दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मचारियों की केजरीवाल आवास पर हड़ताल का नौवां दिन।

दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें.......
कभी बड़ी सीधी-बड़ी भोली मानी जाती थी 
दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें



समय पर आ जाना सेण्टर , 
बच्चों को खेल खिलाना 
उन्हे बांटना खाना  
घर-घर सर्वे करती थी दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें
सुपरवाईजर, सीडीपीओ कितना भी डांटे-फटकारे,
भले हर काम में हेल्पर-वर्कर की चूक निकाले
क्या मजाल कुछ उलट के बोलें 
मुँह सी कर रहती थी दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें...



आंगनवाड़ियों के हालात खराब हो रहे थे  
कोई नहीं ईएसआई, पीएफ या पेंशन  
और वेतन तो इतना कि बात कीजिये ही मत 
ढाई हज़ार-पांच हज़ार था वेतन 
न्यूनतम मज़दूरी था बस एक सपना 
लेकिन इसी सब में एकजुट हो रही थी दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें...




एक दिन अचानक दिल्ली सरकार ने 
बिन गलती के कुछ हेल्पर बर्खास्त किए 
दिल्ली सचिवालय पहुंच गई दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें
केजरीवाल हाय-हाय, 
दिल्ली पुलिस हाय-हाय से दिल्ली पूरी गूंज उठी 
रिंग रोड कर दिया जाम  
बैठ गई थी, लेट गई थी, दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें


कितनी सीधी, गाय के जैसी 
पुलिस के आगे घण्टों चिल्लाती थी 
रात 10 बजे सीलमपुर थाने पहुँच गई थी 
राम-राम घोर कलजुग आया है औरतें करती नारेबाजी
वो भी ऐसे देश में जहां 
सीधी-साधी, चुप और कच्ची 
वही औरतें होती अच्छी 
मर्दो की शान के खिलाफ 
कैसे खड़ी हो रही है दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें

कैसे हाथों में ले तख्तियां 

यूनियन के साथ बैठ गई भूख हड़ताल पर  
केजरीवाल के घर के बाहर दिल्ली आंगनवाड़ी की औरतें...