राजस्थान महिला एवं जन संगठन - मंत्री मेनका गांधी के बयान की कडे शब्दों में निदा करते हुये

राजस्थान महिला एवं जन संगठन

दिनांक: 2.02.2016

प्रेस विज्ञप्ति
मंत्री मेनका गांधी के बयान की कडे शब्दों में निदा करते हुये
बयान वापस लेने की मांग व सार्वजनिक बहस के लिए हमारा आमंत्रण।
 
हम राजस्थान के महिला एवं जन संगठन हैरान है कि नरेन्द्र मोदी सरकार की वरिष्ठ महिला व बाल विकास मंत्री, मेनका गांधी स्वंय महिला होकर कैसे इतना अज्ञान भरा व गलत बयान दे सकती है। जयपुर में संपादको के सम्मेलन में यह कहना की लिंग जांच विरोधी कानून (PC PNDT) को रद्द कर हर औरत की सोनोग्र्राफी अनिवार्य कर भू्रण के लिंग को बता देना चाहिए कि हम कडे शब्दों मे निदा करते है। जिस समाज में पुत्र की लालसा और बेटी विमुख्ता व ना पसन्दगी का माहौल हैं, उसमे भु्रण का लिंग बता देना घटते लिंगानूपात को और भी घटा देगा और कन्या भू्रण हत्या के उद्योग को और बढ़ावा देगी।


लिंग जांच को अनिवार्य करके हर गर्भवती औरत की गर्भावस्था के निगरानी की सोच, संविधान में दिये गये निजता का हक व 1971 के (संशोधित 2003) के एम.टी.पी. (गर्भपात) कानून का उल्लंघन करती है। उच्चतम न्यायालय के 1992 के फैसले, मीरा माथुर बनाम एल.आई.सी. इण्डिया के अनुसार हर गर्भवती महिला को यह अधिकार है कि उसकी गर्भावस्था की जानकारी वह दे या ना दे, यह उसका स्वयं का अधिकार है। क्योंकि वह उसकी नीजिता के हक के साथ जुडा हुआ है।


गर्भपात कानून के अनुसार अगर औरत वयस्क है और मानसिक रूप से पीड़ित नहीं है तो उसको हक है कि वह 12 हफ्ते की निष्चित अवधी में निजी कारणों से गर्भपात करा सकती है,। स्पष्ट रूप से वह कन्या भू्रण गर्भपात नहीं करवा सकती है वह गैर कानूनी है।


गर्भावस्था की निगरानी  महिला के निजता के हक वह उसके गर्भपात करवाने के हक का उल्लंघन करता है और हो सकता है वैद्य गर्भपात भी छूप कर खतरा झेल कर करवाना पड़े।


मान लीजिए की हम इस सोच को एक बार स्वीकार भी कर लें तो मंत्री जी बताए की सालाना औसत 2.5 करोड़ गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था की कैसे निगरानी की जाएगी। आज दिन तक कुपोषित बच्चों की निगरानी हम नहीं कर पाए। हर औरत को स्तनपान की कांऊसलींग नहीं कर पाए, अब यह निगरानी कैसे की जायेगी, मंत्री जी बताए। कुल मिलाकर मंत्री जी का सोच चिकित्सा उद्योग को कानूनी जिम्मेदारी से आजाद करती है उल्टा महिला पर गर्भपात की पूरी जिम्मेदारी डाल देती है। क्या यह महिला का अपराधीकरण नहीं है। 
कुल मिलाकर यह सोच महिलाएं के निजी हको की कुठाराघात तो करेंगी। महिला को अपराधी बनायेंगी डॉक्टर इत्यादि को कानूनी कार्यवाही से मुक्त करेगी और समाज के असंतुलित लिंगनुपात को रफ्तार से असंतुलित करेगी। महिला व जन संगठनों का मानना है कि इस बयान को मंत्री जी वापस लें व तथ्यों के जरिये खुल्ली बहस के लिए वे आमंत्रित है।


हम है:
कविता श्रीवास्तव, मीता सिंह, नरेन्द्र गुप्ता, लाड कुमारी जैन, पवन सुराणा, ममता जैतली, रेणुका पामेचा, निशा सिद्धू, सुमित्रा चौपड़ा, अनिता माथुर, विजयलक्ष्मी, शबनम, कंचन माथुर, शोभिता राजगोपाल, निशात हुसैन, कोमल श्रीवास्तव, मेवा भारती, राखी, कुसुम साईवाल एवं अन्य।


सम्पर्क: कविता श्रीवास्तव - 9351562965