. राही मासूम रज़ा साहित्य अकादमी, फैथ इन एक्शन, एफ...डी., ग्रामीण खेतिहर मजदूर यूनियन, गुमटी व्यावसायिक कल्याण समिति, इन्साफ, इप्टा यू.पी., जन संस्कृति मंच यू.पी., जॉइंट एक्शन कमिटी बी.एच.यु., महाभूमि वी.एस.एस., मजदूर किसान शक्ति संगठन, नेशनल अलायन्स फॉर पीपलस मूवमेंट्स (NAPM), नेशनल कैंपेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स (NCDHR), एन.टी.यू.ई., न्याय मंच यू.पी., पीपलस एडवोकेसी फोरम, पीपलस यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) यू.पी., पी.वी.सी.एच.आर., कौमी एकता फोरम, राईनी महासभा, रिहाई मंच,. साझी दुनिया, सनतकदा  सामाजिक पहल, सावित्रीबाई फुले समिति, स्त्रीमुक्ति संगठन इलाहबाद, स्टूडेंट्स फॉर चेंज बी..यु., यू.पी.जन मंच, यू.पी. यूनाइटेड पास्टर्स कमिटी कानपुर, यू.पीवर्कर्स फ्रंट, यूनाइटेड क्रिस्चियन फोरम ट्रस्ट, यूनाइटेड क्रिस्चियन फोरम, विश्व ज्योति संचार केंद्र