भँवर मेघवंशी
'बैल बेचना बंजारों की पहचान'
हमारा अधिकार! हमारा संघर्ष!
बंजारा समुदाय पर चरमपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा जारी हमलों के विरोध में एवं हक़ तथा अधिकारों की मांग के लिए एक सांस्कृतिक प्रदर्शन ।
गर तू है बंजारा ओर, खेच भी तेरी भारी है |
ए गाफिल तुझसे भी भारी, चढता इश्क और बड़ा व्योपारी है |
क्या शक्कर मिसरी कंद गरी, क्या सांभर मीठा खारी है |
क्या दाख मुनक्का सौंठ मिरच, क्या केसर लौंग सुपारी है |
सब ठाठ पड़ा रह जायेगा, जब लाद चलेगा बंजारा ||
– नज़ीर अकबराबादी, सन 1830
3 अक्टुम्बर, 2016 की आधी रात को भामाखेडा (गरासिया खेडा) तहसील रेलमगरा जिला राजसमन्द में बजरंग दल के कार्यकर्ताओ ने सरकार द्वारा आयोजित पशु मेले कुंवारिया से खरीद कर लाये जा रहे वयस्क बेलों की गाड़ी को रुकवाकर चोथवसूली करने व पैसा नहीं देने पर हमारे गाँव में घुसकर हमारे ऊपर हमला किया, जिसने हमारी पूरी बुनियाद को हिला कर रख दिया. उन्होंने न केवल हमारी लाठी – डंडों, हथियारों से मारपीट की ओर संपत्ति को बर्बाद किया बल्कि हमारी आजीविका, संस्कृति, सभ्यता ओर पहचान को भी खतरे में डाल दिया. ओर ये सब एक जानवर (बैल) के नाम पर जिसको की हमने सदियों तक संवारा ओर सहेजा है. बंजारों ओर बैल का चोली दामन का साथ रहा है.
हम बंजारे एक घुमंतु खानाबदोश समुदाय से ताल्लुकात रखते जिसने देश की सीमाओं से परे रेगिस्तान, समुन्द्र ओर पहाड़ो में यायावरी करते हुए व्यापार के आयाम स्थापित किये. जन जन तक नमक का स्वाद पहुचाने वाले बंजारे नमक को बेलों पर लादकर ही परिवहन करते थे, अंग्रेजों के दुष्चक्र के चलते नमक के व्यापार से तो इन का सम्बन्ध छूट गया मगर बेलों से नाता जुड़ा रहा ओर इन्होने कृषि योग्य बेलों का क्रय – विक्रय का व्यापार शुरू किया जो आज तक कर रहे है.
हम बंजारें पुरे भारत में फेले हुए है, जिसको कि बंजारा, बामनिया, मारू, लबाना, लम्बाडी जेसे नामों से जाना जाता है. इन्ही बंजारों जिप्सी के वंशज अपने अमूल्य स्वदेशी ज्ञान के लिए पूरी दुनिया में ईरान से हंगरी तक जाने जाते थे. हमारी सांस्कृतिक प्रथाओ ओर व्यापारिक दिशाओं ने मिलकर ही भारतीय इतिहास को अभिन्न बनाया है. लेकिन हम बंजारें आज भी गरीब, लुप्तप्राय ओर हाशिये पर गुजर बसर कर रहे है.
हमारी सांस्कृतिक पहचान ओर आजीविका के स्त्रोत एक सोची समझी साजिश के तहत मिटा दिए गए है तथा बचे – खुचे आधुनिकता की भेंट चढ़ गये है. आज हमे बिना किसी स्त्रोत के जीने पर मजबूर कर दिया है . सांस्कृतिक पहचान ओर आजीविका के स्त्रोत खो जाने के साथ साथ हमारे जीवन जीने का अधिकार ओर गौरव भी चला गया . पिछले दो दशको से चरमपंथी हिन्त्दुत्ववादी समूहों द्वारा “सरकार द्वारा आयोजित किये जाने वाले पशु मेलों” में किये जाने वाले व्यापार से भी हमारा अधिकार छिना जा रहा है. बार बार के शोषण, मारपीट व आर्थिक नुकसान के चलते हमें हमारे परंपरागत व्यवसाय को छोड़ मजदूरी, चायपत्ती, कम्बल, चारपाई की फेरी लगाने ओर शहर में पलायन करने पर मजबूर होना पड रहा है. जहाँ हमारें साथ सामाजिक एवं आर्थिक शोषण की नई ईबादत शुरू हो जाती है. वर्तमान में हम बंजारे घर, जमीन, खाना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वछता, रोजगार, पानी, बिजली जेसे मुलभुत अधिकारों से भी वंचित है.
बजरंग दल द्वारा जो हमला बंजारों पर किया गया उस ने हमे अवगत करा दिया की आज दुनिया हमारी पहचान को बहुत कम जानती है तथा भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक ओर राजनेतिक ढांचें में हमारी अभिन्न तथा महत्वपूर्ण हिस्सेदारी को भी भूल रही है. यह हमला जानवरों के क्रूरता के झूठे आरोपों के नाम पर किया गया है जो कभी भी बंजारा समुदाय के लोगो ने नहीं किया है, उन बेलों को हम आदर करते है, पूजते है क्यों की वह ही हमे जीवनदान देता है.
अब ये वक्त है कि हम दुनिया को बता दे की बंजारों की पहचान क्या है? ओर हमारा सदियों से बेलों के साथ क्या सम्बन्ध रहा है? हम एकजुट होकर मांग करते है कि हमारी पहचान का पुनरावलोकन कर हमारी गरिमा को समझा जाये ओर हमे सरकार की तरफ से वो तमाम हक़ - अधिकार मिले जिसके हम पात्र है.
हम आप सभी को “बैल बेचना बंजारों की पहचान” हमारा अधिकार - हमारा संघर्ष कार्यक्रम में आमंत्रित करते है. जहा आप हमसे रुबरु हो, हमारी संस्कृति की अनुभूति करे. हमारी आजीविका को समझे तथा हमारे साथ जो अन्याय हुआ है उस की पड़ताल करे.
दिनांक : 18.10.2016
समय : प्रात 11 बजे से 3 बजे तक
स्थान : राजसमन्द
पारस बंजारा - (7742846353 & 9413046353)
ओर से समस्त बंजारा समुदाय, राजस्थान
संपर्क : कालू – 9660554459, गोपाल – 9610035399, परस राम – 8875283457, भेरू - 7 665075763 शंकर- 7877035433 लालू- 9983647563,
श्याम लाल- 9610809642
'बैल बेचना बंजारों की पहचान'
हमारा अधिकार! हमारा संघर्ष!
बंजारा समुदाय पर चरमपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा जारी हमलों के विरोध में एवं हक़ तथा अधिकारों की मांग के लिए एक सांस्कृतिक प्रदर्शन ।
गर तू है बंजारा ओर, खेच भी तेरी भारी है |
ए गाफिल तुझसे भी भारी, चढता इश्क और बड़ा व्योपारी है |
क्या शक्कर मिसरी कंद गरी, क्या सांभर मीठा खारी है |
क्या दाख मुनक्का सौंठ मिरच, क्या केसर लौंग सुपारी है |
सब ठाठ पड़ा रह जायेगा, जब लाद चलेगा बंजारा ||
– नज़ीर अकबराबादी, सन 1830
3 अक्टुम्बर, 2016 की आधी रात को भामाखेडा (गरासिया खेडा) तहसील रेलमगरा जिला राजसमन्द में बजरंग दल के कार्यकर्ताओ ने सरकार द्वारा आयोजित पशु मेले कुंवारिया से खरीद कर लाये जा रहे वयस्क बेलों की गाड़ी को रुकवाकर चोथवसूली करने व पैसा नहीं देने पर हमारे गाँव में घुसकर हमारे ऊपर हमला किया, जिसने हमारी पूरी बुनियाद को हिला कर रख दिया. उन्होंने न केवल हमारी लाठी – डंडों, हथियारों से मारपीट की ओर संपत्ति को बर्बाद किया बल्कि हमारी आजीविका, संस्कृति, सभ्यता ओर पहचान को भी खतरे में डाल दिया. ओर ये सब एक जानवर (बैल) के नाम पर जिसको की हमने सदियों तक संवारा ओर सहेजा है. बंजारों ओर बैल का चोली दामन का साथ रहा है.
हम बंजारे एक घुमंतु खानाबदोश समुदाय से ताल्लुकात रखते जिसने देश की सीमाओं से परे रेगिस्तान, समुन्द्र ओर पहाड़ो में यायावरी करते हुए व्यापार के आयाम स्थापित किये. जन जन तक नमक का स्वाद पहुचाने वाले बंजारे नमक को बेलों पर लादकर ही परिवहन करते थे, अंग्रेजों के दुष्चक्र के चलते नमक के व्यापार से तो इन का सम्बन्ध छूट गया मगर बेलों से नाता जुड़ा रहा ओर इन्होने कृषि योग्य बेलों का क्रय – विक्रय का व्यापार शुरू किया जो आज तक कर रहे है.
हम बंजारें पुरे भारत में फेले हुए है, जिसको कि बंजारा, बामनिया, मारू, लबाना, लम्बाडी जेसे नामों से जाना जाता है. इन्ही बंजारों जिप्सी के वंशज अपने अमूल्य स्वदेशी ज्ञान के लिए पूरी दुनिया में ईरान से हंगरी तक जाने जाते थे. हमारी सांस्कृतिक प्रथाओ ओर व्यापारिक दिशाओं ने मिलकर ही भारतीय इतिहास को अभिन्न बनाया है. लेकिन हम बंजारें आज भी गरीब, लुप्तप्राय ओर हाशिये पर गुजर बसर कर रहे है.
हमारी सांस्कृतिक पहचान ओर आजीविका के स्त्रोत एक सोची समझी साजिश के तहत मिटा दिए गए है तथा बचे – खुचे आधुनिकता की भेंट चढ़ गये है. आज हमे बिना किसी स्त्रोत के जीने पर मजबूर कर दिया है . सांस्कृतिक पहचान ओर आजीविका के स्त्रोत खो जाने के साथ साथ हमारे जीवन जीने का अधिकार ओर गौरव भी चला गया . पिछले दो दशको से चरमपंथी हिन्त्दुत्ववादी समूहों द्वारा “सरकार द्वारा आयोजित किये जाने वाले पशु मेलों” में किये जाने वाले व्यापार से भी हमारा अधिकार छिना जा रहा है. बार बार के शोषण, मारपीट व आर्थिक नुकसान के चलते हमें हमारे परंपरागत व्यवसाय को छोड़ मजदूरी, चायपत्ती, कम्बल, चारपाई की फेरी लगाने ओर शहर में पलायन करने पर मजबूर होना पड रहा है. जहाँ हमारें साथ सामाजिक एवं आर्थिक शोषण की नई ईबादत शुरू हो जाती है. वर्तमान में हम बंजारे घर, जमीन, खाना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वछता, रोजगार, पानी, बिजली जेसे मुलभुत अधिकारों से भी वंचित है.
बजरंग दल द्वारा जो हमला बंजारों पर किया गया उस ने हमे अवगत करा दिया की आज दुनिया हमारी पहचान को बहुत कम जानती है तथा भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक ओर राजनेतिक ढांचें में हमारी अभिन्न तथा महत्वपूर्ण हिस्सेदारी को भी भूल रही है. यह हमला जानवरों के क्रूरता के झूठे आरोपों के नाम पर किया गया है जो कभी भी बंजारा समुदाय के लोगो ने नहीं किया है, उन बेलों को हम आदर करते है, पूजते है क्यों की वह ही हमे जीवनदान देता है.
अब ये वक्त है कि हम दुनिया को बता दे की बंजारों की पहचान क्या है? ओर हमारा सदियों से बेलों के साथ क्या सम्बन्ध रहा है? हम एकजुट होकर मांग करते है कि हमारी पहचान का पुनरावलोकन कर हमारी गरिमा को समझा जाये ओर हमे सरकार की तरफ से वो तमाम हक़ - अधिकार मिले जिसके हम पात्र है.
हम आप सभी को “बैल बेचना बंजारों की पहचान” हमारा अधिकार - हमारा संघर्ष कार्यक्रम में आमंत्रित करते है. जहा आप हमसे रुबरु हो, हमारी संस्कृति की अनुभूति करे. हमारी आजीविका को समझे तथा हमारे साथ जो अन्याय हुआ है उस की पड़ताल करे.
दिनांक : 18.10.2016
समय : प्रात 11 बजे से 3 बजे तक
स्थान : राजसमन्द
पारस बंजारा - (7742846353 & 9413046353)
ओर से समस्त बंजारा समुदाय, राजस्थान
संपर्क : कालू – 9660554459, गोपाल – 9610035399, परस राम – 8875283457, भेरू - 7 665075763 शंकर- 7877035433 लालू- 9983647563,
श्याम लाल- 9610809642