हिमालय दिवस 9 सितंबर का संकल्प ‘‘बांध नहीः सुरक्षित हिमालय‘‘

हिमालय दिवस 9 सितंबर का संकल्प ‘‘बांध नहीः सुरक्षित हिमालय‘‘
आईये हिमालय के विनाश के खिलाफ संघर्ष करें
 

‘‘हिमालय दिवस 9 सितंबर‘‘ उत्तराखंड सरकार हिमालय दिवस के लिए इस बार बहुत तैयारी कर के बैठी है और पूरे भारत सरकार ने भी हिमालय दिवस के लिए तैयारियां की है। नरेंद्र मोदी भी आ रहे हैं। मात्र हिमालय दिवस मनाने से ही हिमालय की सुरक्षा नहीं होगी। बल्कि हिमालय की पीड़ा को समझना ज्यादा जरूरी होगा। आज हिमालय किन कारणों से पीड़ित है आइए उनकी विवेचना करें। हिमालय अगर पीडित है तो वह है विकास से। इस कथाकथित विकास ने हिमालय को भेद कर रख दिया है। इन विकास कार्यों में हजारों बल्कि लाखों एकड़ जंगल खत्म कर दिया गया हैं। सडकों में, बांधों में और अन्य कार्यों में; और जो बचा खुचा जंगल है भी उस पर भी वन विभाग की कृपा से विनाश हो ही रहा है।

हिमालय के मूल तत्व है बर्फ, नदियंा व जंगल और इसके रक्षक है यहंा के निवासी। पूरे हिमालय में नीचे हरा आवरण और ऊपर नीचे श्वेत धवल बर्फ का आवरण। बर्फ का आवरण हिमालय के पूरे स्वास्थ्य का रक्षक ही है। बर्फ का होना और वृक्षों से आच्छादित होना पूरे हिमालय के लिए दो जरूरी बातें रहीं। जैसे-जैसे हमने विकास योजनाओं को हिमालय में तरजीह दी है वैसे-वैसे ही हिमालय में ग्लेशियर का नीचे होना शुरू हुआ है, जंगलों का कटान हुई है। बांध बनने से बादलों का फटना ज्यादा हुआ है। टिहरी बांध बनने के बाद बादल फटने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है।

बड़ी चौड़ी सड़को के बनने के कारण से भूस्खलन बढे हैं। जहां पर भी सड़के चौड़ी हुई हैं वहां पर ज्यादा विस्फोटकों का इस्तेमाल होता है, जिस कारण से सड़क बनने के थोड़े ही समय बाद भूस्खलन चालू हो जाते हैं। विस्फोटों के बहुत ज़्यादा इस्तेमाल के कारण से हिमालय कमज़ोर हो रहा है। जहाँ-जहाँ चौड़ी सड़कें, वहां-वहां पर तथाकथित विकास की बड़ी योजनाएँ जिसमे ये बड़े बांधों आदि ने तो हिमालय को बहुत ही नुकसान पहंुचाया है। ये सरकारें इस बात को क्यों नहीं समझती हैं?

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र रावत जी ने 15 अगस्त को राज्य के सभी लोगों से एक पेड़ लगाने का संकल्प लेने के लिए कहा था। दूसरी तरफ बांधो में तो हजारो लाखों हेक्टेयर जंगल सीधे ही डूब रहा है।

अभी अगस्त महीने ही में पंचेश्वर बांध की जनसुनवाईयाँ जिस तरह हुई हैं उसमें पूरी तरह हिमालय के हक़ को नाकारा गया है। सरकारें बांध विकास के नाम पर ला रही हैं, दूसरी तरफ हिमालय के रक्षण की बात करते हैं। एक पेड़ लगाने की बात करते हैं दुसरी तरफ हजारों हेक्टेयर जंगल डूबा रहे हैं, बर्बाद कर रहे हैं। तो ये कथनी और करनी का अंतर मालूम पड़ता है।

नदियंा हिमालय की बेटियंा है। हम सरकारों को यह फिर से याद दिलाना चाहेंगे की जून 2013 के समय शायद ही कोई बांध बचा था जिसपर नदियों ने अपना प्रकोप नहीं दिखाया था। नदियां खास कर गंगा, बांधों को तोड़ कर आगे बढ़ी थी और बांधों के कारण से जहाँ-जहाँ गंगा का प्रवाह रुका वहां-वहां तबाही और हुई। बांधों के निर्माण में विस्फोटकों के इस्तेमाल के कारण भूस्खलन उन क्षेत्रों में ज़्यादा हुए। हमने हमेशा ही इस बात को सरकारों के सामने रखा है किन्तु अफ़सोस है की आजतक गंगा को माँ मानने वाली सरकार और अब जिसे डबल इंजन की सरकार कहा जा रहा है, वो भी इस मामले में पूरी तरह मौन ही नहीं अपितु उसके खिलाफ काम कर रही है।

नदियों में खनन को जिस तरह से बढ़ाया जा रहा है, जिस तरह रोज़गार के नाम पर खनन खोलने की बात हुई वो भी गलत है। चूँकि खनन रोज़गार नहीं। हाँ चँद ठेकेदारों के लिए फायदा देता है। हमने सरकारों को कहा है की टिहरी बांध में और दूसरे बांधों में भी जैसे विष्णुप्रयाग बांध के जलाशय में बहुत सारा मलबा, बहुत सारी रेत भरी पड़ी है। यदि यह रेत निकली जाये तो इससे टिहरी बांध का जलाशय खाली हो पाएगा और पानी भी ज़्यादा भर पाएगा। किन्तु ऐसा न करके, मात्र हरिद्वार और नीचे के क्षेत्रों में खनन को ज़्यादा बढ़ाने की बात हुई है।

हिमालय दिवस के इस शुभ अवसर पर हम केंद्र व राज्य सरकारों मांग करते हैं की वे हिमालय की इन पीड़ाओं को पहले समझे और उसके अनुसार ही विकास की नीतियों को बदले। बड़े बांधो से मात्र थोड़ी बिजली ज़रूर मिलेगी मगर तबाही की ज़्यादा हुई। 

हिमायल दिवस पर सरकारें टिहरी बांध जैसी गलती ना दोहराने का संकल्प ले। पंचेश्वर बहूद्देशीय बांध परियोजना को वापिस ले।



विमलभाई, पूरण सिंह राना, राजपाल रावत, प्रहलाद सिंह, रामलाल, राजेन्द्र सिंह नेगी, सुर्दशन साह, दिनेश चौहान, बृहराज तड़ियाल